मंगलवार, 22 मार्च 2016

यज्ञ : एक वैज्ञानिक क्रिया...... जाने हवन का ज्ञान - विज्ञान

                                    यज्ञ : एक महावैज्ञानिक प्रक्रिया 



                                    हवन / यज्ञ/ अग्निहोत्र मनुष्यों के साथ सदा से चला आया है। हिन्दू धर्म में सर्वोच्च स्थान पर विराजमान यह हवन आज प्रायः एक आम आदमी से दूर है। दुर्भाग्य से इसे केवल कुछ वर्ग, जाति और धर्म तक सीमित कर दिया गया है। कोई यज्ञ पर प्रश्न कर रहा है तो कोई मजाक। इस लेख का उद्देश्य जनमानस को यह याद दिलाना है कि हवन क्यों इतना पवित्र है, क्यों यज्ञ करना न सिर्फ हर इंसान का अधिकार है बल्कि कर्त्तव्य भी है. यह लेख किसी विद्वान का नहीं, किसी सन्यासी का नहीं, यह लेख १०० करोड़ हिंदुओं ही नहीं बल्कि ८  अरब मनुष्यों के प्रतिनिधि एक साधारण से इंसान का है जिसमें हर नेक इंसान अपनी छवि देख सकता है. यह लेख आप ही के जैसे एक इंसान के हृदय की आवाज है जिसे आप भी अपने हृदय में महसूस कर सकेंगे..संस्कृति द्रोही लोग  यज्ञ को पाखंड और अवैज्ञानिक कहते है | पशु बलि और अशास्त्रीय युक्त वाममार्गी, आवेदिक यज्ञ अवश्य ही पाखंड है लेकिन वैदिक यज्ञ जो अहिंसक है पशु हत्या दोष से मुक्त है , वे यज्ञ वैज्ञानिक है ,और पाखंड से मुक्त है वैदिक यज्ञ के बारे में वैज्ञानिक दृष्टिकोण जानने के लिए निम्न पोस्ट को पूरा पढ़े -


03 दिसंबर 1984 की भोपाल गैस त्रासदी पर एक किताब पढ़ते समय अग्रेंजी समाचार पत्र "द हिंदू" की एक स्टोरी पर नजर पड़ी...। आपको भी सुनाती हूं...।....जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट का रिसाव होने के थोड़ी देर बाद अध्यापक एसएल कुशवाहा ने अपने घर में अग्निहोत्र यज्ञ करना शुरु कर दिया। इसके करीब बीस मिनट बाद गैस का असर उसके घर पर खत्म हो गया और उनकी जिंदगी बच गई....

हवन- मेरा स्वास्थ्य   

                        आस्था और भक्ति के प्रतीक हवन को करने के विचार मन में आते ही आत्मा में उमड़ने वाला ईश्वर प्रेम वैसा ही है जैसे एक माँ के लिए उसके गर्भस्थ अजन्मे बच्चे के प्रति भाव! न जिसको कभी देखा न सुना, तो भी उसके साथ एक कभी न टूटने वाला रिश्ता बन गया है, यही सोच सोच कर मानसिक आनंद की जो अवस्था एक माँ की होती है वही अवस्था एक भक्त की होती है. इस हवन के माध्यम से वह अपने अजन्मे अदृश्य ईश्वर के प्रति भाव पैदा करता है और उस अवस्था में मानसिक आनंद के चरम को पहुँचता है. इस चरम आनंद के फलस्वरूप मन विकार मुक्त हो जाता है. मस्तिष्क और शरीर में श्रेष्ठ रसों (होर्मोंस) का स्राव होता है जो पुराने रोगों का निदान करता है और नए रोगों को आने नहीं देता. हवन करने वाले के मानसिक रोग दस पांच दिनों से ज्यादा नहीं टिक सकते.
                         हवन में डाली जाने वाली सामग्री (ध्यान रहे, यह सामग्री आयुर्वेद के अनुसार औषधि आदि गुणों से युक्त जड़ी बूटियों से बनी हो) अग्नि में पड़कर सर्वत्र व्याप्त हो जाती है. घर के हर कोने में फ़ैल कर रोग के कीटाणुओं का विनाश करती है. वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि हवन से निकलने वाला धुआँ हवा से फैलने वाली बीमारियों के कारक इन्फेक्शन करने वाले बैक्टीरिया (विषाणुको नष्ट कर देता हैअधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर जाइए http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2009-08-17/health/28188655_1_medicinal-herbs-havan-nbri


विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार दुनिया भर में साल भर में होने वाली ५७ मिलियन मौत में से अकेली १५ मिलियन (२५% से ज्यादा) मौत इन्ही इन्फेक्शन फैलाने वाले विषाणुओं से होती हैं! हवन करने से केवल ये बीमारियाँ ही नहीं, और भी बहुत सी बीमारी खत्म होती हैं, जैसे-

१. सर्दी/जुकाम/नजला
२. हर तरह का बुखार
३. मधुमेह (डायबिटीज/शुगर)
४. टीबी (क्षय रोग)
५. हर तरह का सिर दर्द
६. कमजोर हड्डियां
७. निम्न/उच्च रक्तचाप
८. अवसाद (डिप्रेशन)
इन रोगों के साथ साथ विषम रोगों में भी हवन अद्वितीय है, जैसे
९. मूत्र संबंधी रोग
१०. श्वास/खाद्य नली संबंधी रोग
११. स्प्लेनिक अब्सेस
१२. यकृत संबंधी रोग
१३. श्वेत रक्त कोशिका कैंसर
१४. Infections by Enterobacter Aerogenes
१५. Nosocomial Infections
१६. Extrinsic Allergic Alveolitis
१७. nosocomial non-life-threatening infections

और यह सूची अंतहीन है! सौ से भी ज्यादा आम और खास रोग यज्ञ थैरेपी से ठीक होते हैं! सबसे बढ़कर हवन से शरीर, मन, वातावरण, परिस्थितियों और भाग्य पर अद्भुत प्रभाव होता है. घर परिवार, बच्चे बड़े सबके उत्तम स्वास्थ्य, आरोग्य और भाग्य के लिए यज्ञ से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता! दिन अगर यज्ञ से शुरू हो तो कुछ अशुभ हो नहीं सकता, कोई रोग नहीं हो सकता.


यज्ञ : सबसे बड़ा विज्ञान

आज यज्ञ को शक्तिवर्धक वस्तुएँ जला देने वाला एक अन्धविश्वासी कर्मकाण्ड कहा जाता है, किन्तु ऐसा कहने वाले यह भूल जाते हैं कि वर्तमान विज्ञान उस स्थिति में आ गया है, जब यह बताया जा सके कि यज्ञ के जो भी लाभ वेद, उपनिषद्, शास्त्रों और पुराणों में बताये गये हैं, वह यथार्थ लाभों की तुलना में उतने ही छोटे और थोड़े हैं, जैसे अनन्त ब्रह्माण्ड की तुलना में यह अपनी पृथ्वी। प्रजापति ब्रह्मा के इस कथन को - “यह यज्ञ तुम्हारी हर कामना को संतुष्ट करेगा।” अब विज्ञान की कसौटी पर सत्य उतारा जायेगा।
इस विज्ञान को समझने के लिए पृथ्वी और ब्रह्माण्ड की जिन शक्तियों के अध्ययन की आवश्यकता है, वह है - (1) शब्द सामर्थ्य (मंत्र शक्ति), (2) अग्नि तत्त्व और उसका प्रकीर्णन, (3) पदार्थ परिवर्तन के मौलिक सिद्धांत, (4) सूर्य और उसकी सहस्राँशु शक्ति और अन्तिम, (5) भावना विज्ञान। इनमें से सम्पूर्ण या कुछ की आँशिक जानकारी से भी यज्ञ सम्बन्धी भारतीय दर्शन को अच्छी प्रकार समझा जा सकता है।
शब्द की सामर्थ्य की माप कैलीफोर्निया विश्व–विद्यालय के एक भूगर्भ तत्त्ववेत्ता डा. गैरी लेन ने की। उन्होंने स्फटिक के प्राकृतिक क्रिस्टल और स्फटिक की ही बहुत पतली पट्टिका के माध्यम से एक ऐसा यन्त्र बनाया जो ऐसी ध्वनियों के माध्यम से जो कानों को सुनाई भी नहीं देती ऐसी शक्ति का निर्माण किया जिसके द्वारा शल्य-चिकित्सा कीटाणुओं का विनाश, मोटी–मोटी इस्पात की चादरों को काटना, धुलाई, कटाई आदि भारी से भारी काम और नाजुक से नाजुक कार्य भी सम्पन्न करने में बड़ी सहायता मिली। आज पाश्चात्य देशों में औद्योगिक क्षेत्रों में कर्णातीत ध्वनि के उपयोग ने क्राँति मचा दी है।
शब्द की दूसरी विशेषतः उसकी संवहनीयता है, वह ठोस माध्यम से भी चल सकता है और ईथर में तरंगों के रूप में सारे ब्रह्माण्ड का भ्रमण भी कर आता है, इन सब बातों का अर्थ होता है कि शब्द की शक्ति अपरिमेय होती हैं। पृथ्वी पर अनेक हलचलें शब्द के द्वारा ही होती है फिर भारतीय शब्द शास्त्र तो और भी वैज्ञानिक है। उनसे एक प्रकार की ऐसी ध्वनि उत्पन्न होती है, जो किसी भी स्थान पर व्यापक हलचल उत्पन्न कर सकती है।
गायत्री मंत्र की ध्वनि शक्ति इन सबसे विलक्षण है। गायत्री मंत्रों में जब मंत्रोच्चारण किया जाता है तो वह अपने सामान्य सिद्धान्त के अनुसार कुण्डलाकार गति से ऊपर की ओर ईथर में तरंगें बनाता हुआ बढ़ता है। यज्ञों में प्रज्वलित अग्नि के इलेक्ट्रान्स उन तरंगों को वहन कर लेते हैं और उनकी पहली प्रतिक्रिया तो उस क्षेत्र में ही फैलती है, अर्थात् यज्ञ में प्रयुक्त होने वाले घृत आदि पदार्थ स्थूल से गैस रूप में फैलते हैं। आग की गर्मी से उन औषधियों के इलेक्ट्रान्स अपने-अपने पथों पर इतनी तेजी से दौड़ने लगते हैं कि आपस में लड़खड़ा जाते हैं और छितर कर स्थूल पदार्थों से अलग होकर वायु मण्डल में फैल जाते हैं, यज्ञ के समय फैलने वाली धूम्र-सुवास उसी का एक स्थूल रूप है।
अग्निहोत्र और मंत्रोच्चारण के उससे भी सूक्ष्म-विज्ञान को समझने के लिये अयन-मण्डल (आयनोस्फियर) का अध्ययन आवश्यक है। धरती की सतह से 35 से 45 मील तक की ऊँचाई के ऊपर वायु मण्डली आग को अयन-मण्डल कहते हैं। अपनी पृथ्वी वायु के समुद्र में डूबी हुई है, आयनोस्फियर उसका सबसे अधिक ऊँचा और विशाल क्षेत्र हैं, लेकिन वहाँ हवा की कुल मात्रा वायु-मण्डल की तुलना में दो-सौवें भाग से भी कम है। यथार्थ में पृथ्वी पर प्राकृतिक परिवर्तनों और ब्रह्माण्ड के अदृश्य लोकों से संपर्क का मूल अध्याय यहीं से प्रारम्भ होता है। कुछ दिन तक अयन मण्डल वैज्ञानिकों के लिये एक पहेली थी, किन्तु छानबीन से पता चला है कि बहुत ऊँचाई पर हवा में ऐसे बहुत से गुण हैं जो धरती की हवा में नहीं होते।
उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव प्रकाश, प्रचण्ड चुम्बकीय आँधी, बेतार तरंगों के परावर्तन जैसी घटनायें आयनोस्फियर से ही आरम्भ होती हैं। सूर्य और चन्द्रमा आदि की अनेक नियमित प्रक्रियाओं के फलस्वरूप पृथ्वी के आकर्षण वृत्त में परिवर्तन होते हैं।
यहाँ यह भी जान लेना आवश्यक है कि हवा में मिश्रित गैसें छोटे-छोटे अणुओं से बनी होती हैं। एक घन सेंटीमीटर हवा में नाइट्रोजन, आक्सीजन और दूसरी गैसों के 27000,000,000,000,000,000 कण होते हैं। यह अणु भी छोटे कणों में विभक्त होते हैं इन्हें परमाणु कहते हैं, परमाणु भी विभक्त हो सकते हैं। क्योंकि वे भी इलेक्ट्रान, न्यूट्रान और प्रोटान नामक और भी छोटे कणों से बने हैं, इन्हें शक्ति तरंगें ही कहना चाहिये। परमाणु बहुत स्थायी होता है, क्योंकि इलेक्ट्रान और परमाणु का न्यूक्लियस आपस में आकर्षक विद्युत शक्ति द्वारा एक दूसरे से जुड़े रहते। नाभिक धन विद्युत आवेशकारी और इलेक्ट्रानिक सेल ऋण-विद्युत आवेशकारी होता है। इन्हीं विद्युत आवेशकारी अणु या परमाणुओं का नाम अयन है। इसे एक प्रकार का वैसा ही शक्ति प्रवाह कहना चाहिये, जिस तरह तालाब के पानी में तरंगें उठतीं और पानी में गति पैदा करती हैं। यह सूक्ष्म अयन मण्डल भी उसी प्रकार एक ओर तो पृथ्वी की जलवायु पर गैसीय स्थिति के अनुरूप अच्छे, खराब परिवर्तन करता है, दूसरी ओर पृथ्वी के शब्द प्रवाह को कालातीत बनाकर आकाश की ओर फेंकता रहता है।
अणुओं और परमाणुओं के साथ इतनी मजबूती से जुड़े रहने के बाद भी इलेक्ट्रान कभी-कभी उनसे टूटकर अलग हो जाते हैं, पहले वैज्ञानिक इस पर आश्चर्य-चकित थे पर अब वे जान गये हैं कि आयनोस्फियर में यह किया सूर्य के विकिरण (रेडियेशन) से होती हैं। तात्पर्य यह कि सूर्य इस अयन को चुप नहीं रहने देता कुछ न कुछ परिवर्तन कराता ही रहता है परिवर्तन की स्थिति अच्छी-बुरी गैसों के अनुरूप होती हैं, इसलिये यज्ञ से जो प्राण-प्रवाह उत्पन्न होता है, वह स्थूल दृष्टि से प्रकृति और जन-स्वास्थ्य पर बड़ा अनुकूल प्रभाव डालता है।
आज जो परमाणविक विस्फोट हो रहें हैं, उनसे तो अयन-मण्डल ऐसी खराब गैसों की धूलि रेडियो-एक्टीविटी से भर गया है कि आने वाले समय में अनेकों नई बीमारियाँ पैदा होंगी और अकाल धनावृद्धि के विद्रूप उपस्थित होंगे। इस धूलि की जिन्दगी बड़ी लम्बी होती है। दूसरी ओर हर जीवित पदार्थ में कार्बन की मात्रा अधिक होती है। जिससे किरण-सक्रिय धूलि बड़ी आसानी से उस पर अपना प्रभाव प्रारम्भ कर देती है। हर एक मेगाटन वाले परमाणविक अस्त्र से 20 पौण्ड कार्बन 14 की उपलब्धि होती है।
1961 तक के विस्फोटों का हिसाब लगाकर ही डा. लाइनस पालिंग ने बताया था कि भविष्य में 4 लाख विकलांग या मृत बच्चे जन्म लेंगे। कार्बन-14 के अतिरिक्त स्ट्राटियम 90 आयोडीन 131 और कैसियम 137 जैसी कैन्सर, लूकेमियाँ, रक्त मंदता और पेचिस पैदा करने वाली गैसें पैदा होती हैं, उन्हें केवल प्राण-संयुक्त या अधिक शक्ति वाला यज्ञीय-विकिरण ही रोक सकता है और कोई नहीं। यज्ञ से हुई प्राण-वर्षा में ही वह शक्ति है, जो इन दुष्प्रभावों को रोक सके, इसलिये वर्तमान युग में तो यज्ञों की अनिवार्यता असंदिग्ध ही है।
प्रकृति के रूप में यज्ञ पहुँची गैस और कर्णातीत ध्वनि से अयन और ब्रह्माण्डीय शक्तियों के भीतर भारी हलचल उत्पन्न होती है और उस हलचल के फल-स्वरूप ही पृथ्वी पर अनेक नये तत्त्वों का आकर्षण, वर्षा आदि की व्यवस्था होती है, मौसम में सुहावनापन और वातावरण में शक्तिवर्धक प्राण की बहुलता होती है, यह सब उसके स्थूल प्रभाव और प्रतिक्रियाएँ ही हैं।
यजुर्वेद में कहा है-ब्रह्म सूर्य सम ज्योतिः”-23। 42।
वह सूर्य ब्रह्म तत्त्व ही है, उन्हीं की शक्ति और बाहरी महिमा से जीवन का विकास हो रहा है। पृथ्वी में आँधी तक सूर्य की इच्छा से आती है, इसे सूर्य की तापीय व्यवस्था कहें या प्राण-प्रक्रिया पर लिखित है कि यज्ञ और मन्त्र की कर्णातीत शक्ति उन प्राण या ऊष्मा में खलबली मचा कर अधिक मात्रा में जीवन तत्त्वों का विस्फोट अवश्य कर अधिक मात्रा में जीवन तत्त्वों का विस्फोट अवश्य करा लेती है। जहाँ भी यज्ञ होते हैं वहाँ प्रकृति बहुत अनुकूल रहती है इसमें किंचित् मात्र भी सन्देह नहीं। स्मरण रहे पृथ्वी सूर्य से ही सर्वाधिक प्रभावित है।
मन्त्र का भावना विज्ञान उससे भी विलक्षण शक्ति वाला है। गीता में भगवान् कृष्ण ने कहा है कि संसार में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं है, भले ही हम उसे न जानते हों। परमात्मा की सृष्टि में वह सब कुछ है, जिसके बारे में हम जानते भी नहीं हैं, उसे जानने और देखने के लिये अणु-आँखें सूक्ष्म-दृष्टि को जागृत करना आवश्यक है। अर्थात् जीव छोटे से छोटा होकर ही विश्व की अनन्तता और उसके भीतर की आणविक हलचलों का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। यह ज्ञान इतना संघर्ष है कि संसार के किसी भी भूभाग में विलक्षण हलचल उत्पन्न कर सकता है।
यज्ञों के माध्यम से प्रकट होने वाली भावना-शक्ति सामान्य भावों की अपेक्षा शब्द-शक्ति और अग्नि-तत्त्व से प्रेरित होने के कारण तमाम ब्रह्माण्ड में फैलकर अपने अनुरूप शक्तियों को खींच लाती है। हम समझ नहीं पाते कि अदृश्य सहायता या इच्छा पूर्ति कैसे हुई पर यह नई भावनाओं द्वारा एक प्रकार के तत्त्वों के अणुओं के आकर्षण की ही वैज्ञानिक पद्धति है, उसमें रहस्य जैसी कोई भी बात नहीं है।
भावना वस्तुतः कर्णातीत ध्वनि की और भी सूक्ष्म स्वरूप है, क्योंकि हम जो कुछ सोचते हैं, वह आत्मा या चेतन सत्ता द्वारा एक प्रकार का बोलना ही हैं, इसलिये होना ही चाहिये, यज्ञ तो एक प्रकार से उस यन्त्र की तरह है, जो अभीष्ट इच्छा के गन्तव्य तक उस शक्ति को पहुँचाने और वहाँ से आवश्यक परिस्थितियाँ खींच लाने में मदद करता हैं।
हविष्यान्न का प्रतिफल अन्न आदि के उत्पादन, अयन-मण्डल में शक्ति तत्त्वों के विकास और जलवायु की अनुकूलता के रूप में दिखाई देता है तो यज्ञ कर्ताओं की श्रद्धा भक्ति भावनात्मक स्तर पर मनोवाँछित सफलतायें प्रदान करने वाली होती हैं। स्थूल की प्रतिक्रिया स्थूल तो सूक्ष्म की प्रतिक्रिया सूक्ष्म भी हाथों-हाथ देखने को मिलती है। यद्यपि यह दोनों ही बातें मिली-जुली हैं, इसलिये भावना को विज्ञान और विज्ञान को भावना के माध्यम से जागृत और प्राप्त किया जा सकता है।
एक समय था जब अभीष्ट प्राकृतिक आवश्यकताओं, सामाजिक परिवर्तनों और व्यक्ति की निजी इच्छाओं के लिये प्रयुक्त होने वाले यज्ञों की बहुतायत से लोगों को जानकारी थी पर उस विद्या का ला हो गया लगता है, प्रयोग और परीक्षण के तौर पर ही उन रहस्यों की पुनः जानकारी की जा सकती हैं। सूर्य की अदृश्य किरणों के और अयन-मण्डल के सम्बन्ध में और अधिक जानकारियाँ मिलेंगी तब लोग यज्ञ की सूक्ष्म प्रतिक्रियाओं को और भी अच्छी तरह समझ सकेंगे। अभी प्राकृतिक परिवर्तन में उसे सहायक के रूप में समझा जा सका तो इतना ही काफी होगा।

विधि विधान से किए गए यज्ञ हवन व्यक्ति को प्राणशक्ति से भरपूर कर देते हैं। इस बात का प्रमाण अग्नि के सान्निध्य में होने वाले सात्विक प्रभाव से समझा देखा जा सकता है। पहला प्रभाव तो यह कि कायदे से किए गए यज्ञ हवन में जो धुंआ उठता है, उससे किसी को परेशानी नहीं होती। आमतौर पर धुंए का प्रभाव खांसी होने और दम घुटने के रूप में दिखाई देती है।
बंगलूर के वैदिक रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रयोगों के अनुसार हवन के लिए बैठने पर न खांसी होती है न दम घुटता है और न ही आंच लगती है। इंस्टीट्यूट की पत्रिका अग्निधर्मा के अनुसार ऐसा नहीं है कि हवन में प्रयोग की जानी वाली समिधाएं (लकड़ियां) और हवन सामग्री के कारण ऐसा होता है।

बिना मंत्रों के बेतरतीब ढंग से जलाई गई वही सामग्री स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है, जबकि विधि विधान और मंत्रों से किए गए हवन शुभ परिणाम प्रस्तुत करते हैं। वैदिक वांग्मय का आरंभ अग्नि शब्द से होता है। ऋग्वेद की पहली ऋचा के पहले मंत्र का पहला शब्द है अग्नि।
योगी अश्विनी के अनुसार यह शब्द और मंत्र ब्रह्मांड की सूक्ष्म शक्तियों और हवनकर्ता को जोड़ता है। अग्नि में ऊपर उठाने की क्षमता है। यही एक ऐसा तत्व है जो गुरुत्व शक्ति के नियम का अतिक्रम करते हुए ऊपर की ओर जाता है।
अग्नि व्यक्ति के विचारों को शुद्ध रखती और उसका आत्मिक उत्थान करती है। इन दिनों होने वाले हवन में तो चारों तरफ धुंआ भर जाता है। उसमें बैठना भी दूभर हो जाता है। जबकि हवन से वातावरण शांत और निर्मल हो जाना चाहिए।
उसमें किसी भी व्यक्ति को खांसी और बेचैनी नहीं होती। यहां तक कि आहुतियां दिए जाते समय यज्ञशाला में पशु पक्षी भी निस्संकोच आ कर बैठ जाते हैं और अच्छा महसूस करते हैं।
हवन गैस से वर्षा -


                       हवन से वृष्टि सहायता मिलने का उल्लेख पाया जाता है। इसका आशय यह है कि हवन द्वारा वायु में कुछ ऐसे परिवर्तन होना चाहिये जो वृष्टि में सहायक सिद्ध हों। भौतिक विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि किसी स्थान पर वृष्टि हो सकने के लिए अनेक साधनों की आवश्यकता होती है।  बादल बनने के लिए निम्नलिखित शर्ते आवश्यक है -


(क) हवा में नमी का होना |
(ख) हवा में रेणु कणों का होना |
(ग) यदि हवा में रेणु कण न हो तो अल्ट्रा वायोलेट रेज ,एक्सरेज या रेडियम इमेनेशन गुजार कर कृत्रिम रेणु कण स्वयम बना लिए जाए | जो रेणु कणों का काम करे |
(घ) हवा को इतना ठंडा कर दिया जाए कि उस में विद्यमान जलवाष्प स्वयम द्रवीकृत हो जाए |
(ङ) हवा में नमी की राशि |
(च) वायु मंडल का ताप परिमाण 
(छ) वायु के फेलने की गुंजाइश 
(ज) नमी के लिए रेणु कणों के गुण ,आकार और संख्या 

                                             
                                    हवन गैस से वर्षा होने में कारण ज़हा एक सीमा तक हवन से उत्पन्न वे जले कार्बन के जर्रे है ,वहा उनसे भी अधिक घी के आद्रता चुसक जर्रे है | घी की परत वाले छोटे छोटे जर्रे नमी खीच सकते है | और एक बार नमी जमने से उन पर नमी जमती ही चली जाती है | कोयले के कई जर्रे जो घी की परत से ढक जाते है ऋणबिद्युतविष्ट देखे गये है ,जो स्वभावतय पानी को खीचते है | इस तरह साधारणतय छोटे हवन बादल बनाने और ऋतू के अनुसार वर्षा में साहयक होते है |
किसी विशेष समय वर्षा लाने के लिए हवन को बड़ी मात्रा पर और विशेष विशेष पदार्थो ( जिनसे आद्रता चूसने वाले गैस या जर्रे बने ) करना आवश्यक है | बहुत बड़े हवन ही उर्ध्व गति के वायु को पैदा करके वर्षा लाने का काम कर सकते है | हवन में तेल घी जैसे आद्रता चूसने वाले पदार्थ होने के कारण बादल न होने पर भी नमी को खीच कर ,बादल बना कर वर्षा कर सकते है | जिनसे वर्षा रुक सके या बादल हट सके | इनमे ऐसे पदार्थ डाले जा सकते है जिनसे वर्षा रुक सके या बादल हट सके | इनमे ऐसे पदार्थ डाले जा सकते है जिससे बहुत मात्रा में ठोस कण बने और आद्रता को खीचने के स्थान पर उससे वाष्प बनाने का काम करे | आशा है उक्त वैज्ञानिक विवेचन से पाठको को यह समझने में कुछ साहयता मिलेगी कि यज्ञ से वर्षा होने में वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या है ?

                                हवन की उपयोगिता में हमारे अविश्वास या सन्देह के दो कारण हैं- एक तो हमारा अति स्थूलदर्शी हो जाना तथा दूसरे विधिवत् प्रयोग द्वारा हवन की इस उपयोगिता को प्रमाणित करने की कोई योजना न होना। वर्तमान चिकित्सा पद्धतियों के विकास का इतिहास इस ओर स्पष्ट संकेत कर रहा है कि हमारे शरीर की रचना इतनी जटिल है कि केवल वैज्ञानिक विधि से ही इसे पूरा नहीं जाना जा सकता है। हमारे शरीर में ऐसे अनेक सूक्ष्म अंग हैं जिन्हें प्रकृति के अत्यंत सूक्ष्म पदार्थ प्रभावित कर देते हैं। इसलिए यह कहना भूल है कि हवन द्वारा हमारे रोगों की निवृत्ति मानना भ्रांति है। यह कहना तो ठीक है कि हवन सम्बंधी हमारा ज्ञान इस समय इतना अपूर्ण है कि इसके द्वारा सभी विशिष्ठ रोगों की चिकित्सा का दावा उस समय तय नहीं किया जा सकता जब उसे प्रयोग से सिद्ध न किया जा सके। प्रसन्नता की बात है कि गायत्री तपोभूमि द्वारा ऐसी खोजें और प्रयोगात्मक परीक्षाओं की व्यवस्था की जा रही है। हवन निःसंदेह एक लोकोपयोगी कार्य है और इसका प्रभाव मानव जीवन के लिये हितकर ही होता है। 
यज्ञ के द्वारा जो शक्तिशाली तत्व वायुमण्डल में फैलाये जाते हैं, उनसे हवा मेंघूमते असंख्यों रोग कीटाणु सहज ही नष्ट होते हैं । डी.डी.टी., फिनायल आदिछिड़कने, बीमारियों से बचाव करने वाली दवाएँ या सुइयाँ लेने से भी कहीं अधिककारगर उपाय यज्ञ करना है । साधारण रोगों एवं महामारियों से बचने का यज्ञ एकसामूहिक उपाय है । दवाओं में सीमित स्थान एवं सीमित व्यक्तियों को ही बीमारियोंसे बचाने की शक्ति है; पर यज्ञ की वायु तो सर्वत्र ही पहुँचती है और प्रयतन न करनेवाले प्राणियों की भी सुरक्षा करती है । मनुष्य की ही नहीं, पशु-पक्षियों, कीटाणुओंएवं वृक्ष-वनस्पतियों के आरोग्य की भी यज्ञ से रक्षा होती है ।
                                  यज्ञ का धूम्र आकाश में-बादलों में जाकर खाद बनकर मिल जाता है । वर्षा के जल केसाथ जब वह पृथ्वी पर आता है, तो उससे परिपुष्ट अन्न, घास तथा वनस्पतियाँउत्पन्न होती हैं, जिनके सेवन से मनुष्य तथा पशु-पक्षी सभी परिपुष्ट होते हैं ।यज्ञागि्न के माध्यम से शक्तिशाली बने मन्त्रोच्चार के ध्वनि कम्पन, सुदूर क्षेत्र मेंबिखरकर लोगों का मानसिक परिष्कार करते हैं, फलस्वरूप शरीरों की तरहमानसिक स्वास्थ्य भी बढ़ता है ।
                                   
हवन- मेरी आस्था
हिंदू धर्म में सर्वोपरि पूजनीय वेदों और ब्राह्मण ग्रंथों में यज्ञ/हवन की क्या महिमा है, उसकी कुछ झलक इन मन्त्रों में मिलती है-
अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्. होतारं रत्नधातमम् [ ऋग्वेद १/१/१/]

समिधाग्निं दुवस्यत घृतैः बोधयतातिथिं. आस्मिन् हव्या जुहोतन. [यजुर्वेद 3/1]
अग्निं दूतं पुरो दधे हव्यवाहमुप ब्रुवे. [यजुर्वेद 22/17]
सायंसायं गृहपतिर्नो अग्निः प्रातः प्रातः सौमनस्य दाता. [अथर्ववेद 19/7/3]
प्रातः प्रातः गृहपतिर्नो अग्निः सायं सायं सौमनस्य दाता. [अथर्ववेद 19/7/4]
तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रतः [यजुर्वेद 31/9]
अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तोधि ब्रुवन्तु तेवन्त्वस्मान [यजुर्वेद 19/58] 
यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म [शतपथ ब्राह्मण 1/7/1/5]
यज्ञो हि श्रेष्ठतमं कर्म [तैत्तिरीय 3/2/1/4]
यज्ञो अपि तस्यै जनतायै कल्पतेयत्रैवं विद्वान होता भवति [ऐतरेय ब्राह्मण १/२/१]       
यदैवतः स यज्ञो वा यज्याङ्गं वा.. [निरुक्त ७/४]
इन मन्त्रों में निहित अर्थ और प्रार्थनाएं इस लेख के अंत में दिए जायेंगे जिन्हें पढकर कोई भी व्यक्ति खुद हवन करके अपना और औरों का भला कर सकता है. पर इन मन्त्रों का निचोड़ यह है कि ईश्वर मनुष्यों को आदेश करता है कि हवन/यज्ञ संसार का सर्वोत्तम कर्म है, पवित्र कर्म है जिसके करने से सुख ही सुख बरसता है. अनेक प्रयोजनों के लिए अनेक विशिष्ट यज्ञ भी किये जा सकते हैं । दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ करके चार उत्कृष्ट सन्तानें प्राप्त की थीं, अगि्नपुराण में तथा उपनिषदों में वर्णित पंचाग्नि विद्या में ये रहस्य बहुत विस्तारपूर्वक बताये गये हैं । विश्वामित्र आदि ऋषि प्राचीनकाल मेंअसुरता निवारण के लिए बड़े-बड़े यज्ञ करते थे । राम-लक्ष्मण को ऐसे ही एक यज्ञकी रक्षा के लिए स्वयं जाना पड़ा था । लंका युद्ध के बाद राम ने दस अश्वमेध यज्ञ किये थे । महाभारत के पश्चात् कृष्ण ने भी पाण्डवों से एक महायज्ञ कराया था,उनका उद्देश्य युद्धजन्य विक्षोभ से क्षुब्ध वातावरण की असुरता का समाधान करनाही था । जब कभी आकाश के वातावरण में असुरता की मात्रा बढ़ जाए, तो उसकाउपचार यज्ञ प्रयोजनों से बढ़कर और कुछ हो नहीं सकता । आज पिछले दो महायुद्धोंके कारण जनसाधारण में स्वार्थपरता की मात्रा अधिक बढ़ जाने से वातावरण मेंवैसा ही विक्षोभ फिर उत्पन्न हो गया है । उसके समाधान के लिए यज्ञीय प्रक्रिया कोपुनर्जीवित करना आज की स्थिति में और भी अधिक आवश्यक हो गया है । यज्ञीय प्रेरणाओं का महत्त्व समझाते हुए ऋग्वेद में यज्ञाग्नि को पुरोहित कहा गया है । उसकी शिक्षाओं पर चलकर लोक-परलोक दोनों सुधारे जा सकते हैं । वे शिक्षाएँइस प्रकार हैं-
                                   
१- जो कुछ हम बहुमूल्य पदार्थ अग्नि में हवन करते हैं, उसे वह अपने पास संग्रहकरके नहीं रखती, वरन् उसे सर्वसाधारण के उपयोग के लिए वायुमण्डल में बिखेरदेती है । ईश्वर प्रदत्त विभूतियों का प्रयोग हम भी वैसा ही करें, जो हमारा यज्ञपुरोहित अपने आचरण द्वारा सिखाता है । हमारी शिक्षा, समृद्धि, प्रतिभा आदिविभूतियों का न्यूनतम उपयोग हमारे लिए और अधिकाधिक उपयोग जन-कल्याणके लिए होना चाहिए ।
२- जो वस्तु अग्नि के सम्पर्क में आती है, उसे वह दुरदुराती नहीं, वरन् अपने मेंआत्मसात् करके अपने समान ही बना लेती है । जो पिछड़े या छोटे या बिछुड़े व्यक्तिअपने सम्पर्क में आएँ, उन्हें हम आत्मसात् करने और समान बनाने का आदर्श पूराकरें ।
३- अग्नि की लौ कितना ही दबाव पड़ने पर नीचे की ओर नहीं होती, वरन् ऊपर कोही रहती है । प्रलोभन, भय कितना ही सामने क्यों न हो, हम अपने विचारों औरकार्यों की अधोगति न होने दें । विषम स्थितियों में अपना संकल्प और मनोबलअग्नि शिखा की तरह ऊँचा ही रखें ।
४- अग्नि जब तक जीवित है, उष्ण्ाता एवं प्रकाश की अपनी विशेषताएँ नहींछोड़ती । उसी प्रकार हमें भी अपनी गतिशीलता की गर्मी और धर्म-परायणता कीरोशनी घटने नहीं देनी चाहिए । जीवन भर पुरुषार्थी और कर्त्तव्यनिष्ठ रहना चाहिए।
५- यज्ञाग्नि का अवशेष भस्म मस्तक पर लगाते हुए हमें सीखना होता है कि मानवजीवन का अन्त मुट्ठी भर भस्म के रूप में शेष रह जाता है । इसलिए अपने अन्त कोध्यान में रखते हुए जीवन के सदुपयोग का प्रयत्न करना चाहिए ।
                    यज्ञ सामूहिकता का प्रतीक है । अन्य उपासनाएँ या धर्म-प्रक्रियाएँ ऐसी हैं, जिन्हेंकोई अकेला कर या करा सकता है; पर यज्ञ ऐसा कार्य है, जिसमें अधिक लोगों केसहयोग की आवश्यकता है । होली आदि बड़े यज्ञ तो सदा सामूहिक ही होते हैं । यज्ञआयोजनों से सामूहिकता, सहकारिता और एकता की भावनाएँ विकसित होती हैं । प्रत्येक शुभ कार्य, प्रत्येक पर्व-त्यौहार, संस्कार यज्ञ के साथ सम्पन्न होता है । यज्ञभारतीय संस्कृति का पिता है । यज्ञ भारत की एक मान्य एवं प्राचीनतम वैदिक उपासना है ।
                      यही नहीं, भगवान श्रीराम को रामायण में स्थान स्थान पर ‘यज्ञ करने वाला’ कहा गया है. महाभारत में श्रीकृष्ण सब कुछ छोड़ सकते हैं पर हवन नहीं छोड़ सकते. हस्तिनापुर जाने के लिए अपने रथ पर निकल पड़ते हैं, रास्ते में शाम होती है तो रथ रोक कर हवन करते हैं. अगले दिन कौरवों की राजसभा में हुंकार भरने से पहले अपनी कुटी में हवन करते हैं. अभिमन्यु के बलिदान जैसी भीषण घटना होने पर भी सबको साथ लेकर पहले यज्ञ करते हैं. श्रीकृष्ण के जीवन का एक एक क्षण जैसे आने वाले युगों को यह सन्देश दे रहा था कि चाहे कुछ हो जाए, यज्ञ करना कभी न छोड़ना. जिस कर्म को भगवान स्वयं श्रेष्ठतम कर्म कहकर करने का आदेश दें, वो कर्म कर्म नहीं धर्म है. उसका न करना अधर्म है.
हवन- मेरा भाग्य     
लोग अशुभ से डरते हैं. किसी पर साया है तो किसी पर भूत प्रेत. किसी पर किसी ने जादू कर दिया है तो किसी के ग्रह खराब हैं. किसी का भाग्य साथ नहीं देता तो कोई असफलताओं का मारा है. क्यों? क्योंकि जीवन में संकल्प नहीं है. हवन कुंड के सामने बैठ कर उसकी अग्नि में आहुति डालते हुए इदं न मम कहकर एक बार अपने सब अच्छे बुरे कर्मों को उस ईश्वर को समर्पित कर दो. अपनी जीत हार उस ईश्वर के पल्ले बाँध दो. एक बार पवित्र अग्नि के सामने अपने संकल्प की घोषणा कर दो. एक बार कह दो कि अब हार भी उसकी और जीत भी उसकी, मैंने तो अपना सब उसे सौंप दिया. तुम्हारी हर हार जीत में न बदल जाए तो कहना. हर सुबह हवन की अग्नि में इदं न मम कहकर अपने काम शुरू करना और फिर अगर तुम्हे दुःख हो तो कहना. जिस घर में हवन की अग्नि हर दिन प्रज्ज्वलित होती है वहाँ अशुभ और हार के अँधेरे कभी नहीं टिकते. जिस घर में पवित्र अग्नि विराजमान हो उस घर में विनाश/अनिष्ट कभी नहीं हो सकता.
हवन- मेरा सबकुछ 
यज्ञ/हवन से सम्बंधित कुछ मन्त्रों के भाव सरल शब्दों में कुछ ऐसे हैं
– इस सृष्टि को रच कर जैसे ईश्वर हवन कर रहा है वैसे मैं भी करती हूँ.
– यह यज्ञ धनों का देने वाला है, इसे प्रतिदिन भक्ति से करो, उन्नति करो.
– हर दिन इस पवित्र अग्नि का आधान मेरे संकल्प को बढाता है.
– मैं इस हवन कुंड की अग्नि में अपने पाप और दुःख फूंक डालती हूँ.
– इस अग्नि की ज्वाला के समान सदा ऊपर को उठती हूँ.
– इस अग्नि के समान स्वतन्त्र विचरती हूँ, कोई मुझे बाँध नहीं सकता.
– अग्नि के तेज से मेरा मुखमंडल चमक उठा है, यह दिव्य तेज है.
– हवन कुंड की यह अग्नि मेरी रक्षा करती है.
– यज्ञ की इस अग्नि ने मेरी नसों में जान डाल दी है.
– एक हाथ से यज्ञ करती हूँ, दूसरे से सफलता ग्रहण करती हूँ.
– हवन के ये दिव्य मन्त्र मेरी जीत की घोषणा हैं.
– मेरा जीवन हवन कुंड की अग्नि है, कर्मों की आहुति से इसे और प्रचंड करती हूँ.
– प्रज्ज्वलित हुई हे हवन की अग्नि! तू मोक्ष के मार्ग में पहला पग है.
– यह अग्नि मेरा संकल्प है. हार और दुर्भाग्य इस हवन कुंड में राख बने पड़े हैं.
– हे सर्वत्र फैलती हवन की अग्नि! मेरी प्रसिद्धि का समाचार जन जन तक पहुँचा दे!
– इस हवन की अग्नि को मैंने हृदय में धारण किया है, अब कोई अँधेरा नहीं.
– यज्ञ और अशुभ वैसे ही हैं जैसे प्रकाश और अँधेरा. दोनों एक साथ नहीं रह सकते.
– भाग्य कर्म से बनते हैं और कर्म यज्ञ से. यज्ञ कर और भाग्य चमका ले!
– इस यज्ञ की अग्नि की रगड़ से बुद्धियाँ प्रज्ज्वलित हो उठती हैं.
– यह ऊपर को उठती अग्नि मुझे भी उठाती है.
– हे अग्नि! तू मेरे प्रिय जनों की रक्षा कर!
– हे अग्नि! तू मुझे प्रेम करने वाला साथी दे. शुभ गुणों से युक्त संतान दे!
– हे अग्नि! तू समस्त रोगों को जड़ से काट दे!
– अब यह हवन की अग्नि मेरे सीने में धधकती है, यह कभी नहीं बुझ सकती.
– नया दिन, नयी अग्नि और नयी जीत.
हे मानवमात्र! हृदय पर हाथ रखकर कहना, क्या दुनिया में
कोई दूसरी चीज इन शब्दों का मुकाबला कर सकती है? इस तरह के न जाने कितने चमत्कारी, रोगनाशक, बलवर्धक और जीत के मन्त्रों से यह हवन की प्रक्रिया भरी पड़ी है. जिंदगी की सब समस्याओं का नाश करने वाली और सुखों का अमृत पिलाने वाली यह हवन क्रिया मेरी संस्कृति का हिस्सा है, धर्म का हिस्सा है, आध्यात्म का हिस्सा है, यह सोच कर गर्व से सीना फूल जाता है. हवन मेरे लिए कोई कर्मकांड नहीं है. यह परमेश्वर का आदेश है, श्रीराम की मर्यादा की धरोहर है. श्रीकृष्ण की बंसी की तान है, रण क्षेत्र में पाञ्चजन्य शंख की गुंजार है, अधर्म पर धर्म की जीत की घोषणा है. हवन मेरी जीत का संकल्प है, मेरी जीत की मुहर है. मैं इसे कभी नहीं छोडूंगी.
मैं घोषणा करती हू कि अब हम हर घर में हवन करेंगे और करवाएंगे. न जाति का बंधन होगा और न मजहब की बेडियाँ. न रंग न नस्ल न स्त्री पुरुष का भेद. अब हर इंसान हवन करेगा, सुखी होगा!जो कोई भी व्यक्ति- हिन्दू,  मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, यहूदी, नास्तिक या कोई भी, हवन करना चाहता है, संकल्प करना चाहता है, वह कर सकता है। कोई जाति धर्म- मजहब या लिंग का भेद नहीं है।

सोमवार, 17 अगस्त 2015

"एसिड अटैक" केवल एक इंसान पर नहीं वरन् पूरी इंसानियत पर हमला है।

''दोस्‍ती करो वरना एसिड अटैक के लिए तैयार रहो''

लड़के  का एकतरफा प्यार,
लड़की के घर के .....चक्कर हजार मनुहार,
प्यार का   इज़हार लड़की का ....इन्कार,
लड़के का  फिर ..फिर इज़हार,
एकतरफा प्यार  का बढ़ता बुखार,
लड़की की बेरुखी ..और फिर इन्कार,
लड़के के पागलपन ..दीवानापन ... एकतरफा प्यार में इज़ाफा ...बेशुमार,
लड़की का  किसी और  से प्यार,
लड़के पर गुस्से का ..बुखार .. फिर से ...मनुहार,
..न मानी ..तो धमकाना और तकरार,
फिर भी   न मानी ...तो .. एसिड से प्रहार,
लड़की का चेहरा और शरीर बेकार,
ये तमाम स्टेज ज् हैं .......... आज  के,
एकतरफा प्यार के .. वे बेधड़क .....बेख़ौफ़,
अक्सर बड़े बाप की आवारा औलाद,
ताकत के ..पैसे के ..बाप के रसूख ..के मद में मस्त,
दुनिया अपनी जूती पर .. क्योकि उन्हें लगता है कि
कानून उनके सामने बौना है ..और पुलिस लाचार,
वे खेल समझतें है ..कर के ये अत्याचार,
पर बेचारी लड़की असह्य दर्द सहती है,
उसके चेहरे और शरीर के साथ साथ,
उसका पूरा अस्तित्व ...उसका मन ....... घायल हो जाता है,
जीवन तथा भविष्य तक जल जाता है नष्ट हो जाता है,
असह्य दर्द सहती ..छट पटाती,
चेहरे और शरीर के घाव छिपाती,
वोह सोंचती है क्या था कुसूर उसका ....?
उसे  सजा मिली .किस बात की ..?
फिर होता है पुलिस थाना .. कोर्ट कचेहरी ...गवाहियाँ..धमकियाँ,
टूटते गवाह ... बिखरते सबूत बहस मुबाहसा,
बरसों बरस चलते मुक़दमे .. बहुत सारे केसेस में कुछ नहीं,
होता क्योकि सबूत गवाह कम पड़ जाते हैं,
अपराधी अपने रसूख पैसे या ताकत के बल पर साफ़ छूट जाते हैं,
और सब के पास इतने पैसे ..संसाधन नहीं होते,
कि हमारी अदालतों में जिन्दगी भर लड़ें,
निचली अदालत से किसी प्रकार जीत भी गये,
तो और भी स्टेज ज् है  अपराध और  सजा के बीच,
उबकर या दबाव में या हिम्मत  हारकर चुप ..  बैठनेको मजबूर होते हैं,
और किस्मत पर रोते हैं ..
लड़की कोसती है अपनी जिन्दगी,
घरवाले  उसको और उसकी जिन्दगी,
रोते बिसूरते .कटती है उसकी जिन्दगी,
एक आनिश्चित भविष्य के साथ ..
और लड़का वैसे ही मस्त शाही,
अंदाज़ मैं जिन्दगी जीता है,
अपने कारनामे का ... शान से बखान करता,  
शान के साथ ..
पर प्रश्न है क्या यह सही है ...?
क्या हमारा तटस्थ रहना सही है ?
क्या सामाजिक स्तर पर हम कुछ कर सकतें हैं ...?
क्या जनमत बन सकता है ?
उस अपराधी के विरुद्ध,
क्योकि वोह लड़की आपकी बेटी भी हो सकती है,
बहन भी नातिन भी और पोती भी,
अतः असंलिप्त मत रहिये,
जागिये,
कुछ करिये वर्ना आप इन्हें केवल एसिड से  ही नहीं,
अन्य अपराधों जैसे बलात्कार .. दहेज़ हत्या...छेड़ छाड़ से भी,
नहीं बचा पायेगें ...
नहीं बचा पायेंगे नहीं बचा पायेंगे ... (समाप्त )

अपराध कही भी हो उसका सशक्त विरोध होना चाहिये यदि पास पड़ोस में किसी भी लड़की ..महिला पर जुल्म अत्याचार हो रहा है तो आलिप्त मत रहिये वोह भी किसी न किसी की बेटी बहन नातिन या पोती हो सकती है , और यदि आप चाहतें हैं कि आप की लड़की की उसके पडोसी मदद करें तो आप भी अपने पड़ोस में सजग रहें और समय रहतें उचित कार्यवाही करें . ...

भारतीय महिलाओं पर तेज़ाब हमले और कानूनों की यथार्थता

8मार्च को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया । उस दिन हर जगह कई तरह के कार्यक्रम हुए , महिला हिंसा पर विचार हुए , संगोष्ठी हुई । और उसके बाद साल के 364 दिन महिलाओं की वही बदहाल स्थिति रहेगी। देश में हिलाओं के साथ अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं। कभी यह अपराध यौन शोषण (बलात्कार) के रूप में सामने आ रहा है तो कभी एसिड अटैक के रूप में। कहने का तात्पर्य यह है  कि भारत में महिलाओं की दशा सोचनीय है। क्या इसकी वजह हमारा निठल्ला और कमजोर कानून है? ऐसा कानून जो लोगों के भीतर डर व दहशत बैठाने में असफल है?
एसिड अटैक महिलाओं के खिलाफ एक ऐसा अपराध है जो कि  इंसान को न सिर्फ शारीरिक क्षति बल्कि मानसिक क्षति भी पहुंचाता है। किसी लड़की या महिला पे तेज़ाब से हमला करना, सबसे क्रूर  हमला माना गया है। इसका कारण यह है कि यह इंसान को ज़िन्दगी भर के लिए दूसरे का मोहताज तो बना ही देता है साथ ही साथ उस इंसान की सामाजिक जीवन भी ख़त्म कर देता है। वह इंसान फिर से आत्मविश्वास के साथ समाज का सामना नही कर सकता।तेज़ाब हमला एक ऐसा हथियार है जिसे अमूमन चेहरे पर डाला जाता है, जिसका मक्सद अगले का चेहरा ख़राब करना होता है. इसकी ज्यादातर शिकार महिलायें होती हैं. कई बार पुरुष और बुजुर्ग भी तेज़ाब हमले का शिकार होते हैं.
एसिड अटैक एक ऐसा भयावह और अमानवीय अपराध है जो की इन्सान को एक असीम दर्द लेकर जीने को मजबूर कर देता है, एक ऐसे अँधेरे में डाल देता है जिसकी रोशनी का कोई ठिकाना नही होता। इस निर्दयी अपराध को अंजाम देने के लिए एचसीएल औरसलफ्यूरिक जैसे एसिड का प्रयोग किया जाता है। ऐसी स्थिति देखकर हम नारी सशक्तिकरण की बात कैसे कर सकते हैं? इन दिनों एसिड अटैक तेजी से फ़ैल रहा है। पर एसिड अटैक के बहुत कम ही मामले ऐसे हैं जो लोगों की नजर में आ पाते हैं। सोचने वाली बात तोयह है कि एसिड अटैक का शिकार सिर्फ आम लोग ही नही होते, ऐसे कई हाई प्रोफाइल लोग भी हैं जो ऐसे हादसों का शिकार हो चुके हैं।

तेज़ाब हमले के दुष्प्रभाव:एसिड अटैक सिर्फ शरीर का जलना ही नही है, ऐसे हाद्से अक्सर मन से लेकर आत्मा तक को छलनी कर जाते हैं। लोग अपनी पहचान खो बैठते हैं। वह चेहरा जो इन्सान की पहचान हुआ करता था, अपनी पहचान की तलाश करने लगता है। यह बस शरीर पर हमला नह होता, बल्कि उन सपनो , और उन अरमानो पर भी हमला होता है जो इन्सान ने कभी पिरोये थे। पीडिता की सामाजिक ज़िन्दगी ख़त्म सी हो जाती है। लोगों से मिलना जुलना, साथ उठना -बैठना सब बंद हो जाता है। ऐसे में इंसानों के सवालों का जवाब देना बहुत मुश्किलहो जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि इंसान बस पत्थर की मूरत, एक जिन्दा लाश बन के रह जाता है।

एसिड एक उच्च संक्षारक रासायनिक है जिसका न केवल मानव शरीर पर घातक प्रभाव पड़ता है बल्कि यह ऊतकों को भी पिघला देता है. कई स्थितियों में विरूपण के कारण उनके आत्म सम्मान और यहां तक कि सामाजिक, आर्थिक, स्थिति को नुकसान पहुंचता है,जिसके कारण पीड़ित को सामाजिक अलगाव का सामना करना पड़ता है .यदि एक अविवाहिता के ऊपर तेज़ाब हमला होता है, तो वह ज़िन्दगी भर अविवाहिता ही रह जाती है, क्योंकि रूढ़िवादी परिवार उसे नहीं अपनाता। पीडिता के साथ -साथ उसके घरवाले भी इसका परिणाम भुगतते हैं। कई बार तो सुरक्षा पाने के लिए उन्हें अपना घर तक छोड़ना पड़ जाता है.

हाल ही में लुधियाना में एक लड़की पर उस समय तेज़ाब हमला हुआ जब वह अपनी नई ज़िन्दगी की शुरुआत करने के लिए ब्यूटी पार्लर में शादी के लिए तैयार होने गई थी. ऐसा होने पर उसके ससुराल पक्ष के लोगों ने उसे अपने घर की बहु बनाने से  इंकार कर दिया था,हालांकि बाद में उसकी मौत हो गई.   तेज़ाब से हमला एक जघन्य अपराध है और इसमें कोई शक नहीं है अतः न्यायपालिका प्रणाली को अनुकरणीय दंड के साथ सामने आना चाहिए। इन मामलों में अपराधियों को रोकने के लिए सरकार को कड़े से कड़े कानून बनाना चाहिए। यह बलात्कार या हत्या से भी ज्यादा दर्द्पूर्ण है क्योंकि इसमें इंसान की मृत्यु नही होती बल्कि वह ज़िन्दगी भर दूसरो का मोहताज हो जाता और दर्द से उसका रिश्ता बन जाता है. ऐसे में कानून में आवश्यक संशोधन लाने की जरुरत है और इस मुद्दे के लिए सोसायटी को भी सभी संभव तरीको से  पीड़ितों का समर्थन करने के लिए आगे आना चाहिये।   हमारे समाज में परिपक्व और प्रगतिशील लोगों की जरूरत है जो कि ऐसे लोगों को देखकर अपने बच्चो को दूर हटाकर, बचकानी हरकते न करते हो. ये उनका दुर्भाग्य है कि उनके साथ ऐसा हुआ, वे भी इन्सान हैं.लोगों को तेज़ाब हमलो के शिकार हुए लोगों के विरूपण चेहरे को देख कर उनसे डर कर भागना नहीं चाहिए. इसके बजाय उन्हें उनकी मदद करनी चाहिए और उनसे मुस्कुरा कर बात करना चाहिए।

तेज़ाब हमले के कारण:   एसिड अटैक का कारण सिर्फ "रिजेक्शन" या किसी के प्रस्ताव को ठुकरा देना ही नही होता। बल्कि ऐसे कई और भी कारण सामने आयें हैं जिसकी वजह से इंसान ऐसा काम करता है। उनमे से कुछ हैं-
* प्रेम प्रस्ताव या शादी का प्रस्ताव ठुकराना
* दहेज़ की मांग न पूरी होना
* घरेलू कलह और
कभी कभी ऐसा भी होता है कि निशाना कोई और होता है पर शिकार बन जाता है कोई और। कहने का तात्पर्य यह है कि घटना के दौरान यदि पीडिता के साथ कोई और भी मौजूद है तो उसके ऊपर भी तेज़ाब की छींटे पड़ने की आशंका रहती है और कई बार ऐसा हुआ भी है।   एसिड अटैक मामलो में इन दिनों तेजी से इजाफा हो रहा है। इसका कारण बाजार में आसानी से मिल रहा तेज़ाब है। सरकार को जल्द से जल्द बाजार में तेज़ाब जैसे उत्पादों की बिक्री रोकनी चाहिए। ऐसे कई और चेहरे अपने पहचान की तलाश करे, उससे पहले सरकार को,कानून को ठोस कदम उठाने चहिये। ऐसी स्थिति में एक सवाल मन में आता है-क्या यह अँधेरा कभी उजाले में तब्दील होगा? क्या इस रात की सुबह होगी? या यूहीं कई आँखें गुमनामी में जाती जाएंगी। सवाल यह है कि क्या महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधो कीरोकथाम के लिए कोई उपाय है या नही?    एक शोध के मुताबिक पिछले 10 वर्षों में सिर्फ कर्नाटक में 98 ऐसे पीड़ित पाए गएँ है जो की तेज़ाब हमले का शिकार हो चुके हैं। वहीँ यदि एसिड अटैक पीड़ितों की मदद के लिए काम रहे एनजीओ की माने तो यह आंकड़ा 1000 तक है। लेकिन कई केसेस तो लोगो कीनजर में भी नही आ पाते। जिसका कारण कानून का निठल्लापन, पुलिस की लापरवाही और गैर जिम्मेदाराना रवैया है । कई बार तो पीड़ित और उसका परिवार खुद ही किसी बाहरी दबाव या बदनामी के डर से पुलिस को सूचना नही देते। आर्थिक कमजोरी भी इसकाकारण हो सकता है।

क्या है कानून: तेज़ाब हमले के खिलाफ हुए कानून में संशोधन भी ऐसे हमलो को रोकने में विफल साबित हो रही है।भारत में इस अपराध के खिलाफ कानून बहुत सख्त नहीं है। तेज़ाब हमले का शिकार होने के बाद इंसान की पूरी ज़िन्दगी ख़राब हो जाती है और ऐसा अपराध करने वालो की सजा बस 10 वर्ष है और 10 लाख का जुर्माना। यह स्थिति तब आती है जब मुजरिम पकड़ा जाता है। कई बार तो मुजरिम गिरफ्त में ही नही आता। पीडिता के परिवार वाले कभी बदनामी के डर से तो कभी बाहरी दबाव के कारण शिकायत ही नही दर्ज कराते।

क्या है सरकार का रवैया: देश में बढ़ते तेज़ाब हमले,सरकार  का ध्यान अपनी ओर नहीं केन्द्रित करवा पा रहे है। तभी तो सरकार तेज़ाब हमलो के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठा रही है। बीते 1 जून को तेज़ाब हमले का शिकार हुई दिल्ली की प्रीती राठी ने मुंबई के एक अस्पताल में अपना दमतोड़ दिया जिसके बाद देश के हर कोने से तेज़ाब हमले के खिलाफ आवाज़ उठी। ऐसे में अगर पीड़ित की मौत हो जाए तो सरकार का फर्ज बस मुआवजा भर देना है और परिवार के किसी एक सदस्य को नौकरी दिलवाना। बस इसके बाद सरकार का फर्ज ख़त्म।

मीडिया का स्त्रीविरोधी रूझान 
यह दिल दिमाग को सुन्न कर देने वाली खबर थी. टीवी के किसी चैनल पर इस विचलित कर देने वाली इस खबर को सुनने के कुछ ही घंटों बाद दिल्ली से प्रकाशित हिंदी की एक रंगीन महिला पत्रिका की रिपोर्टर का फोन एक पीड़िता को आया.
नाम पूछा तो उसने कहा- प्रीति !
फिर उसने 'एसिड अटैक' सम्बन्धित लेख प्रकाशित करने में असमर्थता व्यक्त की।
पीड़िता- क्यूं प्रकाशित नहीं हो सकता ये गम्भीर मुद्दा.?
हँसते हुए जवाब मिला- हमने मार्च अंक में गंभीर मुद्दे भी उठाये थे पर वो कोई पसंद नहीं करता !
हाल ही में बाज़ार में लॉन्च हुई इस गृहिणी प्रधान महिला पत्रिका को बेचने के लिये हर अंक में सिर्फ कामयुक्त विष़यों की ही ज़रूरत क्यों पड़ती है ?
हाल ही में बाज़ार में लॉन्च हुई इस गृहिणी प्रधान महिला पत्रिका को बेचने के लिये हर अंक में सिर्फ कामयुक्त विषयों की ही ज़रूरत क्यों पड़ती है ? कौन-सी महिलायें हैं जो उत्तर मेनोपोज स्त्री की कामभावना के ज्ञान से अपने दिमाग को तरोताजा बनाये रखना चाहती हैं ? क्या महिलाओं का नया पाठक वर्ग अपने समय और उसके सवालों से पूरी तरह कट गया है और वे किसी गंभीर मुद्दे पर प्रकाशित कोई सामग्री नहीं पढ़ते ?
ये सारे सवाल उस भयावहता की तरफ दिल-दिमाग को बार-बार ले जाते हैं, जो स्त्री के खिलाफ एक फिनोमिना तैयार करते हैं और तब हम पाते हैं कि केवल पुलिस और अदालतें ही नहीं, मीडिया भी बहुत कुछ स्त्री-विरोधी रुझानों से संचालित है. लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाने वाला मीडिया इन प्रवृत्तियों से लड़ने और उन पर सवाल खड़ा करने की जगह, स्त्री को एक कमोडिटी की तरह ही पेश कर रहा है.
स्त्रियों के लिए लगातार भयावह होती जा रही इस दुनिया के बारे में गंभीरता से विमर्श होना चाहिये क्योंकि आज की सबसे बडी चिंता यह है कि कानून की सख्ती के बावजूद अपराधी इस कदर बेलगाम क्यों हुये जा रहे हैं और ऐसी घटनाओं को बार-बार दोहराया क्यों जा रहा है ? सड़क पर उतर आई युवाओं की भीड़ हममें जनांदोलन का जज्बा पैदा करती है पर हर उम्मीद ऐसे हादसों में दम तोड़ती नजर आती है.

क्या हो उपाय:   तेज़ाब हमले के खिलाफ हुए कानून में संशोधन भी ऐसे हमलो को रोकने में विफल साबित हो रही है। ऐसे में बस एक ही उपाय बचता है-बाजार में तेज़ाब की  बिक्री पर रोक लगाना। तेज़ाब हमलो में तेजी से इजाफा होने का एकमात्र कारण यही है। कोई भी आसानी से,बिना किसी सवाल के बाजार से तेजाब खरीद  सकता है। 30 -35 रूपए में यह तेज़ाब, इंसान की पूरी ज़िन्दगी तबाह कर सकता है। सल्फयूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड और एचसीएल जैसे तेज़ाब सस्ते होने के साथ साथ बाजार में आसानी स उपलब्ध है। इन पर नियंत्रणलगाना बेहद जरूरी हो गया है। सरकार यह भी कर सकती है कि जो भी दुकानदार तेज़ाब बेच रहा है, उसके पास उसका लाइसेंस होना अनिवार्य हो। यदि ऐसा न हुआ तो, दुकानदार के खिलाफ सख्त कदम उठाया जाए।
एसिड अटैक के अपराधी के मृत्युदण्ड का प्रावधान होना चाहिए।

दूसरे देशो में क्या है कानून: बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशो में भी तेज़ाब हमलो की तादाद ज्यादा है। कंबोडिया भी उसमे शामिल है। पर ऐसे देशो ने तेज़ाब हमले के खिलाफ अपना रूझान सख्त कर लिया है। पाकिस्तान और बांग्लादेश,बाजार में तेज़ाब की बिक्री पर नियंत्रण लगाने में कामयाबसिद्ध हुए हैं। जब ऐसे देश  ने तेज़ाब हमले को रोकने के लिए यह कदम उठाया है तो भारत ऐसा करने में विलंभ क्यों कर रहा है? वहां तेज़ाब के लेन देन में, इस्तेमाल करने में और तेज़ाब की बिक्री पर पूरा नियंत्रण लगा दिया गया है।

बांग्लादेश: बांग्लादेश ने साल 2002 में तेज़ाब हमले के खिलाफ 2 एक्ट लागू किए थे। पहला था बाजार में तेज़ाब की बिक्री पर रोक के तहत और दूसरा तेज़ाब हमलो को रोकने के तहत। 2002 में बंगलादेश में तेजाब हमलो में तेजी से इजाफा हुआ था। वहां उस साल 495तेज़ाब हमले हुए थे। जबकि कानून में हुए संशोधन के बाद पिछले साल केवल 98 केस ही सामने आयें हैं. बांग्लादेश में तेज़ाब हमलेवार को सजा ए मौत मिलती है। पीडिता के शरीर पर दुष्प्रभाव ही आरोपी की सजा तय करता है। यदि पीडिता सुनने की शक्ति खो बैठती हैया पीडिता का चेहरा, स्तन और सेक्स ओर्गंस चपेट में आ जाते हैं तो ऐसी स्थिति में आरोपी को मौत की सजा या फिर आजीवन कारावास की सजा होती हैं। इन अंगो के अलावा अगर कोई हिस्सा तेज़ाब की चपेट में आता है तो हमलेवार को 7 से 14 साल की सजा होतीहै। इसके अतिरिक्त यदि कोई तेज़ाब हमला करने की कोशिश करता है तो उसे 3-5 साल की सजा होती है।
इसी तरह पाकिस्तान और कंबोडिया में भी तेज़ाब हमले के खिलाफ सख्त प्रावधान लागू हुए हैं। इस मामले में बस भारत ही पीछे हैं। 

सुप्रीम कोर्ट:अमूमन देखा गया है कि तेज़ाब से हमले के बाद इन्सान की मौत तो नही होती, पर जिंदगी मौत से बत्हर हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट(18 जुलाई 2013) ने एक फैसला सुनाया जिससे तेज़ाब हमले की बढ़ोतरी पर लगाम लग सकती है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले केअनुसार अब जहर की श्रेणी में आयेगा तेज़ाब और कोई भी बिना लाइसेंस के तेज़ाब नही खरीद सकता। इसके अलावा और भी कई संशोधन किए गए हैं. तेज़ाब पीड़ितों को 3 लाख रूपए मुआवजा दिया जाएगा जिसमे कि 1 लाख हमले के 15 दिन के अन्दर देना होगा।इसके साथ ही तेजाब हमले के आरोपी को 10 साल से लेकर आजीवन कारावास हो सकती है. ये फैसला 17 जुलाई को तब आया जब 22 वर्षीय लक्ष्मी, लगातार कोर्ट के चक्कर लगा रही थी और पीआईएल भी साइन करवाया जिसमे कई लाखो लोगों ने उसका समर्थनकिया। लक्ष्मी के साथ 7 साल पहले तेज़ाब हमला हुआ था जब वह सिर्फ 15 साल की थी.  महिलाओं के खिलाफ एसिड अटैक की बढती घटनाओं को देखते हुए सरकार ने बड़ा फैसला लिया है.एसिड को अब जहर की केटेगरी में रखा जाएगा। इसके साथ ही एसिड की सेल के लिए लाइसेंस लेना जरुरी हो गया है और तेज़ाब की खरीद के लिए पहचान पत्र अभीअनिवार्य हो गया है.साथ ही खुदरा बाजार में बिकने वाला तेज़ाब अब कम हानिकारक होगा क्योंकि उसकी क्षमता कम कर दी जाएगी। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि तेज़ाब हमले की बढती घटनाओं के मद्देनज़र रखते तेज़ाब और दूसरे विषाक्त पदार्थो की खुदराबाजार में तेज़ाब की बिक्री को नियंत्रित करने के लिए मौजूदा कानून के तहत ही नियम बनाये है.
कानून में बदलाव के बाद भी तेजाबी हमलो में रोकथाम नहीं लग  पा रही है.आए दिन हमलोन में बढ़ोतरी हो रही है. तेज़ाब हमला समाज में पनपा एक जघन्य अपराध है. ये समाज की ही फैलाई हुई गंदगी है और बाद में समाज ही इन्हें नहीं अपनाता। कब ख़त्म होगाबदला लेने का ये क्रूर तरीका? एक तो वो पहले से ही दर्द झेल रहे होते हैं ऊपर से उनके लिए समाज का रवैया उन्हें जीने नही देता। लोग तेज़ाब हमले का शिकार हुए लोगों का विरूपण देख कर भागने लगते हैं, उनसे डरते हैं। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिये बल्कि मुस्कुराकर उनसे बात करनी चाहिए।

एक नजीर
तेजाब सिर्फ चेहरा ही नहीं पूरी जिंदगी जला देता है. बोकारो की सोनाली मुखर्जी तो अब एक आंख से देख भी नहीं पाती. पर उन्हें खोजते हुए उनकी खुशियां यानी की चितरंजन तिवारी ओडिशा के तलचर से बोकारो तक आ गए. चार दिन पहले 15 अप्रैल को शादी भी कर ली. चितरंजन इंजीनियर हैं. जब उनसे पूछा कि इस फैसले की वजह क्या रही? तो वो बोले- ‘कुछ ऐसा करना चाहता था जिससे मुझे खुद पर गर्व हो और मैंने शादी का फैसला कर लिया.’
सोनाली का कहना है कि चितरंजन ने मुझे क्राइम पैट्रोल में देखा था. फिर मेरे बारे में पता किया. वहीं चितरंजन के मुताबिक उन्हे बहुत पापड़ बेलने पड़े. टीवी में सोनाली को देखने के बाद इनके बारे में इंटरनेट पर खोजना शुरू किया. वहां से पता और इनके भाई का फोन नंबर मिला. भाई के जरिए ही सोनाली से पहली बार बात हुई. फिर तो हम घंटों बातें करने लगे. उसी बीच एक दिन प्रपोज कर दिया. पहले लगा कि ये भावुक होकर ऐसा बोल रहे हैं तो मैंने मना कर दिया. उसके बाद दो महीने लग गए इन्हें मुझे मनाने में.
प्रपोज करने तक तो चितरंजन ने सोनाली को देखा भी नहीं था. हमारी लंबी बातें होती थीं. सोच भी मिलने लगी थी. जब मैंने शादी की बात की तो उसे लगा कि मजाक उड़ा रहा हूं. उसने कहा- ऐसी बातों से तकलीफ होती है. कुछ लड़के उसे ऐसा कह कर परेशान कर चुके थे. तब मुझे सबसे ज्यादा दुख होता था.
पिछले 11 सालों में सोनाली मुखर्जी की 34 सर्जरी हो चुकी है. उनके माँ-बाप ने ज़ेवर, ज़मीन सब बेच दिया. अभी भी नौ सर्जरी होनी बाकी हैं जिसके लिए लाखों रुपए की ज़रुरत है. सोनाली कहती हैं कि आज भी लड़कियों पर तेज़ाब फ़ेंकने की ख़बरें आती हैं तो उन्हें लगता है कि जैसे वो फिर से झुलस गई हों.
आपको बता दें कि अप्रैल 2003 की रात को सोनाली पर तेज़ाब फेंक दिया गया था और वो झुलस गई थीं. 12 साल बाद अप्रैल की ही एक शाम उनकी ज़िंदगी में नई ख़ुशियाँ लेकर आई.

अज्ञानतावश R.I.P बोलकर न करें मृतजनों का अपमान....! जाने सच्चाई और शेयर करे। पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें...!


मंगलवार, 4 अगस्त 2015

R.I.P बोलकर न करें अज्ञानतावश किसी आत्मा का अपमान....!!! जानें सत्य सभी तक पहुंचायें ...

RIP का मतलब क्या है
ये "रिप-रिप-रिप-रिप" क्या है? 


आजकल देखने में आया है कि किसी मृतात्मा के प्रति RIP लिखने का "फैशन" चल पड़ा है. ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि कान्वेंटी दुष्प्रचार तथा विदेशियों की नकल के कारण हमारे युवाओं को धर्म की मूल अवधारणाएँ, या तो पता ही नहीं हैं, अथवा विकृत हो चुकी हैं...

RIP शब्द का अर्थ होता है "Rest in Peace" (शान्ति से आराम करो). यह शब्द उनके लिए उपयोग किया जाता है जिन्हें कब्र में दफनाया गया हो. क्योंकि ईसाई अथवा मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार जब कभी "जजमेंट डे" अथवा "क़यामत का दिन" आएगा, उस दिन कब्र में पड़े ये सभी मुर्दे पुनर्जीवित हो जाएँगे... अतः उनके लिए कहा गया है, कि उस क़यामत के दिन के इंतज़ार में "शान्ति से आराम करो".

लेकिन हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार शरीर नश्वर है, आत्मा अमर है. हिन्दू शरीर को जला दिया जाता है, अतः उसके "Rest in Peace" का सवाल ही नहीं उठता. हिन्दू धर्म के अनुसार मनुष्य की मृत्यु होते ही आत्मा निकलकर किसी दूसरे नए जीव/काया/शरीर/नवजात में प्रवेश कर जाती है... उस आत्मा को अगली यात्रा हेतु गति प्रदान करने के लिए ही श्राद्धकर्म की परंपरा निर्वहन एवं शान्तिपाठ आयोजित किए जाते हैं. अतः किसी हिन्दू मृतात्मा हेतु "विनम्र श्रद्धांजलि", "श्रद्धांजलि", "आत्मा को सदगति प्रदान करें" जैसे वाक्य विन्यास लिखे जाने चाहिए.

होता यह है कि श्रद्धांजलि देते समय भी "शॉर्टकट(?)अपनाने की आदत से हममें से कई मित्र हिन्दू मृत्यु पर भी "RIP" ठोंक आते हैं... यह विशुद्ध "अज्ञान और जल्दबाजी" है, इसके अलावा कुछ नहीं... अतः कोशिश करें कि भविष्य में यह गलती ना हो एवं हम लोग "दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि" प्रदान करें... ना कि उसे RIP (apart) करें. मूल बात यह है कि चूँकि अंग्रेजी शब्द SOUL का हिन्दी अनुवाद "आत्मा" नहीं हो सकता, इसलिए स्वाभाविक रूप से "RIP और श्रद्धांजलि" दोनों का अर्थ भी पूर्णरूप से भिन्न है.

धार्मिक अज्ञान एवं संस्कार-परम्पराओं के प्रति उपेक्षा की यही पराकाष्ठा, अक्सर हमें ईद अथवा क्रिसमस पर देखने को मिलती है, जब अपने किसी ईसाई मित्र अथवा मुस्लिम मित्र को बधाईयाँ एवं शुभकामनाएँ देना तो तार्किक एवं व्यावहारिक रूप से समझ में आता है, लेकिन "दो हिन्दू मित्र" आपस में एक-दूसरे को ईद की शुभकामनाएँ अथवा "दो हिन्दू मित्रानियाँ" आपस में क्रिसमस केक बाँटती फिरती रहें... अथवा क्रिसमस ट्री सजाने एक-दूसरे के घर जाएँ, तो समझिए कि निश्चित ही कोई गंभीर "बौद्धिक-सांस्कारिक गडबड़ी" है...
चूंकि इसाई और इस्लाम में सत्यता है ही नहीं अतः किसी के लिए भी R.I.P लिखने का कोई मतलब नहीं......!!

शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का "महाविज्ञान" जानें हर हिन्दू...! पढ़ें और शेयर करें....! हिन्दूविरोधियों पर तमाचा...! पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें........!

सोमवार, 3 अगस्त 2015

शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का "महाविज्ञान" जानें हर हिन्दू...! पढ़ें और शेयर करें....!

शिवलिंग पर दूध क्यों चढ़ाते हैं..????


यहाँ दो पात्र हैं : एक है भारतीय और एक है इंडियन ! 
आइए देखते हैं दोनों में क्या बात होती है !

इंडियन : ये शिव रात्रि पर जो तुम इतना दूध चढाते हो शिवलिंग पर, इस से अच्छा तो ये हो कि ये दूध जो बहकर नालियों में बर्बाद हो जाता है, उसकी बजाए गरीबों मे बाँट दिया जाना चाहिए ! तुम्हारे शिव जी से ज्यादा उस दूध की जरुरत देश के गरीब लोगों को है. दूध बर्बाद करने की ये कैसी आस्था है ?
भारतीय : सीता को ही हमेशा अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है, कभी रावण पर प्रश्न चिन्ह क्यूँ नहीं लगाते तुम ?
इंडियन : देखा ! अब अपने दाग दिखने लगे तो दूसरों पर ऊँगली उठा रहे हो ! जब अपने बचाव मे कोई उत्तर नहीं होता, तभी लोग दूसरों को दोष देते हैं. सीधे-सीधे क्यूँ नहीं मान लेते कि ये दूध चढाना और नालियों मे बहा देना एक बेवकूफी से ज्यादा कुछ नहीं है !
भारतीय : अगर मैं आपको सिद्ध कर दूँ की शिवरात्री पर दूध चढाना बेवकूफी नहीं समझदारी है तो ?
इंडियन : हाँ बताओ कैसे ? अब ये मत कह देना कि फलां वेद मे ऐसा लिखा है इसलिए हम ऐसा ही करेंगे, मुझे वैज्ञानिक तर्क चाहिएं.
भारतीय : ओ अच्छा, तो आप विज्ञान भी जानते हैं ? कितना पढ़े हैं आप ?
इंडियन : जी, मैं ज्यादा तो नहीं लेकिन काफी कुछ जानता हूँ, एम् टेक किया है, नौकरी करता हूँ. और मैं अंध विशवास मे बिलकुल भी विशवास नहीं करता, लेकिन भगवान को मानता हूँ.
भारतीय : आप भगवान को मानते तो हैं लेकिन भगवान के बारे में जानते नहीं कुछ भी. अगर जानते होते, तो ऐसा प्रश्न ही न करते ! आप ये तो जानते ही होंगे कि हम लोग त्रिदेवों को मुख्य रूप से मानते हैं : ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी (ब्रह्मा विष्णु महेश) ?
इंडियन : हाँ बिलकुल मानता हूँ.
भारतीय : अपने भारत मे भगवान के दो रूपों की विशेष पूजा होती है :
विष्णु जी की और शिव जी की ! ये शिव जी जो हैं, इनको हम क्या कहते हैं – भोलेनाथ, तो भगवान के एक रूप को हमने भोला कहा है तो दूसरा रूप क्या हुआ ? इंडियन (हँसते हुए) : चतुर्नाथ !
भारतीय : बिलकुल सही ! देखो, देवताओं के जब प्राण संकट मे आए तो वो भागे विष्णु जी के पास, बोले “भगवान बचाओ ! ये असुर मार देंगे हमें”. तो विष्णु जी बोले अमृत पियो. देवता बोले अमृत कहाँ मिलेगा ? विष्णु जी बोले इसके लिए समुद्र मंथन करो ! तो समुद्र मंथन शुरू हुआ, अब इस समुद्र मंथन में कितनी दिक्कतें आई ये तो तुमको पता ही होगा, मंथन शुरू किया तो अमृत निकलना तो दूर विष निकल आया, और वो भी सामान्य विष नहीं हलाहल विष ! भागे विष्णु जी के पास सब के सब ! बोले बचाओ बचाओ ! तो चतुर्नाथ जी, मतलब विष्णु जी बोले, ये अपना डिपार्टमेंट नहीं है, अपना तो अमृत का डिपार्टमेंट है और भेज दिया भोलेनाथ के पास ! भोलेनाथ के पास गए तो उनसे भक्तों का दुःख देखा नहीं गया, भोले तो वो हैं ही, कलश उठाया और विष पीना शुरू कर दिया ! ये तो धन्यवाद देना चाहिए पार्वती जी का कि वो पास में बैठी थी, उनका गला दबाया तो ज़हर नीचे नहीं गया और नीलकंठ बनके रह गए.
इंडियन : क्यूँ पार्वती जी ने गला क्यूँ दबाया ?
भारतीय : पत्नी हैं ना, पत्नियों को तो अधिकार होता है .. किसी गण की हिम्मत होती क्या जो शिव जी का गला दबाए……अब आगे सुनो फिर बाद मे अमृत निकला ! अब विष्णु जी को किसी ने invite किया था ???? मोहिनी रूप धारण करके आए और अमृत लेकर चलते बने. और सुनो – तुलसी स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती है, स्वादिष्ट भी, तो चढाई जाती है कृष्ण जी को (विष्णु अवतार). लेकिन बेलपत्र कड़वे होते हैं, तो चढाए जाते हैं भगवान भोलेनाथ को !
हमारे कृष्ण कन्हैया को 56 भोग लगते हैं, कभी नहीं सुना कि 55 या 53 भोग लगे हों, हमेशा 56 भोग ! और हमारे शिव जी को ? राख , धतुरा ये सब चढाते हैं, तो भी भोलेनाथ प्रसन्न ! कोई भी नई चीज़ बनी तो सबसे पहले विष्णु जी को भोग ! दूसरी तरफ शिव रात्रि आने पर हमारी बची हुई गाजरें शिव जी को चढ़ा दी जाती हैं…… अब मुद्दे पर आते हैं……..इन सबका मतलब क्या हुआ ??? _________________________________________________________________ विष्णु जी हमारे पालनकर्ता हैं, इसलिए जिन चीज़ों से हमारे प्राणों का रक्षण-पोषण होता है वो विष्णु जी को भोग लगाई जाती हैं ! _________________________________________________________________ और शिव जी ? __________________________________________________________________ शिव जी संहारकर्ता हैं, इसलिए जिन चीज़ों से हमारे प्राणों का नाश होता है, मतलब जो विष है, वो सब कुछ शिव जी को भोग लगता है !

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इंडियन : ओके ओके, समझा !
भारतीय : आयुर्वेद कहता है कि वात-पित्त-कफ इनके असंतुलन से बीमारियाँ होती हैं और श्रावण के महीने में वात की बीमारियाँ सबसे ज्यादा होती हैं. श्रावण के महीने में ऋतू परिवर्तन के कारण शरीर मे वात बढ़ता है. इस वात को कम करने के लिए क्या करना पड़ता है ? ऐसी चीज़ें नहीं खानी चाहिएं जिनसे वात बढे, इसलिए पत्ते वाली सब्जियां नहीं खानी चाहिएं ! और उस समय पशु क्या खाते हैं ?
इंडियन : क्या ?
भारतीय : सब घास और पत्तियां ही तो खाते हैं. इस कारण उनका दूध भी वात को बढाता है ! इसलिए आयुर्वेद कहता है कि श्रावण के महीने में (जब शिवरात्रि होती है !!) दूध नहीं पीना चाहिए. इसलिए श्रावण मास में जब हर जगह शिव रात्रि पर दूध चढ़ता था तो लोग समझ जाया करते थे कि इस महीने मे दूध विष के सामान है, स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, इस समय दूध पिएंगे तो वाइरल इन्फेक्शन से बरसात की बीमारियाँ फैलेंगी और वो दूध नहीं पिया करते थे ! इस तरह हर जगह शिव रात्रि मनाने से पूरा देश वाइरल की बीमारियों से बच जाता था !
समझे कुछ ?
इंडियन : omgggggg !!!! यार फिर तो हर गाँव हर शहर मे शिव रात्रि मनानी चाहिए, इसको तो राष्ट्रीय पर्व घोषित होना चाहिए !
भारतीय : हम्म….लेकिन ऐसा नहीं होगा भाई कुछ लोग साम्प्रदायिकता देखते हैं, विज्ञान नहीं ! और सुनो. बरसात में भी बहुत सारी चीज़ें होती हैं लेकिन हम उनको दीवाली के बाद अन्नकूट में कृष्ण भोग लगाने के बाद ही खाते थे (क्यूंकि तब वर्षा ऋतू समाप्त हो चुकी होती थी).
एलोपैथ कहता है कि गाजर मे विटामिन ए होता है आयरन होता है लेकिन आयुर्वेद कहता है कि शिव रात्रि के बाद गाजर नहीं खाना चाहिए इस ऋतू में खाया गाजर पित्त को बढाता है ! तो बताओ अब तो मानोगे ना कि वो शिव रात्रि पर दूध चढाना समझदारी है ?
इंडियन : बिलकुल भाई, निःसंदेह ! ऋतुओं के खाद्य पदार्थों पर पड़ने वाले प्रभाव को ignore करना तो बेवकूफी होगी.
भारतीय : ज़रा गौर करो, हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है ! ये इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारी परम्पराओं को समझने के लिए जिस विज्ञान की आवश्यकता है वो हमें पढ़ाया नहीं जाता और विज्ञान के नाम पर जो हमें पढ़ाया जा रहा है उस से हम अपनी परम्पराओं को समझ नहीं सकते ! जिस संस्कृति की कोख से मैंने जन्म लिया है वो सनातन (=eternal) है, विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें !
हमें अपनी परम्पराओं पर सदा गर्व था और सदा रहेगा....

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