सोमवार, 17 अगस्त 2015

"एसिड अटैक" केवल एक इंसान पर नहीं वरन् पूरी इंसानियत पर हमला है।

''दोस्‍ती करो वरना एसिड अटैक के लिए तैयार रहो''

लड़के  का एकतरफा प्यार,
लड़की के घर के .....चक्कर हजार मनुहार,
प्यार का   इज़हार लड़की का ....इन्कार,
लड़के का  फिर ..फिर इज़हार,
एकतरफा प्यार  का बढ़ता बुखार,
लड़की की बेरुखी ..और फिर इन्कार,
लड़के के पागलपन ..दीवानापन ... एकतरफा प्यार में इज़ाफा ...बेशुमार,
लड़की का  किसी और  से प्यार,
लड़के पर गुस्से का ..बुखार .. फिर से ...मनुहार,
..न मानी ..तो धमकाना और तकरार,
फिर भी   न मानी ...तो .. एसिड से प्रहार,
लड़की का चेहरा और शरीर बेकार,
ये तमाम स्टेज ज् हैं .......... आज  के,
एकतरफा प्यार के .. वे बेधड़क .....बेख़ौफ़,
अक्सर बड़े बाप की आवारा औलाद,
ताकत के ..पैसे के ..बाप के रसूख ..के मद में मस्त,
दुनिया अपनी जूती पर .. क्योकि उन्हें लगता है कि
कानून उनके सामने बौना है ..और पुलिस लाचार,
वे खेल समझतें है ..कर के ये अत्याचार,
पर बेचारी लड़की असह्य दर्द सहती है,
उसके चेहरे और शरीर के साथ साथ,
उसका पूरा अस्तित्व ...उसका मन ....... घायल हो जाता है,
जीवन तथा भविष्य तक जल जाता है नष्ट हो जाता है,
असह्य दर्द सहती ..छट पटाती,
चेहरे और शरीर के घाव छिपाती,
वोह सोंचती है क्या था कुसूर उसका ....?
उसे  सजा मिली .किस बात की ..?
फिर होता है पुलिस थाना .. कोर्ट कचेहरी ...गवाहियाँ..धमकियाँ,
टूटते गवाह ... बिखरते सबूत बहस मुबाहसा,
बरसों बरस चलते मुक़दमे .. बहुत सारे केसेस में कुछ नहीं,
होता क्योकि सबूत गवाह कम पड़ जाते हैं,
अपराधी अपने रसूख पैसे या ताकत के बल पर साफ़ छूट जाते हैं,
और सब के पास इतने पैसे ..संसाधन नहीं होते,
कि हमारी अदालतों में जिन्दगी भर लड़ें,
निचली अदालत से किसी प्रकार जीत भी गये,
तो और भी स्टेज ज् है  अपराध और  सजा के बीच,
उबकर या दबाव में या हिम्मत  हारकर चुप ..  बैठनेको मजबूर होते हैं,
और किस्मत पर रोते हैं ..
लड़की कोसती है अपनी जिन्दगी,
घरवाले  उसको और उसकी जिन्दगी,
रोते बिसूरते .कटती है उसकी जिन्दगी,
एक आनिश्चित भविष्य के साथ ..
और लड़का वैसे ही मस्त शाही,
अंदाज़ मैं जिन्दगी जीता है,
अपने कारनामे का ... शान से बखान करता,  
शान के साथ ..
पर प्रश्न है क्या यह सही है ...?
क्या हमारा तटस्थ रहना सही है ?
क्या सामाजिक स्तर पर हम कुछ कर सकतें हैं ...?
क्या जनमत बन सकता है ?
उस अपराधी के विरुद्ध,
क्योकि वोह लड़की आपकी बेटी भी हो सकती है,
बहन भी नातिन भी और पोती भी,
अतः असंलिप्त मत रहिये,
जागिये,
कुछ करिये वर्ना आप इन्हें केवल एसिड से  ही नहीं,
अन्य अपराधों जैसे बलात्कार .. दहेज़ हत्या...छेड़ छाड़ से भी,
नहीं बचा पायेगें ...
नहीं बचा पायेंगे नहीं बचा पायेंगे ... (समाप्त )

अपराध कही भी हो उसका सशक्त विरोध होना चाहिये यदि पास पड़ोस में किसी भी लड़की ..महिला पर जुल्म अत्याचार हो रहा है तो आलिप्त मत रहिये वोह भी किसी न किसी की बेटी बहन नातिन या पोती हो सकती है , और यदि आप चाहतें हैं कि आप की लड़की की उसके पडोसी मदद करें तो आप भी अपने पड़ोस में सजग रहें और समय रहतें उचित कार्यवाही करें . ...

भारतीय महिलाओं पर तेज़ाब हमले और कानूनों की यथार्थता

8मार्च को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया । उस दिन हर जगह कई तरह के कार्यक्रम हुए , महिला हिंसा पर विचार हुए , संगोष्ठी हुई । और उसके बाद साल के 364 दिन महिलाओं की वही बदहाल स्थिति रहेगी। देश में हिलाओं के साथ अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं। कभी यह अपराध यौन शोषण (बलात्कार) के रूप में सामने आ रहा है तो कभी एसिड अटैक के रूप में। कहने का तात्पर्य यह है  कि भारत में महिलाओं की दशा सोचनीय है। क्या इसकी वजह हमारा निठल्ला और कमजोर कानून है? ऐसा कानून जो लोगों के भीतर डर व दहशत बैठाने में असफल है?
एसिड अटैक महिलाओं के खिलाफ एक ऐसा अपराध है जो कि  इंसान को न सिर्फ शारीरिक क्षति बल्कि मानसिक क्षति भी पहुंचाता है। किसी लड़की या महिला पे तेज़ाब से हमला करना, सबसे क्रूर  हमला माना गया है। इसका कारण यह है कि यह इंसान को ज़िन्दगी भर के लिए दूसरे का मोहताज तो बना ही देता है साथ ही साथ उस इंसान की सामाजिक जीवन भी ख़त्म कर देता है। वह इंसान फिर से आत्मविश्वास के साथ समाज का सामना नही कर सकता।तेज़ाब हमला एक ऐसा हथियार है जिसे अमूमन चेहरे पर डाला जाता है, जिसका मक्सद अगले का चेहरा ख़राब करना होता है. इसकी ज्यादातर शिकार महिलायें होती हैं. कई बार पुरुष और बुजुर्ग भी तेज़ाब हमले का शिकार होते हैं.
एसिड अटैक एक ऐसा भयावह और अमानवीय अपराध है जो की इन्सान को एक असीम दर्द लेकर जीने को मजबूर कर देता है, एक ऐसे अँधेरे में डाल देता है जिसकी रोशनी का कोई ठिकाना नही होता। इस निर्दयी अपराध को अंजाम देने के लिए एचसीएल औरसलफ्यूरिक जैसे एसिड का प्रयोग किया जाता है। ऐसी स्थिति देखकर हम नारी सशक्तिकरण की बात कैसे कर सकते हैं? इन दिनों एसिड अटैक तेजी से फ़ैल रहा है। पर एसिड अटैक के बहुत कम ही मामले ऐसे हैं जो लोगों की नजर में आ पाते हैं। सोचने वाली बात तोयह है कि एसिड अटैक का शिकार सिर्फ आम लोग ही नही होते, ऐसे कई हाई प्रोफाइल लोग भी हैं जो ऐसे हादसों का शिकार हो चुके हैं।

तेज़ाब हमले के दुष्प्रभाव:एसिड अटैक सिर्फ शरीर का जलना ही नही है, ऐसे हाद्से अक्सर मन से लेकर आत्मा तक को छलनी कर जाते हैं। लोग अपनी पहचान खो बैठते हैं। वह चेहरा जो इन्सान की पहचान हुआ करता था, अपनी पहचान की तलाश करने लगता है। यह बस शरीर पर हमला नह होता, बल्कि उन सपनो , और उन अरमानो पर भी हमला होता है जो इन्सान ने कभी पिरोये थे। पीडिता की सामाजिक ज़िन्दगी ख़त्म सी हो जाती है। लोगों से मिलना जुलना, साथ उठना -बैठना सब बंद हो जाता है। ऐसे में इंसानों के सवालों का जवाब देना बहुत मुश्किलहो जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि इंसान बस पत्थर की मूरत, एक जिन्दा लाश बन के रह जाता है।

एसिड एक उच्च संक्षारक रासायनिक है जिसका न केवल मानव शरीर पर घातक प्रभाव पड़ता है बल्कि यह ऊतकों को भी पिघला देता है. कई स्थितियों में विरूपण के कारण उनके आत्म सम्मान और यहां तक कि सामाजिक, आर्थिक, स्थिति को नुकसान पहुंचता है,जिसके कारण पीड़ित को सामाजिक अलगाव का सामना करना पड़ता है .यदि एक अविवाहिता के ऊपर तेज़ाब हमला होता है, तो वह ज़िन्दगी भर अविवाहिता ही रह जाती है, क्योंकि रूढ़िवादी परिवार उसे नहीं अपनाता। पीडिता के साथ -साथ उसके घरवाले भी इसका परिणाम भुगतते हैं। कई बार तो सुरक्षा पाने के लिए उन्हें अपना घर तक छोड़ना पड़ जाता है.

हाल ही में लुधियाना में एक लड़की पर उस समय तेज़ाब हमला हुआ जब वह अपनी नई ज़िन्दगी की शुरुआत करने के लिए ब्यूटी पार्लर में शादी के लिए तैयार होने गई थी. ऐसा होने पर उसके ससुराल पक्ष के लोगों ने उसे अपने घर की बहु बनाने से  इंकार कर दिया था,हालांकि बाद में उसकी मौत हो गई.   तेज़ाब से हमला एक जघन्य अपराध है और इसमें कोई शक नहीं है अतः न्यायपालिका प्रणाली को अनुकरणीय दंड के साथ सामने आना चाहिए। इन मामलों में अपराधियों को रोकने के लिए सरकार को कड़े से कड़े कानून बनाना चाहिए। यह बलात्कार या हत्या से भी ज्यादा दर्द्पूर्ण है क्योंकि इसमें इंसान की मृत्यु नही होती बल्कि वह ज़िन्दगी भर दूसरो का मोहताज हो जाता और दर्द से उसका रिश्ता बन जाता है. ऐसे में कानून में आवश्यक संशोधन लाने की जरुरत है और इस मुद्दे के लिए सोसायटी को भी सभी संभव तरीको से  पीड़ितों का समर्थन करने के लिए आगे आना चाहिये।   हमारे समाज में परिपक्व और प्रगतिशील लोगों की जरूरत है जो कि ऐसे लोगों को देखकर अपने बच्चो को दूर हटाकर, बचकानी हरकते न करते हो. ये उनका दुर्भाग्य है कि उनके साथ ऐसा हुआ, वे भी इन्सान हैं.लोगों को तेज़ाब हमलो के शिकार हुए लोगों के विरूपण चेहरे को देख कर उनसे डर कर भागना नहीं चाहिए. इसके बजाय उन्हें उनकी मदद करनी चाहिए और उनसे मुस्कुरा कर बात करना चाहिए।

तेज़ाब हमले के कारण:   एसिड अटैक का कारण सिर्फ "रिजेक्शन" या किसी के प्रस्ताव को ठुकरा देना ही नही होता। बल्कि ऐसे कई और भी कारण सामने आयें हैं जिसकी वजह से इंसान ऐसा काम करता है। उनमे से कुछ हैं-
* प्रेम प्रस्ताव या शादी का प्रस्ताव ठुकराना
* दहेज़ की मांग न पूरी होना
* घरेलू कलह और
कभी कभी ऐसा भी होता है कि निशाना कोई और होता है पर शिकार बन जाता है कोई और। कहने का तात्पर्य यह है कि घटना के दौरान यदि पीडिता के साथ कोई और भी मौजूद है तो उसके ऊपर भी तेज़ाब की छींटे पड़ने की आशंका रहती है और कई बार ऐसा हुआ भी है।   एसिड अटैक मामलो में इन दिनों तेजी से इजाफा हो रहा है। इसका कारण बाजार में आसानी से मिल रहा तेज़ाब है। सरकार को जल्द से जल्द बाजार में तेज़ाब जैसे उत्पादों की बिक्री रोकनी चाहिए। ऐसे कई और चेहरे अपने पहचान की तलाश करे, उससे पहले सरकार को,कानून को ठोस कदम उठाने चहिये। ऐसी स्थिति में एक सवाल मन में आता है-क्या यह अँधेरा कभी उजाले में तब्दील होगा? क्या इस रात की सुबह होगी? या यूहीं कई आँखें गुमनामी में जाती जाएंगी। सवाल यह है कि क्या महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधो कीरोकथाम के लिए कोई उपाय है या नही?    एक शोध के मुताबिक पिछले 10 वर्षों में सिर्फ कर्नाटक में 98 ऐसे पीड़ित पाए गएँ है जो की तेज़ाब हमले का शिकार हो चुके हैं। वहीँ यदि एसिड अटैक पीड़ितों की मदद के लिए काम रहे एनजीओ की माने तो यह आंकड़ा 1000 तक है। लेकिन कई केसेस तो लोगो कीनजर में भी नही आ पाते। जिसका कारण कानून का निठल्लापन, पुलिस की लापरवाही और गैर जिम्मेदाराना रवैया है । कई बार तो पीड़ित और उसका परिवार खुद ही किसी बाहरी दबाव या बदनामी के डर से पुलिस को सूचना नही देते। आर्थिक कमजोरी भी इसकाकारण हो सकता है।

क्या है कानून: तेज़ाब हमले के खिलाफ हुए कानून में संशोधन भी ऐसे हमलो को रोकने में विफल साबित हो रही है।भारत में इस अपराध के खिलाफ कानून बहुत सख्त नहीं है। तेज़ाब हमले का शिकार होने के बाद इंसान की पूरी ज़िन्दगी ख़राब हो जाती है और ऐसा अपराध करने वालो की सजा बस 10 वर्ष है और 10 लाख का जुर्माना। यह स्थिति तब आती है जब मुजरिम पकड़ा जाता है। कई बार तो मुजरिम गिरफ्त में ही नही आता। पीडिता के परिवार वाले कभी बदनामी के डर से तो कभी बाहरी दबाव के कारण शिकायत ही नही दर्ज कराते।

क्या है सरकार का रवैया: देश में बढ़ते तेज़ाब हमले,सरकार  का ध्यान अपनी ओर नहीं केन्द्रित करवा पा रहे है। तभी तो सरकार तेज़ाब हमलो के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठा रही है। बीते 1 जून को तेज़ाब हमले का शिकार हुई दिल्ली की प्रीती राठी ने मुंबई के एक अस्पताल में अपना दमतोड़ दिया जिसके बाद देश के हर कोने से तेज़ाब हमले के खिलाफ आवाज़ उठी। ऐसे में अगर पीड़ित की मौत हो जाए तो सरकार का फर्ज बस मुआवजा भर देना है और परिवार के किसी एक सदस्य को नौकरी दिलवाना। बस इसके बाद सरकार का फर्ज ख़त्म।

मीडिया का स्त्रीविरोधी रूझान 
यह दिल दिमाग को सुन्न कर देने वाली खबर थी. टीवी के किसी चैनल पर इस विचलित कर देने वाली इस खबर को सुनने के कुछ ही घंटों बाद दिल्ली से प्रकाशित हिंदी की एक रंगीन महिला पत्रिका की रिपोर्टर का फोन एक पीड़िता को आया.
नाम पूछा तो उसने कहा- प्रीति !
फिर उसने 'एसिड अटैक' सम्बन्धित लेख प्रकाशित करने में असमर्थता व्यक्त की।
पीड़िता- क्यूं प्रकाशित नहीं हो सकता ये गम्भीर मुद्दा.?
हँसते हुए जवाब मिला- हमने मार्च अंक में गंभीर मुद्दे भी उठाये थे पर वो कोई पसंद नहीं करता !
हाल ही में बाज़ार में लॉन्च हुई इस गृहिणी प्रधान महिला पत्रिका को बेचने के लिये हर अंक में सिर्फ कामयुक्त विष़यों की ही ज़रूरत क्यों पड़ती है ?
हाल ही में बाज़ार में लॉन्च हुई इस गृहिणी प्रधान महिला पत्रिका को बेचने के लिये हर अंक में सिर्फ कामयुक्त विषयों की ही ज़रूरत क्यों पड़ती है ? कौन-सी महिलायें हैं जो उत्तर मेनोपोज स्त्री की कामभावना के ज्ञान से अपने दिमाग को तरोताजा बनाये रखना चाहती हैं ? क्या महिलाओं का नया पाठक वर्ग अपने समय और उसके सवालों से पूरी तरह कट गया है और वे किसी गंभीर मुद्दे पर प्रकाशित कोई सामग्री नहीं पढ़ते ?
ये सारे सवाल उस भयावहता की तरफ दिल-दिमाग को बार-बार ले जाते हैं, जो स्त्री के खिलाफ एक फिनोमिना तैयार करते हैं और तब हम पाते हैं कि केवल पुलिस और अदालतें ही नहीं, मीडिया भी बहुत कुछ स्त्री-विरोधी रुझानों से संचालित है. लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाने वाला मीडिया इन प्रवृत्तियों से लड़ने और उन पर सवाल खड़ा करने की जगह, स्त्री को एक कमोडिटी की तरह ही पेश कर रहा है.
स्त्रियों के लिए लगातार भयावह होती जा रही इस दुनिया के बारे में गंभीरता से विमर्श होना चाहिये क्योंकि आज की सबसे बडी चिंता यह है कि कानून की सख्ती के बावजूद अपराधी इस कदर बेलगाम क्यों हुये जा रहे हैं और ऐसी घटनाओं को बार-बार दोहराया क्यों जा रहा है ? सड़क पर उतर आई युवाओं की भीड़ हममें जनांदोलन का जज्बा पैदा करती है पर हर उम्मीद ऐसे हादसों में दम तोड़ती नजर आती है.

क्या हो उपाय:   तेज़ाब हमले के खिलाफ हुए कानून में संशोधन भी ऐसे हमलो को रोकने में विफल साबित हो रही है। ऐसे में बस एक ही उपाय बचता है-बाजार में तेज़ाब की  बिक्री पर रोक लगाना। तेज़ाब हमलो में तेजी से इजाफा होने का एकमात्र कारण यही है। कोई भी आसानी से,बिना किसी सवाल के बाजार से तेजाब खरीद  सकता है। 30 -35 रूपए में यह तेज़ाब, इंसान की पूरी ज़िन्दगी तबाह कर सकता है। सल्फयूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड और एचसीएल जैसे तेज़ाब सस्ते होने के साथ साथ बाजार में आसानी स उपलब्ध है। इन पर नियंत्रणलगाना बेहद जरूरी हो गया है। सरकार यह भी कर सकती है कि जो भी दुकानदार तेज़ाब बेच रहा है, उसके पास उसका लाइसेंस होना अनिवार्य हो। यदि ऐसा न हुआ तो, दुकानदार के खिलाफ सख्त कदम उठाया जाए।
एसिड अटैक के अपराधी के मृत्युदण्ड का प्रावधान होना चाहिए।

दूसरे देशो में क्या है कानून: बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशो में भी तेज़ाब हमलो की तादाद ज्यादा है। कंबोडिया भी उसमे शामिल है। पर ऐसे देशो ने तेज़ाब हमले के खिलाफ अपना रूझान सख्त कर लिया है। पाकिस्तान और बांग्लादेश,बाजार में तेज़ाब की बिक्री पर नियंत्रण लगाने में कामयाबसिद्ध हुए हैं। जब ऐसे देश  ने तेज़ाब हमले को रोकने के लिए यह कदम उठाया है तो भारत ऐसा करने में विलंभ क्यों कर रहा है? वहां तेज़ाब के लेन देन में, इस्तेमाल करने में और तेज़ाब की बिक्री पर पूरा नियंत्रण लगा दिया गया है।

बांग्लादेश: बांग्लादेश ने साल 2002 में तेज़ाब हमले के खिलाफ 2 एक्ट लागू किए थे। पहला था बाजार में तेज़ाब की बिक्री पर रोक के तहत और दूसरा तेज़ाब हमलो को रोकने के तहत। 2002 में बंगलादेश में तेजाब हमलो में तेजी से इजाफा हुआ था। वहां उस साल 495तेज़ाब हमले हुए थे। जबकि कानून में हुए संशोधन के बाद पिछले साल केवल 98 केस ही सामने आयें हैं. बांग्लादेश में तेज़ाब हमलेवार को सजा ए मौत मिलती है। पीडिता के शरीर पर दुष्प्रभाव ही आरोपी की सजा तय करता है। यदि पीडिता सुनने की शक्ति खो बैठती हैया पीडिता का चेहरा, स्तन और सेक्स ओर्गंस चपेट में आ जाते हैं तो ऐसी स्थिति में आरोपी को मौत की सजा या फिर आजीवन कारावास की सजा होती हैं। इन अंगो के अलावा अगर कोई हिस्सा तेज़ाब की चपेट में आता है तो हमलेवार को 7 से 14 साल की सजा होतीहै। इसके अतिरिक्त यदि कोई तेज़ाब हमला करने की कोशिश करता है तो उसे 3-5 साल की सजा होती है।
इसी तरह पाकिस्तान और कंबोडिया में भी तेज़ाब हमले के खिलाफ सख्त प्रावधान लागू हुए हैं। इस मामले में बस भारत ही पीछे हैं। 

सुप्रीम कोर्ट:अमूमन देखा गया है कि तेज़ाब से हमले के बाद इन्सान की मौत तो नही होती, पर जिंदगी मौत से बत्हर हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट(18 जुलाई 2013) ने एक फैसला सुनाया जिससे तेज़ाब हमले की बढ़ोतरी पर लगाम लग सकती है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले केअनुसार अब जहर की श्रेणी में आयेगा तेज़ाब और कोई भी बिना लाइसेंस के तेज़ाब नही खरीद सकता। इसके अलावा और भी कई संशोधन किए गए हैं. तेज़ाब पीड़ितों को 3 लाख रूपए मुआवजा दिया जाएगा जिसमे कि 1 लाख हमले के 15 दिन के अन्दर देना होगा।इसके साथ ही तेजाब हमले के आरोपी को 10 साल से लेकर आजीवन कारावास हो सकती है. ये फैसला 17 जुलाई को तब आया जब 22 वर्षीय लक्ष्मी, लगातार कोर्ट के चक्कर लगा रही थी और पीआईएल भी साइन करवाया जिसमे कई लाखो लोगों ने उसका समर्थनकिया। लक्ष्मी के साथ 7 साल पहले तेज़ाब हमला हुआ था जब वह सिर्फ 15 साल की थी.  महिलाओं के खिलाफ एसिड अटैक की बढती घटनाओं को देखते हुए सरकार ने बड़ा फैसला लिया है.एसिड को अब जहर की केटेगरी में रखा जाएगा। इसके साथ ही एसिड की सेल के लिए लाइसेंस लेना जरुरी हो गया है और तेज़ाब की खरीद के लिए पहचान पत्र अभीअनिवार्य हो गया है.साथ ही खुदरा बाजार में बिकने वाला तेज़ाब अब कम हानिकारक होगा क्योंकि उसकी क्षमता कम कर दी जाएगी। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि तेज़ाब हमले की बढती घटनाओं के मद्देनज़र रखते तेज़ाब और दूसरे विषाक्त पदार्थो की खुदराबाजार में तेज़ाब की बिक्री को नियंत्रित करने के लिए मौजूदा कानून के तहत ही नियम बनाये है.
कानून में बदलाव के बाद भी तेजाबी हमलो में रोकथाम नहीं लग  पा रही है.आए दिन हमलोन में बढ़ोतरी हो रही है. तेज़ाब हमला समाज में पनपा एक जघन्य अपराध है. ये समाज की ही फैलाई हुई गंदगी है और बाद में समाज ही इन्हें नहीं अपनाता। कब ख़त्म होगाबदला लेने का ये क्रूर तरीका? एक तो वो पहले से ही दर्द झेल रहे होते हैं ऊपर से उनके लिए समाज का रवैया उन्हें जीने नही देता। लोग तेज़ाब हमले का शिकार हुए लोगों का विरूपण देख कर भागने लगते हैं, उनसे डरते हैं। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिये बल्कि मुस्कुराकर उनसे बात करनी चाहिए।

एक नजीर
तेजाब सिर्फ चेहरा ही नहीं पूरी जिंदगी जला देता है. बोकारो की सोनाली मुखर्जी तो अब एक आंख से देख भी नहीं पाती. पर उन्हें खोजते हुए उनकी खुशियां यानी की चितरंजन तिवारी ओडिशा के तलचर से बोकारो तक आ गए. चार दिन पहले 15 अप्रैल को शादी भी कर ली. चितरंजन इंजीनियर हैं. जब उनसे पूछा कि इस फैसले की वजह क्या रही? तो वो बोले- ‘कुछ ऐसा करना चाहता था जिससे मुझे खुद पर गर्व हो और मैंने शादी का फैसला कर लिया.’
सोनाली का कहना है कि चितरंजन ने मुझे क्राइम पैट्रोल में देखा था. फिर मेरे बारे में पता किया. वहीं चितरंजन के मुताबिक उन्हे बहुत पापड़ बेलने पड़े. टीवी में सोनाली को देखने के बाद इनके बारे में इंटरनेट पर खोजना शुरू किया. वहां से पता और इनके भाई का फोन नंबर मिला. भाई के जरिए ही सोनाली से पहली बार बात हुई. फिर तो हम घंटों बातें करने लगे. उसी बीच एक दिन प्रपोज कर दिया. पहले लगा कि ये भावुक होकर ऐसा बोल रहे हैं तो मैंने मना कर दिया. उसके बाद दो महीने लग गए इन्हें मुझे मनाने में.
प्रपोज करने तक तो चितरंजन ने सोनाली को देखा भी नहीं था. हमारी लंबी बातें होती थीं. सोच भी मिलने लगी थी. जब मैंने शादी की बात की तो उसे लगा कि मजाक उड़ा रहा हूं. उसने कहा- ऐसी बातों से तकलीफ होती है. कुछ लड़के उसे ऐसा कह कर परेशान कर चुके थे. तब मुझे सबसे ज्यादा दुख होता था.
पिछले 11 सालों में सोनाली मुखर्जी की 34 सर्जरी हो चुकी है. उनके माँ-बाप ने ज़ेवर, ज़मीन सब बेच दिया. अभी भी नौ सर्जरी होनी बाकी हैं जिसके लिए लाखों रुपए की ज़रुरत है. सोनाली कहती हैं कि आज भी लड़कियों पर तेज़ाब फ़ेंकने की ख़बरें आती हैं तो उन्हें लगता है कि जैसे वो फिर से झुलस गई हों.
आपको बता दें कि अप्रैल 2003 की रात को सोनाली पर तेज़ाब फेंक दिया गया था और वो झुलस गई थीं. 12 साल बाद अप्रैल की ही एक शाम उनकी ज़िंदगी में नई ख़ुशियाँ लेकर आई.

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