मंगलवार, 28 जुलाई 2015

डॉ०कलाम और हिन्दुत्व...! जानें मिसाइल मैन के जीवन का हर पहलू..! श्रद्धांजलि स्वरूप अधिकाधिक शेयर जरूर करें मेरा ये ब्लॉग...!

जाने कलाम साहब को....!!!

डॉ० कलाम एवं हिन्दुत्व.....!!!!!

कलाम साहब का जन्म यद्यपि एक मुस्लिम खानदान में हुआ किन्तु उनकी जीवनशैली 
एक हिन्दू जैसी थी। उनका जीवन बहुत ही सादगी से बीता । उनका घर रामेश्वरम् मंदिर के पास होने की वजह से उन पर हिन्दू धर्म की गहरी छाप थी।
वे संस्कृत भाषा के एक बड़े विद्वान रहे और बिना रुके प्रवाहमय श्लोंकों का पाठन कर लेते थे। वे नित्य प्रति श्रीमद्भागवत् गीता का भी पाठन करते थे। वे हमेशा दशहरे के मेले में रामलीला देखने जरूर जाते थे। वहां दहन होता रावण देखकर उन्होंने राकेट बनाने का निश्चय किया ।
वे बच्चों से हास्य विनोद करना बहुत पसंद करते थे। उन्होंने देश में "इस्लामी मदरसे" बंद करने की बात कही क्योंकि वे "आतंकवाद की फैक्ट्री" थे। अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान उन्होंने राष्ट्रपति भवन में ईद की  ईफ्तार पार्टी भी प्रतिबंधित कर दी। 
इसलिए इस्लाम के तथाकथित ठेकेदार उन्हें "मुसलमान" तक नहीं मानते थे। कलाम साहब का सनातन धर्म से प्रेम और लगाव जगजाहिर है। ऐसा कोई हिन्दुत्व सम्बन्धित संस्थान नहीं जहां वे गये नहीं । हर जगह उन्हें सम्मानित किया गया। समय समय पर वे बड़े बड़े साधु-सन्तों से मिलते रहते थे। उन्हें प्राचीन भारत के हमारे पूर्वज ऋषि मुनि वैज्ञानिक और गणितज्ञों के बारे में जानकारी दी । सनातन परम्परानुसार उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी की तरह आजीवन विवाह नहीं किया । 


अवुल पकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम (अंग्रेज़ी: Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam; जन्म: 15 अक्तूबर, 1931, रामेश्वरम) जिन्हें डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के नाम से जाना जाता है, भारत के पूर्व राष्ट्रपति, प्रसिद्ध वैज्ञानिक और अभियंता के रूप में विख्यात हैं। इनका राष्ट्रपति कार्यकाल 25 जुलाई 2002 से 25 जुलाई 2007 तक रहा। इन्हें मिसाइल मैन के नाम से भी जाना जाता है। यह एक गैर राजनीतिक व्यक्ति रहे है। विज्ञान की दुनिया में चमत्कारिक प्रदर्शन के कारण ही राष्ट्रपति भवन के द्वार इनके लिए स्वत: खुल गए। जो व्यक्ति किसी क्षेत्र विशेष में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता है, उसके लिए सब सहज हो जाता है और कुछ भी दुर्लभ नहीं रहता। अब्दुल कलाम इस उद्धरण का प्रतिनिधित्व करते नज़र आते हैं। इन्होंने विवाह नहीं किया है। इनकी जीवन गाथा किसी रोचक उपन्यास के नायक की कहानी से कम नहीं है। चमत्कारिक प्रतिभा के धनी अब्दुल कलाम का व्यक्तित्व इतना उन्नत है कि वह सभी धर्म, जाति एवं सम्प्रदायों के व्यक्ति नज़र आते हैं। यह एक ऐसे स्वीकार्य भारतीय हैं, जो सभी के लिए 'एक महान आदर्श' बन चुके हैं। विज्ञान की दुनिया से देश का प्रथम नागरिक बनना कपोल कल्पना मात्र नहीं है क्योंकि यह एक जीवित प्रणेता की सत्यकथा है।

जीवन परिचय
अब्दूल कलाम का पूरा नाम 'डॉक्टर अवुल पाकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम' है। इनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम तमिलनाडु में हुआ। द्वीप जैसा छोटा सा शहर प्राकृतिक छटा से भरपूर था। शायद इसीलिए अब्दुल कलाम जी का प्रकृति से बहुत जुड़ाव रहा है।

                                    किशोरावस्था में अब्दुल कलाम

रामेश्वरम का प्राकृतिक सौन्दर्य समुद्र की निकटता के कारण सदैव बहुत दर्शनीय रहा है। इनके पिता 'जैनुलाब्दीन' न तो ज़्यादा पढ़े-लिखे थे, न ही पैसे वाले थे। वे नाविक थे, और नियम के बहुत पक्के थे। इनके पिता मछुआरों को नाव किराये पर दिया करते थे। इनके संबंध रामेश्वरम के हिन्दू नेताओं तथा अध्यापकों के साथ काफ़ी स्नेहपूर्ण थे। अब्दुल कलाम ने अपनी आरंभिक शिक्षा जारी रखने के लिए अख़बार वितरित करने का कार्य भी किया था।

संयुक्त परिवार
अब्दुल कलाम संयुक्त परिवार में रहते थे। परिवार की सदस्य संख्या का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह स्वयं पाँच भाई एवं पाँच बहन थे और घर में तीन परिवार रहा करते थे। इनका कहना था कि वह घर में तीन झूले (जिसमें बच्चों को रखा और सुलाया जाता है) देखने के अभ्यस्त थे। इनकी दादी माँ एवं माँ द्वारा ही पूरे परिवार की परवरिश की जाती थी। घर के वातावरण में प्रसन्नता और वेदना दोनों का वास था। इनके घर में कितने लोग थे और इनकी मां बहुत लोगों का खाना बनाती थीं क्योंकि घर में तीन भरे-पूरे परिवारों के साथ-साथ बाहर के लोग भी हमारे साथ खाना खाते थे। इनके घर में खुशियाँ भी थीं, तो मुश्किलें भी थी। अब्दुल कलाम के जीवन पर इनके पिता का बहुत प्रभाव रहा। वे भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनकी लगन और उनके दिए संस्कार अब्दुल कलाम के बहुत काम आए। ।

जीवन की एक घटना
अब्दुल कलाम के जीवन की एक घटना है, कि यह भाई-बहनों के साथ खाना खा रहे थे। इनके यहाँ चावल खूब होता था, इसलिए खाने में वही दिया जाता था, रोटियाँ कम मिलती थीं। जब इनकी मां ने इनको रोटियाँ ज़्यादा दे दीं, तो इनके भाई ने एक बड़े सच का खुलासा किया। इनके भाई ने अलग ले जाकर इनसे कहा कि मां के लिए एक-भी रोटी नहीं बची और तुम्हें उन्होंने ज़्यादा रोटियाँ दे दीं। वह बहुत कठिन समय था और उनके भाई चाहते थे कि अब्दुल कलाम ज़िम्मेदारी का व्यवहार करें। तब यह अपने जज़्बातों पर काबू नहीं पा सके और दौड़कर माँ के गले से जा लगे। उन दिनों कलाम कक्षा पाँच के विद्यार्थी थे। इन्हें परिवार में सबसे अधिक स्नेह प्राप्त हुआ क्योंकि यह परिवार में सबसे छोटे थे। तब घरों में विद्युत नहीं थी और केरोसिन तेल के दीपक जला करते थे, जिनका समय रात्रि 7 से 9 तक नियत था। लेकिन यह अपनी माता के अतिरिक्त स्नेह के कारण पढ़ाई करने हेतु रात के 11 बजे तक दीपक का उपयोग करते थे। अब्दुल कलाम के जीवन में इनकी माता का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। इनकी माता ने 92 वर्ष की उम्र पाई। वह प्रेम, दया और स्नेह की प्रतिमूर्ति थीं। उनका स्वभाव बेहद शालीन था।
जिस घर अब्दुल कलाम का जन्म हुआ, वह आज भी रामेश्वरम में मस्जिद मार्ग पर स्थित है। इसके साथ ही इनके भाई की कलाकृतियों की दुकान भी संलग्न है। यहाँ पर्यटक इसी कारण खिंचे चले आते हैं, क्योंकि अब्दुल कलाम का आवास स्थित है। 1964 में 33 वर्ष की उम्र में डॉक्टर अब्दुल कलाम ने जल की भयानक विनाशलीला देखी और जल की शक्ति का वास्तविक अनुमान लगाया। चक्रवाती तूफ़ान में पायबन पुल और यात्रियों से भरी एक रेलगाड़ी के साथ-साथ अब्दुल कलाम का पुश्तैनी गाँव धनुषकोड़ी भी बह गया था। जब यह मात्र 19 वर्ष के थे, तब द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका को भी महसूस किया। युद्ध का दवानल रामेश्वरम के द्वार तक पहुँचा था। इन परिस्थितियों में भोजन सहित सभी आवश्यक वस्तुओं का अभाव हो गया था।

विद्यार्थी जीवन
अब्दुल कलाम जब आठ- नौ साल के थे, तब से सुबह चार बजे उठते थे और स्नान करने के बाद गणित के अध्यापक स्वामीयर के पास गणित पढ़ने चले जाते थे। स्वामीयर की यह विशेषता थी कि जो विद्यार्थी स्नान करके नहीं आता था, वह उसे नहीं पढ़ाते थे। स्वामीयर एक अनोखे अध्यापक थे और पाँच विद्यार्थियों को प्रतिवर्ष नि:शुल्क ट्यूशन पढ़ाते थे। इनकी माता इन्हें उठाकर स्नान कराती थीं और नाश्ता करवाकर ट्यूशन पढ़ने भेज देती थीं। अब्दुल कलाम ट्यू्शन पढ़कर साढ़े पाँच बजे वापस आते थे। उसके बाद अपने पिता के साथ नमाज़ पढ़ते थे। फिर क़ुरान शरीफ़ का अध्ययन करने के लिए वह अरेशिक स्कूल (मदरसा) चले जाते थे। इसके पश्चात्त अब्दुल कलाम रामेश्वरम के रेलवे स्टेशन और बस अड्डे पर जाकर समाचार पत्र एकत्र करते थे। इस प्रकार इन्हें तीन किलोमीटर जाना पड़ता था। उन दिनों धनुषकोड़ी से मेल ट्रेन गुजरती थी, लेकिन वहाँ उसका ठहराव नहीं होता था। चलती ट्रेन से ही अख़बार के बण्डल रेलवे स्टेशन पर फेंक दिए जाते थे। अब्दुल कलाम अख़बार लेने के बाद रामेश्वरम शहर की सड़कों पर दौड़-दौड़कर सबसे पहले उसका वितरण करते थे। अब्दुल कलाम अपने भाइयों में छोटे थे, दूसरे घर के लिए थोड़ी कमाई भी कर लेता थे, इसलिए इनकी मां का प्यार इन पर कुछ ज़्यादा ही था। अब्दुल कलाम अख़बार वितरण का कार्य करके प्रतिदिन प्रात: 8 बजे घर लौट आते थे। इनकी माता अन्य बच्चों की तुलना में इन्हें अच्छा नाश्ता देती थीं, क्योंकि यह पढ़ाई और धनार्जन दोनों कार्य कर रहे थे। शाम को स्कूल से लौटने के बाद यह पुन: रामेश्वरम जाते थे ताकि ग्राहकों से बकाया पैसा प्राप्त कर सकें। इस प्रकार वह एक किशोर के रूप में भाग-दौड़ करते हुए पढ़ाई और धनार्जन कर रहे थे।

अब्दुल कलाम के शब्दों में

                  रामेश्वरम् के मस्जिद वाली गली में स्थित डॉ. कलाम का पुश्तैनी घर

अध्यापकों के संबंध में अब्दुल कलाम काफ़ी खुशक़िस्मत थे। इन्हें शिक्षण काल में सदैव दो-एक अध्यापक ऐसे प्राप्त हुए, जो योग्य थे और उनकी कृपा भी इन पर रही। यह समय 1936 से 1957 के मध्य का था। ऐसे में इन्हें अनुभव हुआ कि वह अपने अध्यापकों द्वारा आगे बढ़ रहे हैं। अध्यापक की प्रतिष्ठा और सार्थकता अब्दुल कलाम के शब्दों में प्रस्तुत है:-

प्राथमिक स्कूल
यह 1936 का वर्ष था। मुझे याद है कि पाँच वर्ष कि अवस्था में रामेश्वरम के पंचायत प्राथमिक स्कूल में मेरा दीक्षा-संस्कार हुआ था। तब मेरे एक शिक्षक 'मुत्थु अय्यर' मेरी ओर विशेष ध्यान देते थे क्योंकि मैं कक्षा में अपने कार्य में बहुत अच्छा था। वह मुझसे बहुत प्रभावित थे। एक दिन वह मेरे घर आए और मेरे पिता से कहा कि मैं पढ़ाई में बहुत अच्छा हूँ। यह सुनकर मेरे घर के सभी लोग बहुत खुश हुए और मेरी पसंद की मिठाई मुझे खिलाई। एक विशिष्ट घटना जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता, वह थी- कक्षा में 'प्रथम स्थान' प्राप्त करने की। एक बार मैं स्कूल नहीं जा सका तो मुत्थु जी मेरे घर आए और उन्होंने पिताजी से पूछा कि कोई समस्या तो नहीं है और मैं आज स्कूल क्यों नहीं आया? साथ ही उन्होंने यह भी पूछा कि क्या वह कोई सहायता कर सकते हैं? उस दिन मुझे ज्वर हो गया था। तब मुत्थु जी ने मेरी हस्तलिपि के बारे में इंगित किया जो काफ़ी ख़राब थी। उन्होंने मुझे तीन पृष्ठ प्रतिदिन अभ्यास करने का निर्देश दिया। उन्होंने मेरे पिताजी से कहा कि मैं प्रतिदिन यह अभ्यास करूँ। मैंने यह अभ्यास नियमित रूप से किया। मुत्थु जी के कार्यों को देखते हुए बाद में मेरे पिताजी ने कहा था कि वह एक अच्छे व्यक्ति ही नहीं बल्कि हमारे परिवार के भी अच्छे मित्र हैं।

प्रेरणा
अब्दुल कलाम 'एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी' में आए, तो इसके पीछे इनके पाँचवीं कक्षा के अध्यापक 'सुब्रहमण्यम अय्यर' की प्रेरणा ज़रुर थी। वह हमारे स्कूल के अच्छे शिक्षकों में से एक थे। एक बार उन्होंने कक्षा में बताया कि पक्षी कैसे उड़ता है? मैं यह नहीं समझ पाया था, इस कारण मैंने इंकार कर दिया था। तब उन्होंने कक्षा के अन्य बच्चों से पूछा तो उन्होंने भी अधिकांशत: इंकार ही किया। लेकिन इस उत्तर से अय्यर जी विचलित नहीं हुए। अगले दिन अय्यर जी इस संदर्भ में हमें समुद्र के किनारे ले गए। उस प्राकृतिक दृश्य में कई प्रकार के पक्षी थे, जो सागर के किनारे उतर रहे थे और उड़ रहे थे। तत्पश्चात्त उन्होंने समुद्री पक्षियों को दिखाया, जो 10-20 के झुण्ड में उड़ रहे थे। उन्होंने समुद्र के किनारे मौजूद पक्षियों के उड़ने के संबंध में प्रत्येक क्रिया को साक्षात अनुभव के आधार पर समझाया। हमने भी बड़ी बारीकी से पक्षियों के शरीर की बनावट के साथ उनके उड़ने का ढंग भी देखा। इस प्रकार हमने व्यावहारिक प्रयोग के माध्यम से यह सीखा कि पक्षी किस प्रकार उड़ पाने में सफल होता है। इसी कारण हमारे यह अध्यापक महान थे। वह चाहते तो हमें मौखिक रूप से समझाकर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री कर सकते थे लेकिन उन्होंने हमें व्यावहारिक उदाहरण के माध्यम से समझाया और कक्षा के हम सभी बच्चे समझ भी गए। मेरे लिए यह मात्र पक्षी की उड़ान तक की ही बात नहीं थी। पक्षी की वह उड़ान मुझमें समा गई थी। मुझे महसूस होता था कि मैं रामेश्वरम के समुद्र तट पर हूँ। उस दिन के बाद मैंने सोच लिया था कि मेरी शिक्षा किसी न किसी प्रकार के उड़ान से संबंधित होगी। उस समय तक मैं नहीं समझा था कि मैं 'उड़ान विज्ञान' की दिशा में अग्रसर होने वाला हूँ। वैसे उस घटना ने मुझे प्रेरणा दी थी कि मैं अपनी ज़िंदगी का कोई लक्ष्य निर्धारित करूँ। उसी समय मैंने तय कर लिया था कि उड़ान में करियर बनाऊँगा।


अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश, भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ अब्दुल कलाम

उच्च शिक्षा
एक दिन मैंने अपने अध्यापक 'श्री सिवा सुब्रहमण्यम अय्यर' से पूछा कि श्रीमान! मुझे यह बताएं कि मेरी आगे की उन्नति उड़ान से संबंधित रहते हुए कैसे हो सकती है? तब उन्होंने धैर्यपूर्वक जवाब दिया कि मैं पहले आठवीं कक्षा उत्तीर्ण करूँ, फिर हाई स्कूल। तत्पश्चात कॉलेज में मुझे उड़ान से संबंधित शिक्षा का अवसर प्राप्त हो सकता है। यदि मैं ऐसा करता हूँ तो उड़ान विज्ञान के साथ जुड़ सकता हूँ। इन सब बातों ने मुझे जीवन के लिए एक मंज़िल और उद्देश्य भी प्रदान किया। जब मैं कॉलेज गया तो मैंने भौतिक विज्ञान विषय लिया। जब मैं अभियांत्रिकी की शिक्षा के लिए 'मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी' में गया तो मैंने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का चुनाव किया। इस प्रकार मेरी ज़िन्दगी एक 'रॉकेट इंजीनियर', 'एयरोस्पेस इंजीनियर' और 'तकनीकी कर्मी' की ओर उन्मुख हुई। वह एक घटना जिसके बारे में मेरे अध्यापक ने मुझे प्रत्यक्ष उदाहरण से समझाया था, मेरे जीवन का महत्त्वपूर्ण बिन्दु बन गई और अंतत: मैंने अपने व्यवसाय का चुनाव भी कर लिया।

अद्वितीय व्याख्यान
अब मैं अपने गणित के अध्यापक 'प्रोफेसर दोदात्री आयंगर' के विषय में चर्चा करना चाहूँगा। विज्ञान के छात्र के रूप में मुझे 'सेंट जोसेफ कॉलेज' में देवता के समान एक व्यक्ति को प्रति सुबह देखने का अवसर प्राप्त होता था, जो विद्यार्थियों को गणित पढ़ाया करते थे। बाद में मुझे उनसे गणित पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने मेरी प्रतिभा को बहुत हद तक निखारा। मैंने उनकी कक्षा में आधुनिक बीजगणित, सांख्यिकी और कॉंम्पलेक्स वेरिएबल्स का अध्ययन किया। 1952 में इन्होंने एक अद्वितीय व्याख्यान दिया, जो भारत के प्राचीन गणितज्ञों एवं खगोलविज्ञों के संबंध में था। इस व्याख्यान में इन्होंने भारत के चार गणितज्ञों एवं खगोलविज्ञों के बारे में बताया था, जो इस प्रकार थे- आर्यभट्ट, श्रीनिवास रामानुजन, ब्रह्मगुप्त और भास्कराचार्य।

इसके अलावा एम.आई.टी.'प्रोफेसर श्रीनिवास' (जो डायरेक्टर भी थे) का भी काफ़ी योगदान रहा अब्दुल कलाम की प्रतिभा निखारने में। इनके विषय में अब्दुल कलाम ने कहा था:- शिक्षक को एक प्रशिक्षक भी होना चाहिए- प्रोफेसर श्रीनिवासन की भाँति।'

कार्यक्षेत्र
1962 में वे 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' में आये। डॉक्टर अब्दुल कलाम को प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह (एस.एल.वी. तृतीय) प्रक्षेपास्त्र बनाने का श्रेय हासिल है। जुलाई 1980 में इन्होंने रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित किया था। इस प्रकार भारत भी 'अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब' का सदस्य बन गया। 'इसरो लॉन्च व्हीकल प्रोग्राम' को परवान चढ़ाने का श्रेय भी इन्हें प्रदान किया जाता है। डॉक्टर कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी (गाइडेड मिसाइल्स) को डिज़ाइन किया। इन्होंने अग्नि एवं पृथ्वी जैसी मिसाइल्स को स्वदेशी तकनीक से बनाया था। डॉक्टर कलाम जुलाई 1992 से दिसम्बर 1999 तक रक्षा मंत्री के 'विज्ञान सलाहकार' तथा 'सुरक्षा शोध और विकास विभाग' के सचिव थे। उन्होंने स्ट्रेटेजिक मिसाइल्स सिस्टम का उपयोग आग्नेयास्त्रों के रूप में किया। इसी प्रकार पोखरण में दूसरी बार न्यूक्लियर विस्फोट भी परमाणु ऊर्जा के साथ मिलाकर किया। इस तरह भारत ने परमाणु हथियार के निर्माण की क्षमता प्राप्त करने में सफलता अर्जित की। डॉक्टर कलाम ने भारत के विकास स्तर को 2020 तक विज्ञान के क्षेत्र में अत्याधुनिक करने के लिए एक विशिष्ट सोच प्रदान की। यह भारत सरकार के 'मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार' भी रहे।

व्यावसायिक परिचय

            दक्षिण अफ़्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला के साथ अब्दुल कलाम

डॉ. अब्दुल कलाम जब एच.ए.एल. से एक वैमानिकी इंजीनियर बनकर निकले तो इनके पास नौकरी के दो बड़े अवसर थे। ये दोनों ही उनके बरसों पुराने उड़ान के सपने को पूरा करने वाले थे। एक अवसर भारतीय वायुसेना का था और दूसरा रक्षा मंत्रालय के अधीन तकनीकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय, का था। उन्होंने दोनों जगहों पर साक्षात्कार दिया। वे रक्षा मंत्रालय के तकनीकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय में चुन लिए गए। सन् 1958 में इन्होंने 250 रूपए के मूल वेतन पर निदेशालय के तकनीकी केंद्र (उड्डयन) में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक के पद पर काम संभाल लिया। निदेशालय में नौकरी के पहले साल के दौरान इन्होंने आफिसर-इंचार्ज आर. वरदराजन की मदद से एक अल्ट्रासोनिक लक्ष्यभेदी विमान का डिजाइन तैयार करने में सफलता हासिल कर ली। विमानों के रख-रखाव का अनुभव हासिल करने के लिए इन्हें एयरक्रॉफ्ट एण्ड आर्मामेंट टेस्टिंग यूनिट, कानपुर भेजा गया। उस समय वहाँ एम.के.-1 विमान के परीक्षण का काम चल रहा था। इसकी कार्यप्रणालियों के मूल्यांकन को पूरा करने के काम में इन्होंने भी हिस्सा लिया। वापस आने पर इन्हें बंगलौर में स्थापित वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान में भेज दिया गया। यहाँ ग्राउंड इक्विपमेंट मशीन के रूप में स्वदेशी होवरक्रॉफ्ट का डिजाइन तथा विकास करने के लिए एक टीम बनाई गई। वैज्ञानिक सहायक के स्तर पर इसमें चार लोग शामिल थे, जिसका नेतृत्व करने का कार्यभार निदेशक डॉ. ओ. पी. मेदीरत्ता ने डॉ. कलाम पर सौंपा। उड़ान में इंजीनियरिंग मॉडल शुरू करने के लिए इन्हें तीन साल का वक्त दिया गया। भगवान् शिव के वाहन के प्रतीक रूप में इस होवरक्राफ्ट को 'नंदी' नाम दिया गया।

रॉकेट इंजीनियर के पद पर
कालान्तर में डॉ. अब्दुल कलाम को इंडियन कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च की ओर से साक्षात्कार के लिए बुलावा आया। उनका साक्षात्कार अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम साराभाई ने खुद लिया। इस साक्षात्कार के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति में रॉकेट इंजीनियर के पद पर उन्हें चुन लिया गया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति में इनका काम टाटा इंस्टीट्यूट आफ फण्डामेंटल रिसर्च के कंप्यूटर केंद्र में काम शुरू किया। सन् 1962 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति ने केरल में त्रिवेंद्रम के पास थुंबा नामक स्थान पर रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र स्थापित करने का फैसला किया। थुंबा को इस केंद्र के लिए सबसे उपयुक्त स्थान के रूप में चुना गया था, क्योंकि यह स्थान पृथ्वी के चुंबकीय अक्ष के सबसे क़रीब था। उसके बाद शीघ्र ही डॉ. कलाम को रॉकेट प्रक्षेपण से जुड़ी तकनीकी बातों का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए अमेरिका में नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन यानी 'नासा' भेजा गया। यह प्रशिक्षण छह महीने का था। जैसे ही डॉ. अब्दुल कलाम नासा से लौटे, 21 नवंबर, 1963 को भारत का 'नाइक-अपाचे' नाम का पहला रॉकेट छोड़ा गया। यह साउंडिंग रॉकेट नासा में ही बना था। डॉ. साराभाई ने राटो परियोजना के लिए डॉ. कलाम को प्रोजेक्ट लीडर नियुक्त किया।
इस परियोजना के प्रथम चरण में एक नीची ऊँचाई पर तुरंत मार करने वाली टैक्टिकल कोर वेहिकल मिसाइल और जमीन से जमीन पर मध्यम दूरी तक मार सकने वाली मिसाइल के विकास एवं उत्पादन पर जोर था। दूसरे चरण में जमीन से हवा में मार सकने वाली मिसाइल, तीसरी पीढ़ी की टैंकभेदी गाइडेड मिसाइल और डॉ. अब्दुल कलाम के सपने रि-एंट्री एक्सपेरिमेंट लान्च वेहिकल (रेक्स) का प्रस्ताव रखा गया था। जमीन से जमीन पर मार करने वाली मिसाइल प्रणाली को 'पृथ्वी' और टैक्टिकल कोर वेहिकल मिसाइल को 'त्रिशूल' नाम दिया गया। जमीन से हवा में मार करने वाली रक्षा प्रणाली को 'आकाश' और टैंकरोधी मिसाइल परियोजना को 'नाग' नाम दिया गया। डॉ. अब्दुल कलाम ने अपने मन में सँजोए रेक्स के बहुप्रतीक्षित सपने को 'अग्नि' नाम दिया। 27 जुलाई, 1983 को आई.जी.एम.डी.पी. की औपचारिक रूप से शुरूआत की गई। मिसाइल कार्यक्रम के अंतर्गत पहली मिसाइल का प्रक्षेपण 16 सितंबर, 1985 को किया गया। इस दिन श्रीहरिकोटा स्थित परीक्षण रेंज से 'त्रिशूल' को छोड़ा गया। यह एक तेज प्रतिक्रिया प्रणाली है जिसे नीची उड़ान भरने वाले विमानों, हेलीकॉप्टरों तथा विमानभेदी मिसाइलों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया जा सकता है। 25 फरवरी, 1988 को दिन में 11बजकर 23 मिनट पर 'पृथ्वी' को छोड़ा गया। यह देश में रॉकेट विज्ञान के इतिहास में एक युगांतरकारी घटना थी। यह 150 किलोमीटर तक 1000 किलोग्राम पारंपरिक विस्फोटक सामग्री ले जाने की क्षमता वाली जमीन से जमीन पर मार करने वाली मिसाइल है। 22 मई, 1989 को 'अग्नि' का प्रक्षेपण किया गया। यह लंबी दूरी के फ्लाइट वेहिकल के लिए एक तकनीकी प्रदर्शक था। साथ ही 'आकाश' पचास किलोमीटर की अधिकतम अंतर्रोधी रेंजवाली मध्यम की वायु-रक्षा प्रणाली है। उसी प्रकार 'नाग' टैंक भेदी मिसाइल है, जिसमें 'दागो और भूल जाओ' तथा ऊपर से आक्रमण करने की क्षमताएँ हैं। डॉ. अब्दुल कलाम की पहल पर भारत द्वारा एक रूसी कंपनी के सहयोग से सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल बनाने पर काम शुरू किया गया। फरवरी 1998 में भारत और रूस के बीच समझौते के अनुसार भारत में ब्रह्मोस प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की गई। 'ब्रह्मोस' एक सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल है जो धरती, समुद्र, तथा हवा, कहीं भी दागी जा सकती है। यह पूरी दुनिया में अपने तरह की एक ख़ास मिसाइल है जिसमें अनेक खूबियां हैं। वर्ष 1990 के गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्र ने अपने मिसाइल कार्यक्रम की सफलता पर खुशी मनाई। डॉ. अब्दुल कलाम और डॉ. अरूणाचलम को भारत सरकार द्वारा 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया गया।[1]

पुस्तकें
'विंग्स ऑफ़ फायर' अब्दुल कलाम की आत्मकथा
डॉक्टर कलाम ने साहित्यिक रूप से भी अपने शोध को चार उत्कृष्ट पुस्तकों में समाहित किया है, जो इस प्रकार हैं-
'विंग्स ऑफ़ फायर'
'इण्डिया 2020- ए विज़न फ़ॉर द न्यू मिलेनियम'
'माई जर्नी'
'इग्नाटिड माइंड्स- अनलीशिंग द पॉवर विदिन इंडिया'।
महाशक्ति भारत
हमारे पथ प्रदर्शक
हम होंगे कामयाब
अदम्य साहस
छुआ आसमान
भारत की आवाज़
टर्निंग प्वॉइंट्स
इन पुस्तकों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इन्होंने अपनी जीवनी 'विंग्स ऑफ़ फायर' भारतीय युवाओं को मार्गदर्शन प्रदान करने वाले अंदाज़ में लिखी है। इनकी दूसरी पुस्तक 'गाइडिंग सोल्स- डायलॉग्स ऑफ़ द पर्पज़ ऑफ़ लाइफ' आत्मिक विचारों को उद्घाटित करती है इन्होंने तमिल भाषा में कविताऐं भी लिखी हैं। दक्षिणी कोरिया में इनकी पुस्तकों की काफ़ी माँग है और वहाँ इन्हें बहुत अधिक पसंद किया जाता है।

राजनीतिक जीवन
डॉक्टर अब्दुल कलाम राजनीतिक क्षेत्र के व्यक्ति नहीं हैं लेकिन राष्ट्रवादी सोच और राष्ट्रपति बनने के बाद भारत की कल्याण संबंधी नीतियों के कारण इन्हें कुछ हद तक राजनीतिक दृष्टि से सम्पन्न माना जा सकता है। इन्होंने अपनी पुस्तक 'इण्डिया 2020' में अपना दृष्टिकोण स्पष्ट किया है। यह भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया का सिरमौर राष्ट्र बनते देखना चाहते हैं और इसके लिए इनके पास एक कार्य योजना भी है। परमाणु हथियारों के क्षेत्र में यह भारत को सुपर पॉवर बनाने की बात सोचते रहे हैं। वह विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में भी तकनीकी विकास चाहते हैं। डॉक्टर कलाम का कहना है कि 'सॉफ़्टवेयर' का क्षेत्र सभी वर्जनाओं से मुक्त होना चाहिए ताकि अधिकाधिक लोग इसकी उपयोगिता से लाभांवित हो सकें। ऐसे में सूचना तकनीक का तीव्र गति से विकास हो सकेगा। वैसे इनके विचार शांति और हथियारों को लेकर विवादास्पद हैं। इस संबंध में इन्होंने कहा है- "2000 वर्षों के इतिहास में भारत पर 600 वर्षों तक अन्य लोगों ने शासन किया है। यदि आप विकास चाहते हैं तो देश में शांति की स्थिति होना आवश्यक है और शांति की स्थापना शक्ति से होती है। इसी कारण मिसाइलों को विकसित किया गया ताकि देश शक्ति सम्पन्न हो।

राष्ट्रपति पद पर
डॉक्टर अब्दुल कलाम भारत के ग्यारवें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे। इन्हें भारतीय जनता पार्टी समर्थित एन.डी.ए. घटक दलों ने अपना उम्मीदवार बनाया था जिसका वामदलों के अलावा समस्त दलों ने समर्थन किया। 18 जुलाई, 2002 को डॉक्टर कलाम को नब्बे प्रतिशत बहुमत द्वारा 'भारत का राष्ट्रपति' चुना गया था और इन्हें 25 जुलाई 2002 को संसद भवन के अशोक कक्ष में राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई गई। इस संक्षिप्त समारोह में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, उनके मंत्रिमंडल के सदस्य तथा अधिकारीगण उपस्थित थे। इनका कार्यकाल 25 जुलाई 2007 को समाप्त हुआ। भारतीय जनता पार्टी में इनके नाम के प्रति सहमति न हो पाने के कारण यह दोबारा राष्ट्रपति नहीं बनाए जा सके।

व्यक्तित्व एवं कृतित्व
इतने महत्तवपूर्ण व्यक्ति के बारे में कुछ भी कहना सरल नहीं है। वेशभूषा, बोलचाल के लहजे, अच्छे-खासे सरकारी आवास को छोड़कर हॉस्टल का सादगीपूर्ण जीवन, ये बातें उनके संपर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर एक सम्मोहक प्रभाव छोड़ती हैं। डॉ. कलाम एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, देश के विकास और युवा मस्तिष्कों को प्रज्ज्वलित करने में अपनी तल्लीनता के साथ साथ वे पर्यावरण की चिंता भी खूब करते हैं, साहित्य में रूचि रखते हैं, कविता लिखते हैं, वीणा बजाते हैं, तथा अध्यात्म से बहुत गहरे जुड़े हुए हैं। डॉ. कलाम में अपने काम के प्रति जबर्दस्त दीवानगी है। उनके लिए कोई भी समय काम का समय होता है। वह अपना अधिकांश समय कार्यालय में बिताते हैं। देर शाम तक विभिन्न कार्यक्रमों में डॉ. कलाम की सक्रियता तथा स्फूर्ति काबिलेतारीफ है। ऊर्जा का ऐसा प्रवाह केवल गहरी प्रतिबद्धता तथा समर्पण से ही आ सकता है। डॉ. कलाम खानपान में पूर्णत: शाकाहारी व्यक्ति हैं। वे मदिरापान से बिलकुल परहेज करते हैं। उनका निजी जीवन अनुकरणीय है। डॉ. कलाम की याददाश्त बहुत तेज है। वे घटनाओं तथा बातों को याद रखते हैं।

              इंदिरा गांधी को एस.एल.वी.-3 के बारे में जानकारी देते हुए डॉ. कलाम

डॉ. कलाम बातचीत में बड़े विनोदप्रिय स्वभाव के हैं। अपनी बात को बड़ी सरलता तथा साफगोई से सामने रखते हैं। प्राय: उनकी बातों में हास्य का पुट होता है। लेकिन बात बहुत सटीक तौर पर करते हैं। डॉ. कलाम सभी मुद्दों को मानवीयता की कसौटी पर परखते हैं। उनके लिए जाति, धर्म, वर्ग, समुदाय मायने नहीं रखते। वे सर्वधर्म समभाव के प्रतीक हैं।
वह इंसान के जीवन को ऊंचा उठाना चाहते हैं। उसे बेहतरी की ओर ले जाना चाहते हैं। उनका मानवतावाद मनुष्यों की समानता के आधारभूत सिद्धांत पर आधारित है। 25 जुलाई, 2002 की शाम को भारत के राष्ट्रपति का सर्वोच्च पद सँभालने के दिन घटित एक बात से इसे अच्छी तरह समझा जा सकता है। उस दिन राष्ट्रपति भवन में एक प्रार्थना सभा आयोजित की गई थी जिसमें रामेश्वरम् मसजिद के मौलवी, रामेश्वरम् मंदिर के पुजारी, सेंट जोसेफ कॉलेज के फॉदर रेक्टर तथा अन्य लोगों ने भाग लिया था। उनके बारे में जो पहलू सबसे कम प्रचारित है वह है उनकी उदारता या परोपकार की भावना।

समाज सेवा
उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तकें बहुत लोकप्रिय रही हैं। वे अपनी किताबों की रॉयल्टी का अधिकांश हिस्सा स्वयंसेवी संस्थाओं को मदद में दे देते हैं। मदर टेरेसा द्वारा स्थापित 'सिस्टर्स ऑफ़ चैरिटी' उनमें से एक है। विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कार मिले हैं। इनमें से कुछ पुरस्कारों के साथ नकद राशियां भी थीं। वह इन पुरस्कार राशियों को परोपकार के कार्यों के लिए अलग रखते हैं। जब-जब देश में प्राकृतिक आपदाएँ आई हैं, तब-तब डॉ. कलाम की मानवीयता एवं करुणा निखरकर सामने आई है। वह अन्य मनुष्यों के कष्ट तथा पीड़ा के विचार मात्र से दुःखी हो जाते हैं। वह प्रभावित लोगों को राहत पहुचाँने के लिए डी.आर.डी.ओ. के नियंत्रण में मौजूद सभी संसाधनों को एकत्रित करते। जब वे रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन में कार्यरत थे तो उन्होंने हर राष्ट्रीय आपदा में विभाग की ओर से बढ़ चढ़कर राहत कोष में मदद की।


सम्मान और पुरस्कार
डॉ. कलाम इसरो के वैज्ञानिकों को पढ़ाते हुए, सन् 1980
डॉ. कलाम को अनेक सम्मान और पुरस्कार मिले हैं जिनमें शामिल हैं-
इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स का नेशनल डिजाइन अवार्ड
एरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया का डॉ. बिरेन रॉय स्पेस अवार्ड
एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया का आर्यभट्ट पुरस्कार
विज्ञान के लिए जी.एम. मोदी पुरस्कार
राष्ट्रीय एकता के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार।
ये भारत के एक विशिष्ट वैज्ञानिक हैं, जिन्हें 30 विश्वविद्यालयों और संस्थानों से डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त हो चुकी है।
इन्हें भारत के नागरिक सम्मान के रूप में 1981 में पद्म भूषण, 1990 में पद्म विभूषण, 1997 में भारत रत्न सम्मान प्राप्त हो चुके है।

विशेषता
डॉक्टर अब्दुल कलाम ऐसे तीसरे राष्ट्रपति हैं जिन्हें भारत रत्न का सम्मान राष्ट्रपति बनने से पूर्व ही प्राप्त हुआ है, अन्य दो राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन हैं।
यह प्रथम वैज्ञानिक हैं जो राष्ट्रपति बने हैं और प्रथम राष्ट्रपति भी हैं जो अविवाहित हैं।

27 जुलाई 2015 को उनका निधन हुआ।
                अंतिम दृश्य जब व्याख्यान के दौरान हृदयाघात पड़ा IIM शिलॉंग


रविवार, 26 जुलाई 2015

हमारी रक्षा हेतु भगवान क्यों आतें हैं बार बार...??? हर एक हिन्दू जाने और शेयर करे...!!!

भगवान बार-बार आता है-क्यों ?

एक बार अकबर ने बीरबल से पूछाः "तुम्हारे भगवान और हमारे खुदा में बहुत फर्क है। हमारा खुदा तो अपना पैगम्बर भेजता है जबकि तुम्हारा भगवान बार-बार आता है। यह क्या बात है ?"
बीरबलः "जहाँपनाह ! इस बात का कभी व्यवहारिक तौर पर अनुभव करवा दूँगा। आप जरा थोड़े दिनों की मोहलत दीजिए।"
चार-पाँच दिन बीत गये। बीरबल ने एक आयोजन किया। अकबर को यमुनाजी में नौकाविहार कराने ले गये। कुछ नावों की व्यवस्था पहलेसे ही करवा दी थी। उस समय यमुनाजी छिछली न थीं। उनमेंअथाह जल था। बीरबल ने एक युक्ति की कि जिस नाव में अकबर बैठा था, उसी नाव में एक दासी को अकबर के नवजात शिशु के साथ बैठा दिया गया।सचमुच में वह नवजात शिशु नहीं था। मोम का बालक पुतलाबनाकर उसे राजसी वस्त्र पहनाये गये थे ताकि वह अकबरका बेटा लगे। दासी को सब कुछ सिखा दिया गया था।
नाव जब बीच मझधार में पहुँची और हिलने लगी तब 'अरे.... रे... रे.... ओ.... ओ.....' कहकर दासी ने स्त्री चरित्रकरके बच्चे को पानी में गिरा दिया और रोने बिलखने लगी। अपने बालक को बचाने-खोजने के लिए अकबर धड़ाम सेयमुना में कूद पड़ा। खूब इधर-उधर गोते मारकर, बड़ी मुश्किल से उसने बच्चे को पानी में से निकाला। वह बच्चा तो क्या था मोम का पुतला था।
अकबर कहने लगाः "बीरबल ! यह सारी शरारत तुम्हारी है। तुमने मेरी बेइज्जती करवाने के लिए ही ऐसा किया।"
बीरबलः "जहाँपनाह ! आपकी बेइज्जती के लिए नहीं, बल्कि आपके प्रश्न का उत्तरदेने के लिए ऐसा ही किया गया था। आप इसे अपना शिशु समझकर नदी में कूद पड़े। उससमय आपको पता तो था ही इन सबनावों में कई तैराक बैठे थे, नाविक भी बैठे थे और हम भी तो थे ! आपने हमको आदेश क्यों नहीं दिया ? हम कूदकरआपके बेटे की रक्षा करते !"
अकबरः "बीरबल ! यदि अपना बेटा डूबता हो तो अपने मंत्रियों को या तैराकों कोकहने की फुरसत कहाँ रहती है? खुद ही कूदा जाता है।"
बीरबलः "जैसे अपने बेटे की रक्षा के लिए आप खुद कूद पड़े, ऐसे ही हमारे भगवान जब अपने बालकों को संसार एवं संसार की मुसीबतों में डूबता हुआ देखते हैं तो वे किसी ऐैरे गैरों को नहींभेजते, वरन् खुद ही प्रगट होते हैं। वे अपने बेटों कीरक्षा के लिए आप ही अवतार ग्रहण करते है और संसार को आनंद तथा प्रेम के प्रसाद से धन्य करते हैं। आपके उस दिन के सवाल का यही जवाब है.
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जय हिंदुत्व ...
जय हिन्द ... वन्देमातरम ...

शनिवार, 25 जुलाई 2015

तो ये है एकादशी के दिन चावल न करने का "विज्ञान".!! सभी तक शेयर जरूर करें...!

एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित क्यों है? 




वर्ष की चौबीसों एकादशियों में चावल न खाने की सलाह दी जाती है। ऐसा माना गया है कि इस दिन चावल खाने से प्राणी रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म पाता है, किन्तु द्वादशी को चावल खाने से इस योनि से मुक्ति भी मिल जाती है। एकादशी के विषय में शास्त्र कहते हैं, ‘न विवेकसमो बन्धुर्नैकादश्या: परं व्रतं’ यानी विवेक के सामान कोई बंधु नहीं है और एकादशी से बढ़ कर कोई व्रत नहीं है। पांच ज्ञान इन्द्रियां, पांच कर्म इन्द्रियां और एक मन, इन ग्यारहों को जो साध ले, वह प्राणी एकादशी के समान पवित्र और दिव्य हो जाता है। एकादशी जगतगुरु विष्णुस्वरुप है, जहां चावल का संबंध जल से है, वहीं जल का संबंध चंद्रमा से है। पांचों ज्ञान इन्द्रियां और पांचों कर्म इन्द्रियों पर मन का ही अधिकार है। मन ही जीवात्मा का चित्त स्थिर-अस्थिर करता है। मन और श्वेत रंग के स्वामी भी चंद्रमा ही हैं, जो स्वयं जल, रस और भावना के कारक हैं, इसीलिए जलतत्त्व राशि के जातक भावना प्रधान होते हैं, जो अक्सर धोखा खाते हैं। एकादशी के दिन शरीर में जल की मात्र जितनी कम रहेगी, व्रत पूर्ण करने में उतनी ही अधिक सात्विकता रहेगी। महाभारत काल में वेदों का विस्तार करने वाले भगवान व्यास ने पांडव पुत्र भीम को इसीलिए निर्जला एकादशी (वगैर जल पिए हुए) करने का सुझाव दिया था। आदिकाल में देवर्षि नारद ने एक हजार वर्ष तक एकादशी का निर्जल व्रत करके नारायण भक्ति प्राप्त की थी। वैष्णव के लिए यह सर्वश्रेष्ठ व्रत है।

चंद्रमा मन को अधिक चलायमान न कर पाएं, इसीलिए व्रती इस दिन चावल खाने से परहेज करते हैं। एक और पौराणिक कथा है कि माता शक्ति के क्रोध से भागते-भागते भयभीत महर्षि मेधा ने अपने योग बल से शरीर छोड़ दिया और उनकी मेधा पृथ्वी में समा गई। वही मेधा जौ और चावल के रूप में उत्पन्न हुईं। ऐसा माना गया है कि यह घटना एकादशी को घटी थी। यह जौ और चावल महर्षि की ही मेधा शक्ति है, जो जीव हैं। इस दिन चावल खाना महर्षि मेधा के शरीर के छोटे-छोटे मांस के टुकड़े खाने जैसा माना गया है, इसीलिए इस दिन से जौ और चावल को जीवधारी माना गया है। आज भी जौ और चावल को उत्पन्न होने के लिए मिट्टी की भी जरूत नहीं पड़ती। केवल जल का छींटा मारने से ही ये अंकुरित हो जाते हैं। इनको जीव रूप मानते हुए एकादशी को भोजन के रूप में ग्रहण करने से परहेज किया गया है, ताकि सात्विक रूप से विष्णुस्वरुप एकादशी का व्रत संपन्न हो सके।
चावल और जौ के रूप में महर्षि मेधा उत्पन्न हुए इसलिए चावल और जौ को जीव माना जाता है। जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया, उस दिन एकादशी तिथि थी। इसलिए एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित माना गया। मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाना महर्षि मेधा के मांस और रक्त का सेवन करने जैसा है। 

वैज्ञानिक तथ्य के अनुसार चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होती है। क्योंकि चावल की खेती पूरी पानी मे होती है ! इसलिए इसमे पानी का प्रभाव अधिक होता है ! और जल पर चन्द्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है। क्योंकि जल को अग्नि का विपरीत माना गया ! और चंद्रमाँ को सूर्य का विपरीत इसलिए चंद्रमा का प्रभाव जल पर अधिक होता है ! ह चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है इससे मन विचलित और चंचल होता है। कारण-चंद्र का संबंध जल से है। वह जल को अपनी ओर आकर्षित करता है यदि व्रती चावल का भोजन करे तो चंद्रकिरणें उसके शरीर के संपूर्ण जलीय अंश को तरंगित करेंगी। परिणाम जिस एकाग्रता से उसे व्रत के अन्य कर्म-स्तुति पाठ, जप, श्रवण करने होगे. उन्हें सही प्रकार से नहीं कर पाएगा।मन के चंचल होने से व्रत के नियमों का पालन करने में बाधा आती है। एकादशी व्रत में मन का निग्रह और सात्विक भाव का पालन अति आवश्यक होता है इसलिए एकादशी के दिन चावल से बनी चीजें खाना वर्जित कहा गया है। 
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शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

....वह "इस्लामी" देश जहां वैदिक जीवनशैली में जीते हैं हिन्दू...!!

ओमान, जहां वैदिक जीवनशैली में जीते हैं अल्पसंख्यक हिन्दू !


मध्य पूर्व समुद्र के दक्षिण तट पर स्थित छोटा सा मुस्लिम देश
ओमान है जिसके बारे में लोग कम जानते हैं। ओमान की रोशनी
की मीनार कुरान शरीफ, राष्ट्रीय सरकारी धर्म इस्लाम और
राष्ट्रीय भाषा अरबी हैं। ओमान का शाही परिवार राजमहल
में हर वर्ष हवन भी करवाता है। ओमान में हिन्दू अपने रीति
रिवाजों अनुसार जीवन व्यतीत कर रहे हैं। भगवान कृष्ण और
शिवजी के दो विशाल मंदिर एवं तीन आर्य समाज मंदिर हैं , एक
वेद मंदिर राजधानी से 15 किलोमीटर एक गांव में है। भारत के
प्रसिध्द संन्यासी स्वामी परमानन्द का जन्म ओमान में हुआ
था और शिक्षा भारत से प्राप्त की। ओमान की राजधानी
मस्कट के सुहार नामक स्थान पर हिन्दू लोगों ने बड़े श्मशान
घाट का निर्माण कराया है। जहां मृतक हिन्दू लोगों का दाह
संस्कार वैदिक रीति रिवाजों के अनुसार किया जाता है।
ओमान के ग्रामीण इलाकों में प्राचीन वैदिक संस्कृति के अवशेष
आज भी बिखरे पड़े हैं, अनेक जगह खंडहरों के रूप में अग्नि मंदिर देखे
जा सकते हैं।
मस्कट में एक भव्य गुरुद्वार का निर्माण किया गया है। पहले यहां
सिख समुदाय की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती थी,
लेकिन अब वह संख्या बढ़ती जा रही है। सिख श्रध्दालु प्रात:
और सायं अरदास में अपनी हाजिरी लगवाते हैं। शुक्रवार छुट्टी
का दिन होने कारण अखंड पाठ के भोग के पश्चात् लंगर बांटा
जाता है। ओमान में प्रति 5 व्यक्तियों के पीछे एक कार है।
मस्कट में तो महंगी से महंगी कार आपको देखने में मिल जाएगी।
यहां क्राइम रेट बहुत कम है।

ओमान में तमिल बह्रमी लिपि
ओमन के खोर-रोरी इलाके में हाल ही में एक प्राचीन घड़े का टूटा हुआ अंश मिला है, जिस पर प्राचीन बह्रमी भाषा में लिखा हुआ है और इसका अनुमान भी पहली शताब्दी के आस-पास का ही लगाया जाता है. इससे इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि प्राचीन समय से ही भारत के व्यापार की पहुंच काफ़ी दूर-दूर तक थी.



|| ओमान में हिन्दू धर्म के यज्ञ ||
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अभी तक किसी भी अरब देश में इस्लाम के अलावा और किसी धर्म की पूजा करने की अनुमति नहीं थी |
ओमान के सुल्तान के कर्नाटक से 22 पुजारियों के समूह को बुला के अपना मेहमान बनाया है और उनसे अपने जीवन रक्षा हेतु यज्ञ करवा रहे है |
ओमान के सुल्तान को कैंसर की समस्या है और उससे निजात के लिए महामृत्युंजय यज्ञ, विष्णु यज्ञ , और धन्वन्तरी यज्ञ होने है
लिंक : http://timesofindia.indiatimes.com/india/22-vedic-brahmins-from-Karnataka-conduct-homa-for-Sultan-of-Oman/articleshow/45124292.cms?utm_source=facebook.com&utm_medium=referral&utm_campaign=TOI

गुरुवार, 23 जुलाई 2015

......तो ये था चन्द्रशेखर आजाद की हत्या का सुनियोजित षडयन्त्र....!!!

चंद्रशेखर आज़ाद की मौत ( असली राज )

मित्रों, चंद्रशेखर आज़ाद की मौत से जुडी फ़ाइल आज भी लखनऊ के सीआइडी ऑफिस १- गोखले मार्ग मे रखी है .. उस फ़ाइल को नेहरु ने सार्वजनिक करने से मना कर दिया .. इतना ही नही नेहरु ने यूपी के प्रथम मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पन्त को उस फ़ाइल को नष्ट करने का आदेश दिया था .. लेकिन चूँकि पन्त जी खुद
एक महान क्रांतिकारी रहे थे इसलिए उन्होंने नेहरु को झूठी सुचना दी की उस फ़ाइल
को नष्ट कर दिया गया है ..
क्या है
उस फ़ाइल मे ?
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उस फ़ाइल मे इलाहबाद के तत्कालीन पुलिस सुपरिटेंडेंट मिस्टर नॉट वावर के बयान दर्ज है जिसने अगुवाई मे ही पुलिस ने अल्फ्रेड पार्क मे बैठे आजाद को घेर लिया था और एक भीषण गोलीबारी के बाद आज़ाद शहीद हुए |
नॉट वावर ने अपने बयान मे कहा है कि " मै खाना खा रहा था तभी नेहरु का एक संदेशवाहक आया उसने कहा कि नेहरु जी ने एक संदेश दिया है कि आपका शिकार अल्फ्रेड पार्क मे है और तीन बजे तक रहेगा .. मै कुछ समझा नही फिर मैं तुरंत आनंद भवन भागा और नेहरु ने बताया कि अभी आज़ाद अपने साथियो के साथ आया था वो रूस भागने के लिए बारह सौ रूपये मांग रहा था मैंने उसे अल्फ्रेड पार्क मे बैठने को कहा है "
फिर मै बिना देरी किये पुलिस बल लेकर अल्फ्रेड पार्क को चारो ओर घेर लिया और आजाद को आत्मसमर्पण करने को कहा लेकिन उसने अपना माउजर निकालकर हमारे एक इंस्पेक्टर को मार दिया फिर मैंने भी गोली चलाने का हुकम दिया .. पांच गोली से आजाद ने हमारे पांच लोगो को मारा फिर छठी गोली अपने कनपटी पर मार दी |"
आजाद नेहरु से मिलने क्यों गए थे ?
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इसके दो कारण है
१- भगत सिंह की फांसी की सजा माफ़ करवाना
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महान क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आजाद जिनके नाम से ही अंग्रेज अफसरों की पेंट गीली हो जाती थी, उन्हें मरवाने में किसका हाथ था ? 27 फरवरी 1931 को क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आजाद की मौत हुयी थी । इस दिन सुबह आजाद नेहरु से आनंद भवन में उनसे भगत सिंह की फांसी की सजा को उम्र केद में बदलवाने के लिए मिलने गये थे, क्यों की वायसराय लार्ड इरविन से नेहरु के अच्छे ''सम्बन्ध'' थे, पर नेहरु ने आजाद की बात नही मानी,दोनों में आपस में तीखी बहस हुयी, और नेहरु ने तुरंत आजाद को आनंद भवन से निकल जाने को कहा । आनंद भवन से निकल कर आजाद सीधे अपनी साइकिल से अल्फ्रेड पार्क गये । इसी पार्क में नाट बाबर के साथ मुठभेड़ में वो शहीद हुए थे ।अब आप अंदाजा लगा लीजिये की उनकी मुखबरी किसने की ? आजाद के लाहोर में होने की जानकारी सिर्फ नेहरु को थी । अंग्रेजो को उनके बारे में जानकारी किसने दी ? जिसे अंग्रेज शासन इतने सालो तक पकड़ नही सका,तलाश नही सका था, उसे अंग्रेजो ने 40 मिनट में तलाश कर, अल्फ्रेड पार्क में घेर लिया । वो भी पूरी पुलिस फ़ोर्स और तेयारी के साथ ?
अब आप ही सोच ले की गद्दार कोन हें ?
२- लड़ाई को आगे जारी रखने के लिए रूस जाकर स्टालिन की मदद लेने की योजना
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मित्रों, आज़ाद पहले कानपूर गणेश शंकर विद्यार्थी जी के पास गए फिर वहाँ तय हुआ की स्टालिन की मदद ली जाये क्योकि स्टालिन ने खुद ही आजाद को रूस बुलाया था . सभी साथियो को रूस जाने के लिए बारह सौ रूपये की जरूरत थी .जो उनके पास नही था इसलिए आजाद ने प्रस्ताव रखा कि क्यों न नेहरु से पैसे माँगा जाये .लेकिन इस प्रस्ताव का सभी ने विरोध किया और कहा कि नेहरु तो अंग्रेजो का दलाल है लेकिन आजाद ने कहा कुछ भी हो आखिर उसके सीने मे भी तो एक भारतीय दिल है वो मना नही करेगा |
फिर आज़ाद अकेले ही कानपूर से इलाहबाद रवाना हो गए और आनंद भवन गए उनको सामने देखकर नेहरु चौक उठा |
आजाद ने उसे बताया कि हम सब स्टालिन के पास रूस जाना चाहते है क्योकि उन्होंने हमे बुलाया है और मदद करने का प्रस्ताव भेजा है .पहले तो नेहरु काफी गुस्सा हुआ फिर तुरंत ही मान गया और कहा कि तुम अल्फ्रेड पार्क बैठो मेरा आदमी तीन बजे तुम्हे वहाँ ही पैसे दे देगा |
http://navbharattimes.indiatimes.com/photomazza/national-international-photogallery/interesting-facts-about-indian-revolutionary-chandra-shekhar-azad/films/photomazaashow/48177692.cmsमित्रों, फिर आपलोग सोचो कि कौन वो गद्दार है जिसने आज़ाद की मुखबिरी की थी ?

“मन तो मेरा भी करता है झूमूँ , नाचूँ, गाऊँ मैं
आजादी की स्वर्ण-जयंती वाले गीत सुनाऊँ मैं
लेकिन सरगम वाला वातावरण कहाँ से लाऊँ मैं
मेघ-मल्हारों वाला अन्तयकरण कहाँ से लाऊँ मैं
मैं दामन में दर्द तुम्हारे, अपने लेकर बैठी हूँ
आजादी के टूटे-फूटे सपने लेकर बैठी हूँ
घाव जिन्होंने भारत माता को गहरे दे रक्खे हैं
उन लोगों को z सुरक्षा के पहरे दे रक्खे हैं
जो भारत को बरबादी की हद तक लाने वाले हैं
वे ही स्वर्ण-जयंती का पैगाम सुनाने वाले हैं
आज़ादी लाने वालों का तिरस्कार तड़पाता है
बलिदानी-गाथा पर थूका, बार-बार तड़पाता है
क्रांतिकारियों की बलि वेदी जिससे गौरव पाती है
आज़ादी में उस शेखर को भी गाली दी जाती है
राजमहल के अन्दर ऐरे- गैरे तनकर बैठे हैं
बुद्धिमान सब गाँधी जी के बन्दर बनकर बैठे हैं
इसीलिए मैं अभिनंदन के गीत नहीं गा सकती हूँ |
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकती हूँ | |

इससे बढ़कर और शर्म की बात नहीं हो सकती थी
आजादी के परवानों पर घात नहीं हो सकती थी
कोई बलिदानी शेखर को आतंकी कह जाता है
पत्थर पर से नाम हटाकर कुर्सी पर रह जाता है
गाली की भी कोई सीमा है कोईमर्यादा है
ये घटना तो देश-द्रोह की परिभाषा से ज्यादा है
सारे वतन-पुरोधा चुप हैं कोई कहीं नहीं बोला
लेकिन कोई ये ना समझे कोई खून नहीं खौला
मेरी आँखों में पानी है सीने में चिंगारी है
राजनीति ने कुर्बानी के दिल पर ठोकर मारी है
सुनकर बलिदानी बेटों का धीरज डोल गया होगा
मंगल पांडे फिर शोणित की भाषा बोल गया होगा
सुनकर हिंद – महासागर की लहरें तड़प गई होंगी
शायद बिस्मिल की गजलों की बहरें तड़प गई होंगी
नीलगगन में कोई पुच्छल तारा टूट गया होगा
अशफाकउल्ला की आँखों में लावा फूट गया होगा
मातृभूमि पर मिटने वाला टोला भी रोया होगा
इन्कलाब का गीत बसंती चोला भी रोया होगा
चुपके-चुपके रोया होगा संगम-तीरथ का पानी
आँसू-आँसू रोयी होगी धरती की चूनर धानी
एक समंदर रोयी होगी भगतसिंह की कुर्बानी
क्या ये ही सुनने की खातिर फाँसी झूले सेनानी ???
जहाँ मरे आजाद पार्क के पत्ते खड़क गये होंगे
कहीं स्वर्ग में शेखर जी केबाजू फड़क गये होंगे
शायद पल दो पल को उनकी निद्रा भाग गयी होगी
फिर पिस्तौल उठा लेने की इच्छा जाग गयी होगी
मैं सूरज की बेटी तम के गीत नहीं गा सकती हूँ |
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकती हूँ | |

महायज्ञ का नायक गौरव भारत भू का है
जिसका भारत की जनता से रिश्ता आज लहू का है
जिसके जीवन के दर्शन ने हिम्मत को परिभाषा दी
जिसने पिस्टल की गोली से इन्कलाब को भाषा दी
जिसकी यशगाथा भारत के घर-घर में नभचुम्बी है
जिसकी थोड़ी सी आयु भी कई युगों से लम्बी है
जिसके कारण त्याग अलौकिक माता के आँगन में था
जो इकलौता बेटा होकर आजादी के रण में था
जिसको ख़ूनी मेहंदी से भी देह रचना आता था
आजादी का योद्धा केवल चना-चबेना खाता था
अब तो नेता सड़कें, पर्वत, शहरों को खा जाते हैं
पुल के शिलान्यास के बदले नहरों को खा जाते हैं
जब तक भारत की नदियों में कल-कल बहता पानी है
क्रांति ज्वाल के इतिहासोंमें शेखर अमर कहानी है
आजादी के कारण जो गोरों से कभी लड़ी है रे
शेखर की पिस्तौल किसी तीरथ से बहुत बड़ी है रे !
स्वर्ण जयंती वाला जो ये मंदिर खड़ा हुआ होगा
शेखर इसकी बुनियादों के नीचे गड़ा हुआ होगा
मैं साहित्य नहीं चोटों का चित्रण हूँ
आजादी के अवमूल्यन का वर्णन हूँ
मैं दर्पण हूँ दागी चेहरों को कैसे भा सकती हूँ
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकती हूँ
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अंतिम पंकतिया उन शहीदों को सलाम !
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जो सीने पर गोली खाने को आगे बढ़ जाते थे,
भारत माता की जय कह कर फ़ासीं पर जाते थे |
जिन बेटो ने धरती माता पर कुर्बानी दे डाली,
आजादी के हवन कुँड के लिये जवानी दे डाली !
वे देवो की लोकसभा के अँग बने बैठे होगे
वे सतरँगी इन्द्रधनुष के रँग बने बैठे होगे !ii
दूर गगन के तारे उनके नाम दिखाई देते है
उनके स्मारक चारो धाम दिखाई देते है !
जिनके कारण ये भारत आजाद दिखाई देता है
अमर तिरँगा उन बेटो की याद दिखाई देता है !
उनका नाम जुबा पर लो तो पलको को झपका लेना
उनको जब भी याद करो तो दो आँसू टपका लेना
उनको जब भी याद करो तो दो आँसू टपका लेना….

शत् शत् नमन.......निःशब्द

बुधवार, 22 जुलाई 2015

तैरते हुए 70 खम्भों वाला मंदिर महाइंजीनियरिंग और रहस्य का नमूना....! हर हिन्दू अवश्य जाने और सभी तक पहुंचाये

आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले का लेपाक्षी मंदिर हैंगिंग पिलर्स (हवा में झूलते पिलर्स) के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। इस मंदिर के 70 से ज्यादा पिलर बिना किसी सहारे के खड़े हैं और मंदिर को संभाले हुए हैं। मंदिर के ये अनोखे पिलर हर साल यहां आने वाले लाखों टूरिस्टों के लिए बड़ी मिस्ट्री हैं। मंदिर में आने वाले भक्तों का मानना है कि इन पिलर्स के नीचे से अपना कपड़ा निकालने से सुख-समृद्धि मिलती है। अंग्रेजों ने इस रहस्य को जानने के लिए काफी कोशिश की, लेकिन वे कामयाब नहीं हो सके।

कैसे पड़ा 'लेपाक्षी' नाम    
लेपाक्षी इलाके के नाम के पीछे एक कहानी है कि वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता यहां आए थे। सीता का अपहरण कर रावण अपने साथ लंका लेकर जा रहा था, तभी पक्षीराज जटायु ने रावण से युद्ध किया और घायल हो कर इसी स्थान पर गिरे थे। बाद में जब श्रीराम सीता की तलाश में यहां पहुंचे तो उन्होंने 'ले पाक्षी' कहते हुए जटायु को अपने गले लगा लिया। ले पाक्षी एक तेलुगु शब्द है जिसका मतलब है 'उठो पक्षी'।


अंग्रेजों ने की थी मिस्ट्री जानने की कोशिश


 16वीं सदी में बने इस मंदिर के रहस्य को जानने के लिए अंग्रेजों में इसे शिफ्ट करने की कोशिश की, लेकिन वे नाकाम रहे थे। एक इंजीनियर ने इसके रहस्य को जानने के लिए मंदिर को तोड़ने का प्रयास किया तो पाया कि मंदिर के सभी पिलर हवा में झूलते हैं। मंदिर को सन् 1583 में विजयनगर के राजा के लिए काम करने वाले दो भाईयों (विरुपन्ना और वीरन्ना) ने बनाया था। वहीं, पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इसे ऋषि अगस्त ने बनाया था।


लेपाक्षी मंदिर में हैं कई खास बातें 

 इस मंदिर का निर्माण 16वीं शताब्दी में किया गया। यह मंदिर भगवान शिव, विष्णु और वीरभद्र के लिए बनाया गया है। यहां तीनों भगवानों के अलग-अलग मंदिर भी मौजूद हैं। यहां बड़ी नागलिंग प्रतिमा मंदिर परिसर में लगी है, जो कि एक ही पत्थर से बनी है। यह भारत की सबसे बड़ी नागलिंग प्रतिमा मानी जाती है। काले ग्रेनाइट पत्थर से बनी इस मूर्ति में एक शिवलिंग के ऊपर सात फन वाला नाग बैठा है। दूसरी ओर, मंदिर में रामपदम (मान्यता के मुताबिक श्रीराम के पांव के निशान) स्थित हैं, जबकि कई लोगों का मानना है की यह माता सीता के पैरों के निशान हैं।





मंगलवार, 21 जुलाई 2015

.....तो 2070 तक भारत बन जायेगा इस्लामी मुल्क पाकिस्तान....???

मुस्लिमो की जनसँख्या हिन्दू जनसँख्या के मुकाबले 3 गुना तेजी से बढ़ रही है
Dainik Bharat : उत्तर प्रदेश के ताजा धार्मिक जनसँख्या के आंकड़े,मुस्लिम महिला,हिन्दू महिला के मुकाबले अधिक बच्चे जन्म दे रही है।2015-मुस्लिम 24% हिन्दू 74% अन्य 2%....2001- मुस्लिम 18% हिन्दू 80% अन्य 2%.............मुस्लिमो की जनसँख्या हिन्दू जनसँख्या के मुकाबले 3 गुना तेजी से बढ़ रही है,औसतन मुस्लिम महिला 3.4 बच्चे तथा हिन्दू महिला 1.4 बच्चे जन्म दे रही है,कुछ प्रमुख जिलों के जनसँख्या के आंकड़े।

                             


1940's:I love my country, BUT I hate its people.
GIVE ME A SEPARATE NATION.

1950's - I love my country, BUT I don't like its constitution.
GIVE ME RIGHTS TO MARRY 4 WOMEN AND DIVORCE THEM AT MY WILL.


1980's - I love my country, BUT Kashmir belongs to Muslims only.
I WILL KICK OUT ALL KASHMIRI HINDU PANDITS FROM THE VALLEY. THERE WILL BE ISLAMIC LAWS ONLY IN KASHMIR.


1990's - I love my country, BUT I love Babur more.
I DON'T CARE WHY RAM MANDIR WAS DESTROYED, BUT I WANT BABRI MASJID BACK.

2000's - I love my country, BUT I will burn Ram Sevaks in a train alive.
AND I WILL START RONA ONCE THEY RETALIATE.

2010's - I love my country, BUT I will protest for Gaza only.
I WILL KICK AND DESTROY AMAR JAWAN JYOTI TO SHOW MY STRENGTH.

2013 - I love my country,
BUT I WILL NOT SING VANDE MATARAM, NO MATTER IF IT IS OUR NATIONAL SONG.

2014 - I love my country,
BUT WE ARE IN MAJORITY IN MANY PARTS OF ASSAM, BENGAL, UP AND KERALA. SO NO DURGA POOJA AT THOSE PLACES.

2020 - I love my country,
BUT WE ARE IN MAJORITY IN KASHMIR, UP, BIHAR, BENGAL, ASSAM AND KERALA. BRING SHARIA LAW NOW OR ELSE WE WILL START KILLING PEOPLE LIKE IN 1947 AND DEMAND A SEPARATE NATION.

2050 - I love my country,
BUT WE ARE NOW 40% OF INDIA'S POPULATION. NOW STOP IDOL WORSHIP AS IT HURTS OUR FEELINGS. WE ARE DESTROYING YOUR TEMPLES, BUT LEAVING YOU ALIVE.

2060 - Muslims cross 50% of India's population and then the truth comes out.
2070 - I DON'T LOVE ANY COUNTRY BECAUSE THERE IS NO CONCEPT OF NATION IN MY RELIGION. THERE IS ONLY MY RELIGION THAT I CARE ABOUT."I LOVE MY COUNTRY" THING WAS TO FOOL YOU WHEN YOU WERE IN MAJORITY. DIDN'T YOU SEE IN 1947 THAT WE DON'T CARE ABOUT THE NATION?

By this time when there will be a civil war in India, Super Secular will be busy packing their bags to leave the country and settle somewhere else where they will again have liberty to abuse the harmless majority and appease the minorities.............

सोमवार, 20 जुलाई 2015

छप्पन भोग का कारण, कथा एवं विज्ञान अवश्य जानें और Share करें..!

56 (छप्पन) भोग क्यों लगाते है...???
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भगवान को लगाए जाने वाले भोग
की बड़ी महिमा है |
इनके लिए 56 प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे
छप्पन भोग कहा जाता है |
यह भोग रसगुल्ले से शुरू होकर दही, चावल, पूरी,
पापड़ आदि से होते हुए इलायची पर जाकर खत्म
होता है |
अष्ट पहर भोजन करने वाले बालकृष्ण भगवान
को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे
कई रोचक कथाएं हैं |

ऐसा भी कहा जाता है
कि यशोदाजी बालकृष्ण को एक दिन में अष्ट पहर
भोजन कराती थी | अर्थात्...बालकृष्ण आठ बार
भोजन करते थे |
जब इंद्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए
भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत
को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक
भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया |
आठवे दिन जब भगवान ने देखा कि अब इंद्र
की वर्षा बंद हो गई है,
सभी व्रजवासियो को गोवर्धन पर्वत से बाहर
निकल जाने को कहा, तब दिन में आठ प्रहर भोजन
करने वाले व्रज के नंदलाल कन्हैया का लगातार
सात दिन तक भूखा रहना उनके व्रज वासियों और
मया यशोदा के लिए बड़ा कष्टप्रद हुआ. भगवान के
प्रति अपनी अन्न्य श्रद्धा भक्ति दिखाते हुए
सभी व्रजवासियो सहित यशोदा जी ने 7 दिन
और अष्ट पहर के हिसाब से 7X8= 56
व्यंजनो का भोग बाल कृष्ण को लगाया |
गोपिकाओं ने भेंट किए छप्पन भोग...

श्रीमद्भागवत के अनुसार, गोपिकाओं ने एक माह
तक यमुना में भोर में ही न केवल स्नान किया,
अपितु कात्यायनी मां की अर्चना भी इस
मनोकामना से की, कि उन्हें नंदकुमार ही पति रूप
में प्राप्त हों |
श्रीकृष्ण ने उनकी मनोकामना पूर्ति की सहमति दे दी |
व्रत समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होने के
उपलक्ष्य में ही उद्यापन स्वरूप गोपिकाओं ने छप्पन
भोग का आयोजन किया |

छप्पन भोग हैं छप्पन सखियां...
ऐसा भी कहा जाता है कि गौलोक में भगवान
श्रीकृष्ण राधिका जी के साथ एक दिव्य कमल पर
विराजते हैं |
उस कमल की तीन परतें होती हैं...
प्रथम परत में "आठ",
दूसरी में "सोलह"
और
तीसरी में "बत्तीस पंखुड़िया" होती हैं |
प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और मध्य में
भगवान विराजते हैं |
इस तरह कुल पंखुड़ियों संख्या छप्पन होती है |
56 संख्या का यही अर्थ है |

छप्पन भोग का विज्ञान
रस 6 प्रकार के होते है|

कटु
तिक्त
कषाय
अम्ल
लवण
मधुर
इन छ: रसों के मेल से रसोइया कितने वयंजन बना सकता है?


अब एक एक रस से यानि  से कोई व्यंजन नहीं बनता है| ऐसे ही छ: के छ: रस यानी  मिला कर भी कोई व्यंजन नहीं बनता है|

=6
=1


63 - (6+1) = 63 -7 = 56

इसीलिए 56 भोग का मतलब है सारी तरह का खाना जो हम भगवान को अर्पित करते है|

-:::: छप्पन भोग इस प्रकार है ::::-
1. भक्त (भात),
2. सूप (दाल),
3. प्रलेह (चटनी),
4. सदिका (कढ़ी),
5. दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी),
6. सिखरिणी (सिखरन),
7. अवलेह (शरबत),
8. बालका (बाटी),
9. इक्षु खेरिणी (मुरब्बा),
10. त्रिकोण (शर्करा युक्त),
11. बटक (बड़ा),
12. मधु शीर्षक (मठरी),
13. फेणिका (फेनी),
14. परिष्टïश्च (पूरी),
15. शतपत्र (खजला),
16. सधिद्रक (घेवर),
17. चक्राम (मालपुआ),
18. चिल्डिका (चोला),
19. सुधाकुंडलिका (जलेबी),
20. धृतपूर (मेसू),
21. वायुपूर (रसगुल्ला),
22. चन्द्रकला (पगी हुई),
23. दधि (महारायता),
24. स्थूली (थूली),
25. कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी),
26. खंड मंडल (खुरमा),
27. गोधूम (दलिया),
28. परिखा,
29. सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त),
30. दधिरूप (बिलसारू),
31. मोदक (लड्डू),
32. शाक (साग),
33. सौधान (अधानौ अचार),
34. मंडका (मोठ),
35. पायस (खीर)
36. दधि (दही),
37. गोघृत,
38. हैयंगपीनम (मक्खन),
39. मंडूरी (मलाई),
40. कूपिका (रबड़ी),
41. पर्पट (पापड़),
42. शक्तिका (सीरा),
43. लसिका (लस्सी),
44. सुवत,
45. संघाय (मोहन),
46. सुफला (सुपारी),
47. सिता (इलायची),
48. फल,
49. तांबूल,
50. मोहन भोग,
51. लवण,
52. कषाय,
53. मधुर,
54. तिक्त,
55. कटु,
56. अम्ल.
|| जय श्री कृष्णा
 🚩🚩🚩🚩🇮🇳🚩🚩🚩🚩


📜अपनी भारत की संस्कृति
को पहचाने.
ज्यादा से ज्यादा
लोगो तक पहुचाये. खासकर अपने बच्चो को बताए क्योकि ये बात उन्हें कोई नहीं बताएगा...
                       💐 🙏💐
               🚩जय सनातन🚩

भगवापुत्री साध्वी प्रज्ञा के जन्मदिवस जानें साध्वी जी के विरुद्ध षडयन्त्र की पूर्ण जानकारी....!

===साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को न्याय कब मिलेगा====
 साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बिना सबूतों के हिन्दू आतंकवादी होने के आरोप में 7 वर्ष से जेल में यातनाए दी जा रही हैं।

 -------------------- परिचय-------------
प्रज्ञा सिंह ठाकुर का जन्म मध्य प्रदेश के कछवाहाघर इलाके में ठाकुर चन्द्रपाल सिंह के घर हुआ था,ये राजावत(कुशवाहा,कछवाहा)राजपूत परिवार में जन्मी थी,इनकी आयु लगभग 38 वर्ष है,बाद में इनके अभिभावक सूरत गुजरात आकर बस गये.
आध्यात्मिक जगत की और लगातार आकर्षित होने के कारण इन्होने भौतिक जगत को अलविदा करने का निश्चय कर लिया और दिनांक 30-01-2007 को संन्यासिन हो गयी.सन्यास ग्रहण करने के बाद साध्वी प्रज्ञा ने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की अलख जगानी शुरू कर दी और अपनी ओजस्वी वाणी से शीघ्र ही इनका नाम सारे देश में फ़ैल गया,उस समय कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी जिनके इशारे पर पूरी केंद्र सरकार घूमती थी और उनके नेतृत्व की यूपीए सरकार लगातार इस्लामिक आतंकवादियों के प्रति नरम रुख अपनाए हुए थी जिसकी साध्वी प्रज्ञा ने जमकर आलोचना की...... शीघ्र ही ये आलोचना मैडम सोनिया तक पहुँच गयी और तभी से साध्वी को सबक सिखाने की रणनीति बनाई जाने लगी.……साध्वी प्रज्ञा को झूठा फसाया गया-------
साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को मालेगांव बम विस्फोट मामले में सरकार ने तब गिरफ्तार किया था जब सरकार ने नीति के आधार पर यह निर्णय कर लिया था कि आतंकवादी गतिविधियों में कुछ हिन्दुओं की संलिप्तता दिखाना भी जरुरी है।उस बम ब्लास्ट मे उनकी मोटर साईकल वहां पाई गई थी जबकी वो मोटर साईकिल बहुत पहले ही साध्वी जी द्वारा बेची जा चुकी थी और उसकी आर सी तक उस आदमी के नाम ट्रांसफर करवा चुकी थी
अभी तक आतंकवादी गतिविधियों में जितने लोग पकड़े जा रहे थे वे सब मुस्लिम ही थे। सोनिया कांग्रेस की सरकार को उस वक्त लगता था कि यदि आतंकवादी गतिविधियों से किसी तरह कुछ हिन्दुओं को भी पकड़ लिया जाये तो सरकार मुसलमानों के तुष्टीकरण के माध्यम से उनके वोट बैंक का लाभ उठा सकती है। इस नीति के पीछे ऐसा माना जाता है कि मोटे तौर पर दिग्विजय सिंह का दिमाग काम करता था।
विद्यार्थी परिषद से प्रज्ञा ठाकुर के संबंधों को भगवा बताने में दिग्विजय सिंह जैसे लोगों को कितनी देर लगती। अब प्रश्न केवल इतना ही था कि प्रज्ञा ठाकुर को किस अपराध के अन्तर्गत गिरफ्तार किया जाये?
2006 और 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में बम विस्फोट हुए थे। उनमें शामिल लोग गिरफ्तार भी हो चुके थे। लेकिन जांच एजेंसियों को तो अब सरकार द्वारा कल्पित भगवा आतंकवाद के सिध्दांत को स्थापित करना था, इसलिये कुछ अति उत्साही पुलिस वालों ने प्रज्ञा ठाकुर को भी मालेगांव के बम विस्फोट में ही लपेट दिया और अक्तूबर 2008 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। प्रज्ञा को सामान्य कानूनी सहायता भी न मिल सके इसके लिये उस पर मकोका अधिनियम की विभिन्न धाराएं आरोपित कर दी गई।इस नीच काम में महाराष्ट्र के शरद पवार जैसे नेताओं ने भी अपने विश्वस्त पुलिस अधिकारीयों के माध्यम से सोनिया का भरपूर साथ दिया …

शारीरिक व मानसिक यातनाएं------------
जेल में साध्वी को शारीरिक व मानसिक यातनाएं दी गई। उनकी केवल पिटाई ही नहीं कि गई बल्कि उन पर फब्तियां कसी गई। उन्हें जबरन अंडा और मांसाहारी भोजन खिलाया गया और पीट पीट कर पोर्न फिल्मे देखने को विवश किया गया,बेहोशी की हालत में इनके कपड़े तक बदले गए,जब साध्वी जी की माता बिमार हुई तो उनको साध्वी जी से मिलने तक नही दिया इन सत्ता धारीयो ने क्यो? क्या संविधान मे ये लिखा हुआ है कि जेल मे रहने वालो को उनकी मरणासन माता पिता से नही मिलने दिए जाना चाहिए?
डराने धमकाने का जो सिलसिला चला, उसको तो भला क्या कहा जाये?
इन अत्याचारों से जेल में ही साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को कैंसर के रोग ने घेर लिया। प्रज्ञा ठाकुर ने जमानत के लिये एक बार फिर आवेदन दिया। वे बाहर अपना कैंसर का इलाज करवाया चाहती थीं। लेकिन सरकार ने इस बार भी उनकी जमानत का जी जान से विरोध किया। उनकी जमानत नहीं हो सकी। इसे ताज्जुब ही कहना होगा कि जिन राजनैतिक दलों ने जाने-माने आतंकवादी मौलाना मदनी को जेल से छुड़ाने के लिये केरल विधानसभा में बाकायदा एक प्रस्ताव पारित कर अपने पंथ निरपेक्ष होने का राजनैतिक लाभ उठाने का घटिया प्रयास किया वही राजनैतिक दल साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को फांसी पर लटका देने के लिये दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन करते हैं।यहाँ तक कि एक बार कोर्ट को भी कहना पड़ा कि क्या सरकार साध्वी को जिन्दा भी देखना चाहती है या नहीं???????????


राजनीति का षडयंत्र--------
लेकिन एक दिक्कत अभी भी बाकी थी। एक ही अपराध और एक ही घटना। उसके लिये पुलिस ने दो अलग-अलग केस तैयार कर लिये। एक साथ ही दो अलग-अलग समूहों को दोषी ठहरा दिया। पुलिस की इस हरकत से विस्फोट में संलिप्तता का आरोप भुगत रहे तथाकथित आतंकवादियों को बचाव का एक ठेस रास्ता उपलब्ध हो गया। इन विस्फोटों के लिये पकड़े गये मुस्लिम युवकों ने अदालत में जमानत की अर्जी लगा दी।पुलिस की जांच यह कहती है कि इन विस्फोटों के लिये मुसलमान दोषी हैं तो प्रज्ञा ठाकुर को क्यों पकड़ा हुआ है? लेकिन जेल में बन्द मुसलमानों ने तो यही तर्क दिया कि पुलिस ने स्वयं स्वीकार कर लिया है कि मालेगांव विस्फोट के लिये प्रज्ञा और उनके साथी जिम्मेदार हैं, इसलिये उन्हें कम जमानत पर छोड़ दिया जाय।
लेकिन पुलिस तो जानती थी कि प्रज्ञा ठाकुर की गिरफ्तारी तो मात्र सरकार के दिग्विजय बिग्रेड की राजनीतिक पहल रंग भरने के मात्र के लिए उसका माले गांव के विस्फोट से लेना देना नहीं है। इसलिए पुलिस ने इन मुस्लिम आतंकवादियों की जमानत की अर्जी का डट कर विरोध किया। विधि के जानकार लोगों को तभी ज्ञात हो गया था कि सरकार के मुस्लिम तुष्टीकरण के अभियान को पूरा करने के लिये साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की बलि चढ़ाई जा रही है।उसका बम विस्फोट से कुछ लेना देना नहीं है।
प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बिना किसी अपराध के भी जेल में पड़े हुये लगभग छह साल हो गए हैं। प्रश्न है कि बिना मुकदमा चलाये हुये किसी हिन्दू स्त्री को, केवल इसलिये कि मुसलमान खुश हो जायेंगे, भला कितनी देर जेल में बंद रखा जा सकता है? पुलिस अपनी तोता-बिल्ली की कहानी को और कितना लम्बा खींच सकती है? लेकिन ताज्जुब है अब पुलिस ने जब देखा कि प्रज्ञा सिंह के खिलाफ और किसी भी अपराध में कोई सबूत नहीं मिला तो उसने सुनील जोशी की हत्या के मामले में प्रज्ञा सिंह ठाकुर को जोड़ना शुरू कर दिया।
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को जेल में पड़े हुये ६-७ साल पूरे हो गये हैं। राष्ट्रीय जांच एजेंसी उस पर कोई केस नहीं बना सकी। उसके खिलाफ तमाम हथकंडे इस्तेमाल करने के बावजूद कोई प्रमाण नहीं जुटा सकी। एक स्टेज पर तो राष्ट्रीय जांच एजेंसी को कहना ही पड़ा कि साध्वी के खिलाफ पर्याप्त सबूत न होने के कारण इन पर लगे आरोप निरस्त कर देने चाहिये। यदि सही प्रकार से कहा जाये तो प्रज्ञा ठाकुर का केस अभी प्रारंभ ही नहीं हुआ है। पर सरकार उसकी जमानत की अर्जी का डट कर विरोध करती है।
किस्सा यह है कि जांच एजेंसियों ने उस वक्त सरकार मालेगाँव बम ब्लास्ट की प्रमुख आरोपी के रूप में महाराष्ट्र सरकार द्वारा “मकोका” कानून के तहत जेल में निरुद्ध, साध्वी प्रज्ञा को देवास (मप्र) की एक कोर्ट में पेशी के लिदिया।

सरकार को खुश करने के लिये और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बदनाम करने के लिए प्रज्ञा सिंह ठाकुर को पकड़ लिया और अपनी कारगुजारी दिखाने के लिये उसके इर्द-गिर्द कपोल कल्पित कथाओं का ताना-बाना भी बुन लिया। पुलिस अपने आप को निर्दोष सिध्द करने के लिये अभी भी प्रज्ञा सिंह के इर्द गिर्द झूठ का ताना-बाना बुनती ही जा रही है। कैंसर की मरीज प्रज्ञा ठाकुर क्या दिग्विजय सिंह,सरकार के बुने हुये फरेब के इस जाल से निकल पायेगी या उसी में उलझी रह कर दम तोड़ देगी?
इस प्रश्न का उत्तर तो भविष्य ही देगा, लेकिन एक साध्वी के साथ किये इस जुल्म की जिम्मेदारी तो आखिर किसी न किसी को लेनी ही होगी।

मोदी सरकार की उदासीनता----------
जब मोदी सरकार आई तो सबको लगा क़ि चलो अब हिंदुत्ववादी सरकार आई है तो साध्वी जी को न्याय मिलेगा और उन्हें फ़साने वालो को कड़ा दंड मिलेगा,मगर हाय दुर्भाग्य,मोदी जी से साध्वी को न्याय नही मिल पाया है,
अब जाकर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि साध्वी के खिलाफ कोई भी आरोप सिद्ध नही होता,पर तभी केंद्र सरकार के अधीन एनआईए ने फिर जमानत का विरोध कर दिया,और तब सुप्रीम कोर्ट ने भी इनकी याचिका ख़ारिज कर दी और इन्हे निचली कोर्ट में अपील करने को कहा.……
साध्वी जी कैंसर जैसी बिमारी से जूझ रही है और उन्होने इस कथित हिन्दुवा सरकार को पत्र लिखकर उन पर जेल मे हो रहे अत्याचारो को लिखित मे पीएम तक पहुंचाया कि कैसे जेल मे उनको पुलिस वाले जबरदस्ती उनके मुंह मे मांस ठूसते है और कैसे वो उनके कपडे भी सार्वजनिकता से बदलते है उनको गंदा पानी पीने पर मजबूर करते है जबकी उन्होने कोई अपराध तक भी नही किया?

पर ये सच है कि इस देश मे हिन्दुओं को सिर्फ राजनीती मे एक ट्रंप कार्ड की तरह इस्तेमाल किया जाने लगा है जहां कही भी बदनामी का डर हो वहां हिन्दुओं को आगे कर दिया जाता है चाहे वो वी.के.सिंह जी का पाकिस्तानी दिवस मे जाना हो या कांधार मे आताकंवादीयो को छोडकर जाने के लिए जसवंंत सिंह जी हो और तो और इस देश की गंदी राजनीती ने हमारी बहन साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जी को भी नही बख्शा ,
चुनाव से पहले वर्तमान सत्ता ने वही अपना हिन्दुत्व का राग गाया और साध्वीप्रज्ञा जी पर जेल मे हो रहे अत्याचारो को बखान करके लोगो की भावनाए ऐसे जगाई जैसे की इनकी सरकार बनते ही दूसरे दिन साध्वी जी को जेल से रिहा करके उचित सम्मान दिया जाएगा मगर अफसोस फिर से सरकार ने धोखा ही दिया जैसे पहले से ही हमारे साथ होता आया है,जब सरकार को पता है कि मालेगांव बम बलास्ट मे साध्वी जी निर्दोष है तो क्यो उनको अभी तक बाहर नही निकाला गया?
इसका कारण ये है कि ये सरकार हमेशा हिन्दुओ की धार्मिक भावनाओ को ढाल बनाकर सत्ता मे आती है।
सरकार की एनआईए ने प्रज्ञा ठाकुर की जमानत का विरोध किया और वहीँ अमित शीाह जी को तुरन्त क्लीन चिट और कोर्ट से हर दो महीने बाद संजय दत्त को पैरोल मिल जाती है,सलमान खान और जयललिता आरोप सिद्ध हो जाने के बाद भी बाहर हैं।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने "मकोका" हटा दिया है अब मामला
निचली अदालत में हैं।

मालेगाँव बम ब्लास्ट की प्रमुख आरोपी के रूप में महाराष्ट्र सरकार द्वारा “मकोका” कानून के तहत जेल में निरुद्ध, साध्वी प्रज्ञा को देवास (मप्र) की एक कोर्ट में पेशी के लिये कल मुम्बई पुलिस लेकर आई। साध्वी के चेहरे पर असह्य पीड़ा झलक रही थी, उन्हें रीढ़ की हड्डी में तकलीफ़ की वजह से बिस्तर पर लिटाकर ही ट्रेन से उतारना पड़ा। कल ही उन्हें देवास की स्थानीय अदालत में पेश किया गया, परन्तु खड़े होने अथवा बैठने में असमर्थ होने की वजह से जज को एम्बुलेंस के दरवाजे पर आकर साध्वी प्रज्ञा (Sadhvi Pargya) से बयान लेना पड़ा। यहीं पर डॉक्टरों की एक टीम द्वारा उनकी जाँच की गई और रीढ़ की हड्डी में असहनीय दर्द की वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की सलाह जारी की गई। मुम्बई में मकोका कोर्ट ने प्रज्ञा के स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें ट्रेन में AC से ले जाने की अनुमति दी थी, बावजूद इसके महाराष्ट्र पुलिस उन्हें स्लीपर में लेकर आई। (Harsh Treatment to Sadhvi Pragya)

इससे पहले भी कई बार विभिन्न अखबारी रिपोर्टों में साध्वी प्रज्ञा को पुलिस अभिरक्षा में प्रताड़ना, मारपीट एवं धर्म भ्रष्ट करने हेतु जबरन अण्डा खिलाने जैसे अमानवीय कृत्यों की खबरें आती रही हैं।

साध्वी प्रज्ञा से सिर्फ़ इतना ही कहना चाहूँगी कि एक “धर्मनिरपेक्ष”(?) देश में आप इसी सलूक के लायक हैं, क्योंकि हमारा देश एक “सेकुलर राष्ट्र” कहलाता है। साध्वी जी, आप पर मालेगाँव बम विस्फ़ोट (Malegaon Blast) का आरोप है…। ब्रेन मैपिंग, नार्को टेस्ट सहित कई तरीके आजमाने के बावजूद, बम विस्फ़ोट में उनकी मोटरसाइकिल का उपयोग होने के अलावा अभी तक पुलिस को कोई बड़ा सबूत हाथ नहीं लगा है, इसके बावजूद तुम पर “मकोका” लगाकर जेल में ठूंस रखा है और एक महिला होने पर भी आप जिस तरह खून के आँसू रो रही हैं… यह तो होना ही था। ऐसा क्यों? तो लीजिये पढ़ लीजिये –

1) साध्वी प्रज्ञा… तुम संसद पर हमला करने वाली अफ़ज़ल गुरु (Afzal Guru) नहीं हो कि तुम्हें VIP की तरह “ट्रीटमेण्ट” दिया जाए, तुम्हें सुबह के अखबार पढ़ने को दिये जाएं, नियमित डॉक्टरी जाँच करवाई जाए…

2) साध्वी प्रज्ञा… तुम “भारत की इज्जत लूटने वाले” अजमल कसाब की तरह भी नहीं हो कि तुम्हें इत्र-फ़ुलैल दिया जाए, स्पेशल सेल में रखा जाए, अण्डा-चिकन जैसे पकवान खिलाए जाएं… तुम पर करोड़ों रुपये खर्च किये जाएं…

3) साध्वी प्रज्ञा… तुम बिनायक सेन (Binayak Sen) भी तो नहीं हो, कि तुम्हारे लिये वामपंथी, सेकुलर और “दानवाधिकारवादी” सभी एक सुर में “रुदालियाँ” गाएं…। न ही अभी तुम्हारी इतनी औकात है कि तुम्हारी खातिर, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर “चर्च की साँठगाँठ से कोई मैगसेसे या नोबल पुरस्कार” की जुगाड़ लगाई जा सके…

4) साध्वी प्रज्ञा… तुम्हें तो शायद हमारे “सेकुलर” देश में महिला भी नहीं माना जाता, क्योंकि यदि ऐसा होता तो जो “महिला आयोग”(?) राखी सावन्त/मीका चुम्बन जैसे निहायत घटिया और निजी मामले में दखल दे सकता है… वह तुम्हारी हालत देखकर पसीजता…

5) साध्वी प्रज्ञा… तुम तो “सो कॉल्ड” हिन्दू वीरांगना भी नहीं हो, क्योंकि भले ही तुम्हारा बचाव करते न सही, लेकिन कम से कम मानवीय, उचित एवं सदव्यवहार की माँग करते भी, किसी “ड्राइंगरूमी” भाजपाई या हिन्दू नेता को न ही सुना, न ही देखा…

6) और हाँ, साध्वी प्रज्ञा… तुम तो कनिमोझी (Kanimojhi) जैसी “समझदार” भी नहीं हो, वरना देश के करोड़ों रुपये लूटकर भी तुम कैमरों पर बेशर्मों की तरह मुस्करा सकती थीं, सेकुलर महिला शक्ति तुम पर नाज़ करती… करोड़ों रुपयों में तुम्हारा बुढ़ापा भी आसानी से कट जाता… लेकिन अफ़सोस तुम्हें यह भी करना नहीं आया…

7) साध्वी प्रज्ञा… तुम्हारे साथ दिक्कत ये भी है कि तुम अरुंधती रॉय (Arundhati Roy’s Anti-National Remarks) जैसी महिला भी नहीं हो, जो सरेआम भारत देश, भारतवासियों, भारत की सेना सहित सभी को गरियाने के बावजूद “फ़ाइव स्टार होटलों” में प्रेस कांफ़्रेंस लेती रहे…

8) साध्वी प्रज्ञा… तुम तो पूनम पाण्डे जैसी छिछोरी भी नहीं हो, कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र के “परिपक्व मीडिया”(?) की निगाह तुम पर पड़े, और वह तुम्हें कवरेज दे…

कहने का मतलब ये है साध्वी प्रज्ञा… कि तुम में बहुत सारे दोष हैं, जैसे कि तुम “हिन्दू” हो, तुम “भगवा” पहनती हो, तुम कांग्रेसियों-वामपंथियों-सेकुलरों के मुँह पर उन्हें सरेआम लताड़ती हो, तुम फ़र्जी मानवाधिकारवादी भी नहीं हो, तुम विदेशी चन्दे से चलने वाले NGO की मालकिन भी नहीं हो… बताओ ऐसा कैसे चलेगा?

सोचो साध्वी प्रज्ञा, जरा सोचो… यदि तुम कांग्रेस का साथ देतीं तो तुम्हें भी ईनाम में अंबिका सोनी या जयन्ती नटराजन की तरह मंत्रीपद मिल जाता…, यदि तुम वामपंथियों की तरफ़ “सॉफ़्ट कॉर्नर” रखतीं, तो तुम भी सूफ़िया मदनी (अब्दुल नासेर मदनी की बीबी) की तरह आराम से घूम-फ़िर सकती थीं, NIA द्वारा बंगलोर बस बम विस्फ़ोट की जाँच किये जाने के बावजूद पुलिस को धमका सकती थीं… यानी तुम्हें एक “विशेषाधिकार” मिल जाता। बस तुम्हें इतना ही करना था कि जैसे भी हो "सेकुलरिज़्म की चैम्पियन" बन जातीं, बस… फ़िर तुम्हारे आगे महिला आयोग, मानवाधिकार आयोग, सब कदमों में होते। महिलाओं के दुखों और पीड़ा को महसूस करने वाली तीस्ता जावेद सीतलवाड, शबाना आज़मी, मल्लिका साराभाई सभी तुमसे मिलने आतीं… तुम्हें जेल में खीर-मलाई आदि सब कुछ मिलता…।

लेकिन अब कुछ नहीं किया जा सकता… जन्म ने तुम्हें “हिन्दू” बना दिया और महान सेकुलरिज़्म ने उसी शब्द के आगे “आतंकवादी” और जोड़ दिया…। साध्वी प्रज्ञा, इस “सेकुलर, लोकतांत्रिक, मानवीय और सभ्य” देश में तुम इसी बर्ताव के लायक हो…

रविवार, 19 जुलाई 2015

हिन्दू होकर नहीं जानते हिन्दू परम्पराओं का "महाविज्ञान"...?? पढ़े एवं शेयर करें..!

हिंदू परम्पराओं से जुड़े ये वैज्ञानिक तर्क:


1- कान छिदवाने की परम्परा:....
भारत में लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परम्परा है।
वैज्ञानिक तर्क-
दर्शनशास्त्री मानते हैं कि इससे सोचने की शक्ति बढ़ती है।
जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे बोली अच्छी होती है
और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचार
नियंत्रित रहता है।

2-: माथे पर कुमकुम/तिलक,.........
महिलाएं एवं पुरुष माथे पर कुमकुम या तिलक लगाते हैं।
वैज्ञानिक तर्क- आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है।
कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है।
माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उंगली से प्रेशर पड़ता है,
तब चेहरे की त्वचा को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशी
सक्रिय हो जाती है। इससे चेहरे की कोशिकाओं तक अच्छी तरह
रक्त पहुंचता है।

3- : जमीन पर बैठकर भोजन..
भारतीय संस्कृति के अनुसार जमीन पर बैठकर भोजन करना
अच्छी बात होती है।
वैज्ञानिक तर्क- पलती मारकर बैठना एक प्रकार का योग
आसन है। इस पोजीशन में बैठने से मस्तिष्क शांत रहता है और
भोजन करते वक्त अगर दिमाग शांत हो तो पाचन क्रिया
अच्छी रहती है। इस पोजीशन में बैठते ही खुद-ब-खुद दिमाग से एक
सिगनल पेट तक जाता है, कि वह भोजन के लिये तैयार हो जाये।

4- : हाथ जोड़कर नमस्ते करना...
जब किसी से मिलते हैं तो हाथ जोड़कर नमस्ते अथवा नमस्कार
करते हैं।
वैज्ञानिक तर्क- जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क
में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है। एक्यूप्रेशर के कारण उसका
सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है,
ताकि सामने वाले व्यक्ति को हम लंबे समय तक याद रख सकें।
दूसरा तर्क यह कि हाथ मिलाने (पश्चिमी सभ्यता) के बजाये
अगर आप नमस्ते करते हैं तो सामने वाले के शरीर के कीटाणु आप
तक नहीं पहुंच सकते। अगर सामने वाले को स्वाइन फ्लू भी है तो
भी वह वायरस आप तक नहीं पहुंचेगा।

5-: भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से..
जब भी कोई धार्मिक या पारिवारिक अनुष्ठान होता है तो
भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से होता है।
वैज्ञानिक तर्क- तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं
अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित
होता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती
है। इससे पेट में जलन नहीं होती है।

6-: पीपल की पूजा..
तमाम लोग सोचते हैं कि पीपल की पूजा करने से भूत-प्रेत दूर
भागते हैं।
वैज्ञानिक तर्क- इसकी पूजा इसलिये की जाती है, ताकि इस
पेड़ के प्रति लोगों का सम्मान बढ़े और उसे काटें नहीं। पीपल एक
मात्र ऐसा पेड़ है, जो रात में भी ऑक्सीजन प्रवाहित करता है।

7-: दक्षिण की तरफ सिर करके सोना...
दक्षिण की तरफ कोई पैर करके सोता है, तो लोग कहते हैं कि बुरे
सपने आयेंगे, भूत प्रेत का साया आ जायेगा, आदि। इसलिये उत्तर
की ओर पैर करके सोयें।
वैज्ञानिक तर्क- जब हम उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं, तब
हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है।
शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर संचारित
होने लगता है। इससे अलजाइमर, परकिंसन, या दिमाग संबंधी
बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं रक्तचाप भी
बढ़ जाता है।

8-सूर्य नमस्कार.....
हिंदुओं में सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की
परम्परा है।
वैज्ञानिक तर्क- पानी के बीच से आने वाली सूर्य की किरणें
जब आंखों में पहुंचती हैं, तब हमारी आंखों की रौशनी अच्छी
होती है।

9-सिर पर चोटी..
हिंदू धर्म में ऋषि मुनी सिर पर चुटिया रखते थे। आज भी लोग
रखते हैं।
वैज्ञानिक तर्क- जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है उस जगह
पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं। इससे दिमाग स्थिर
रहता है और इंसान को क्रोध नहीं आता, सोचने की क्षमता
बढ़ती है।

10-व्रत रखना...
कोई भी पूजा-पाठ या त्योहार होता है, तो लोग व्रत रखते हैं।
वैज्ञानिक तर्क- आयुर्वेद के अनुसार व्रत करने से पाचन क्रिया
अच्छी होती है और फलाहार लेने से शरीर का
डीटॉक्सीफिकेशन होता है, यानी उसमें से खराब तत्व बाहर
निकलते हैं। शोधकर्ताओं के
अनुसार व्रत करने से कैंसर का खतरा कम होता है। हृदय संबंधी
रोगों, मधुमेह, आदि रोग भी जल्दी नहीं लगते।

11-चरण स्पर्श करना....
हिंदू मान्यता के अनुसार जब भी आप किसी बड़े से मिलें, तो
उसके चरण स्पर्श करें। यह हम बच्चों को भी सिखाते हैं, ताकि वे
बड़ों का आदर करें।
वैज्ञानिक तर्क- मस्तिष्क से निकलने वाली ऊर्जा हाथों और
सामने वाले पैरों से होते हुए एक चक्र पूरा करती है। इसे कॉसमिक
एनर्जी का प्रवाह कहते हैं। इसमें दो प्रकार से ऊर्जा का प्रवाह
होता है, या तो बड़े के पैरों से होते हुए छोटे के हाथों तक या
फिर छोटे के हाथों से बड़ों के पैरों तक।

12-क्यों लगाया जाता है सिंदूर...
शादीशुदा हिंदू महिलाएं सिंदूर लगाती हैं।
वैज्ञानिक तर्क- सिंदूर में हल्दी, चूना और मरकरी होता है। यह
मिश्रण शरीर के रक्तचाप को नियंत्रित करता है। चूंकि इससे
यौन उत्तेजनाएं भी बढ़ती हैं, इसीलिये विधवा औरतों के लिये
सिंदूर लगाना वर्जित है। इससे स्ट्रेस कम होता है।

13- तुलसी के पेड़ की पूजा...
तुलसी की पूजा करने से घर में समृद्धि आती है। सुख शांति बनी
रहती है।
वैज्ञानिक तर्क- तुलसी इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है।
लिहाजा अगर घर में पेड़ होगा, तो इसकी पत्तियों का
इस्तेमाल भी होगा और उससे बीमारियां दूर होती हैं।

छप्पन भोग का कारण, कथा एवं "विज्ञान" जरूर जाने हर हिन्दू....!!!!! पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें....!!

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भी इस परम्परा को ढकोसला न कहे।

शनिवार, 18 जुलाई 2015

वैज्ञानिकों के ज्ञान से परे जगन्नाथ मंदिर के ये चमत्कार

जगन्नाथ मंदिर के चमत्कार


श्री जगन्नाथ मंदिर के ऊपर स्थापित लाल ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। ऐसा किस कारण होता है यह तो वैज्ञानिक ही बता सकते हैं लेकिन यह निश्‍चित ही आश्चर्यजनक बात है।
यह भी आश्‍चर्य है कि प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा उल्टा चढ़कर बदला जाता है। ध्वज भी इतना भव्य है कि जब यह लहराता है तो इसे सब देखते ही रह जाते हैं। ध्वज पर शिव का चंद्र बना हुआ है।

गुंबद की छाया नहीं बनती : यह दुनिया का सबसे भव्य और ऊंचा मंदिर है। यह मंदिर 4 लाख वर्गफुट में क्षेत्र में फैला है और इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है। मंदिर के पास खड़े रहकर इसका गुंबद देख पाना असंभव है। मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है।
हमारे पूर्वज कितने बड़े इंजीनियर रहे होंगे यह इस एक मंदिर के उदाहरण से समझा जा सकता है। पुरी के मंदिर का यह भव्य रूप 7वीं सदी में निर्मित किया गया।

पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा दिखेगा। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है।

सामान्य दिनों के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है।
अधिकतर समुद्री तटों पर आमतौर पर हवा समुद्र से जमीन की ओर आती है, लेकिन यहां हवा जमीन से समुद्र की ओर जाती है।

मंदिर के ऊपर गुंबद के आसपास अब तक कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं देखा गया। इसके ऊपर से विमान नहीं उड़ाया जा सकता। मंदिर के शिखर के पास पक्षी उड़ते नजर नहीं आते, जबकि देखा गया है कि भारत के अधिकतर मंदिरों के गुंबदों पर पक्षी बैठ जाते हैं या आसपास उड़ते हुए नजर आते हैं।

500 रसोइए 300 सहयोगियों के साथ बनाते हैं भगवान जगन्नाथजी का प्रसाद। लगभग 20 लाख भक्त कर सकते हैं यहां भोजन। कहा जाता है कि मंदिर में प्रसाद कुछ हजार लोगों के लिए ही क्यों न बनाया गया हो लेकिन इससे लाखों लोगों का पेट भर सकता है। मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती।
मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है अर्थात सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना पहले पक जाता है। है न चमत्कार!

मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते। आप (मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें, तब आप इसे सुन सकते हैं। इसे शाम को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है।
इसी तरह मंदिर के बाहर स्वर्ग द्वार है, जहां पर मोक्ष प्राप्ति के लिए शव जलाए जाते हैं लेकिन जब आप मंदिर से बाहर निकलेंगे तभी आपको लाशों के जलने की गंध महसूस होगी।

विश्‍व की सबसे बड़ी रथयात्रा : आषाढ़ माह में भगवान रथ पर सवार होकर अपनी मौसी रानी गुंडिचा के घर जाते हैं। यह रथयात्रा 5 किलो‍मीटर में फैले पुरुषोत्तम क्षेत्र में ही होती है। रानी गुंडिचा भगवान जगन्नाथ के परम भक्त राजा इंद्रदयुम्न की पत्नी थी इसीलिए रानी को भगवान जगन्नाथ की मौसी कहा जाता है।
अपनी मौसी के घर भगवान 8 दिन रहते हैं। आषाढ़ शुक्ल दशमी को वापसी की यात्रा होती है। भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष है। देवी सुभद्रा का रथ दर्पदलन है और भाई बलभद्र का रक्ष तल ध्वज है। पुरी के गजपति महाराज सोने की झाड़ू बुहारते हैं जिसे छेरा पैररन कहते हैं।


यहां श्रीकृष्ण को जगन्नाथ कहते हैं। जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा विराजमान हैं। तीनों की ये मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं।
यहां प्रत्येक 12 साल में एक बार होता है प्रतिमा का नव कलेवर। मूर्तियां नई जरूर बनाई जाती हैं लेकिन आकार और रूप वही रहता है। कहा जाता है कि उन मूर्तियों की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं।


हनुमानजी करते हैं जगन्नाथ की समुद्र से रक्षा : माना जाता है कि 3 बार समुद्र ने जगन्नाथजी के मंदिर को तोड़ दिया था। कहते हैं कि महाप्रभु जगन्नाथ ने वीर मारुति (हनुमानजी) को यहां समुद्र को नियंत्रित करने हेतु नियुक्त किया था, परंतु जब-तब हनुमान भी जगन्नाथ-बलभद्र एवं सुभद्रा के दर्शनों का लोभ संवरण नहीं कर पाते थे।
वे प्रभु के दर्शन के लिए नगर में प्रवेश कर जाते थे, ऐसे में समुद्र भी उनके पीछे नगर में प्रवेश कर जाता था। केसरीनंदन हनुमानजी की इस आदत से परेशान होकर जगन्नाथ महाप्रभु ने हनुमानजी को यहां स्वर्ण बेड़ी से आबद्ध कर दिया। यहां जगन्नाथपुरी में ही सागर तट पर बेदी हनुमान का प्राचीन एवं प्रसिद्ध मंदिर है। भक्त लोग बेड़ी में जगड़े हनुमानजी के दर्शन करने के लिए आते हैं।

कुछ अन्य रोचक तथ्य
* महान सिख सम्राट महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर को प्रचुर मात्रा में स्वर्ण दान किया था, जो कि उनके द्वारा स्वर्ण मंदिर, अमृतसर को दिए गए स्वर्ण से कहीं अधिक था।

* पांच पांडव भी अज्ञातवास के दौरान भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने आए थे। श्री मंदिर के अंदर पांडवों का स्थान अब भी मौजूद है। भगवान जगन्नाथ जब चंदन यात्रा करते हैं तो पांच पांडव उनके साथ नरेन्द्र सरोवर जाते हैं।

* कहते हैं कि ईसा मसीह सिल्क रूट से होते हुए जब कश्मीर आए थे तब पुन: बेथलेहम जाते वक्त उन्होंने भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए थे।

* 9वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने यहां की यात्रा की थी और यहां पर उन्होंने चार मठों में से एक गोवर्धन मठ की स्थापना की थी।

* इस मंदिर में गैर-भारतीय धर्म के लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित है। माना जाता है कि ये प्रतिबंध कई विदेशियों द्वारा मंदिर और निकटवर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ और हमलों के कारण लगाए गए हैं। पूर्व में मंदिर को क्षति पहुंचाने के प्रयास किए जाते रहे हैं।